बीएसए के अंतिम नोटिस को भी रद्दी की टोकरी में फेंका, शिक्षा का अधिकार कानून बना मजाक
आगरा: शिक्षा के अधिकार कानून का निजी स्कूलों द्वारा खूब मखौल उड़ाया जा रहा है। बीएसए के आदेशों को ठेंगा दिखाकर बच्चों को प्रवेश से वंचित किया जा रहा है। निजी स्कूलों की मनमानी से बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत चयनित छात्रा को आठ माह बाद भी स्कूल ने दाखिला नहीं दिया। अभिभावक स्कूल और बीएसए कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं।
ये है मामला
बिचपुरी ब्लॉक अंतर्गत नालंदा निवासी राजा बाबू ने अपनी बेटी का शिक्षा का अधिकार कानून के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था। जिसमें लड़ामदा स्थित होली लाइट पब्लिक स्कूल में बच्ची का चयन हुआ लेकिन स्कूल संचालक ने अभिभावक से दाखिला देने से सीधे इंकार कर दिया। बच्ची के पिता ने इसकी शिकायत खंड शिक्षा अधिकारी से की। उनके आदेश को भी हवा में उड़ा दिया। विभाग से कई पत्र जारी हुए लेकिन दाखिला नहीं मिला। आठ दिसंबर को बेसिक शिक्षा अधिकारी ने दोनों पक्षों को आमने-सामने बैठाकर जानकारी ली। स्कूल को तीन दिन के अंदर दाखिला देने के आदेश जारी किए। दाखिला न देने के की स्थिति में स्कूल के विरुद्ध मान्यता प्रत्याहरण करने की बात की लेकिन स्कूल संचालक पर इसका कोई असर नहीं हुआ। पत्र जारी होने के पांच दिन बाद भी छात्रा को दाखिला नहीं दिया गया। अभिभावक परेशान हैं। बच्ची का भविष्य अधर में लटका हुआ है।
आरटीई कानून का उल्लंघन
चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस का कहना है कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों को दाखिला देने का प्रावधान है। यदि विद्यालय दाखिला देने से इंकार करता है तो यह आरटीई का उल्लंघन है। इस संबंध में बाल आयोग के समक्ष भी मामला उठाया गया था। आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल ने आयोग की जनसुनवाई में बालिका को दाखिला देने के कड़े निर्देश जारी किए थे। उसके बावजूद भी दाखिला नहीं दिया गया। दाखिला न होने की स्थिति में पुन: बाल आयोग और शिक्षा निदेशालय को अवगत कराया जाएगा। स्कूल संचालक मनमानी कर रहे हैं।
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