डॉ. भानु प्रताप सिंह
Lucknow, Uttar Pradesh, India. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश 11 जिलों की 58 सीटों के लिए मतदान हो गया है। भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी-राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन में कड़ी टक्कर दिखाई दे रही है। कहा जाता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश किसी भी पार्टी के लिए सत्ता का द्वार है। यहां से जो पार्टी बढ़त बना लेती है, उसकी सरकार बन जाती है। पिछले तीन चुनावों के आधार पर यह बात एकदम सत्य है। आइए यहां समझते हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की स्थिति।
इन जिलों में हुआ मतदान
पहले चरण में मेरठ, शामली, बागपत, मेरठ, हापुड़, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, गौतमबुद्ध नगर और आगरा में मतदान हुआ है।
किस जिले में कितनी सीटें
शामली में तीन, बागपत में तीन, गौतबुद्धनगर में तीन, हापुड़ में तीन, गाजियाबाद में पांच, मथुरा में पांच, मुजफ्फरनगर में छह, मेरठ में सात, अलीगढ़ में सात, बुलंदशहर में सात, और आगरा में नौ सीटें हैं।
इन 58 सीटों पर पड़े वोट
कैराना, थाना भवन, शामली, बुढ़ाना, चरथावाल, पुरकाजी (एससी), मुजफ्फरनगर, खतौली, मीरापुर, सिवालखास, सरधना, हस्तिनापुर, (एससी), किठौर, मेरठ छावनी, मेरठ, मेरठ दक्षिण, छपरौली, बड़ौत, बागपत, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद, मोदी नगर, धौलाना, हापुड़ (एससी), गढ़मुक्तेश्वर, नोएडा, दादरी, जेवर, सिकंदराबाद, बुलंदशहर, स्याना, अनूपशहर, डिबाई, शिकारपुर, खुर्जा (एससी), खैर (एससी), बरौली, अतरौली, छर्रा, कोइल, अलीगढ़, इगलास (एससी), छाता, मांठ, गोवर्धन, मथुरा, बलदेव (एससी), एत्मादपुर, आगरा कैंट (अनुसूचित जाति), आगरा दक्षिण, आगरा उत्तर, आगरा ग्रामीण (एससी), फतेहपुर सीकरी, खेरागढ़, फतेहाबाद, बाह
राज्य सरकार के छह मंत्री
58 में से छह सीटों पर ऐसे प्रत्याशी हैं जो उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। ये हैं- आगरा कैंट से डॉ. जीएस धर्मेश, मथुरा से श्रीकांत शर्मा, छाता से चौ. लक्ष्मी नारायण, अतरौली से संदीप सिंह, गाजियाबाद से अतुल गर्ग और थाना भवन से सुरेश राणा।
पिछले दो चुनावों मिलता है संकेत
वर्ष 2017 में कुल 58 सीटें थीं, जिनमें से भाजपा को 53, सपा को दो, बसपा को दो, रालोद को एक सीट मिली थी। कांग्रेस का खाता नहीं खुल पाया था। वर्ष 2012 में कुल 55 सीटें थीं, जिसमें भाजपा को पांच, सपा को 41, बसपा को पांच, रालोद को एक और कांग्रेस को तीन सीट मिली थीं। वर्ष 2007 में भाजपा को 8, सपा को 14, बसपा को 33, रालोद को तीन और कांग्रेस को चार सीटें मिली थीं। इससे साफ है कि 2022 के चुनाव में भी जिस पार्टी को अधिक सीटें मिलेंगी, उसी की सरकार बनेगी। इसीलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश को फतेह करने के लिए हर पार्टी ने पूरा जोर लगा दिया है। क्या भाजपा को फिर से 53 सीटें मिलेंगी, इसे लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। किसान आंदोलन का प्रभाव इन 58 सीटों से ताल्लुक रखने वाले किसानों पर अधिक देखा गया है।
यह रालोद का कैसा गढ़
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को रालोद (राष्ट्रीय लोकदल) का गढ़ भी कहा जाता है। सवाल यह भी है कि अगर यह रालोद का गढ़ है तो 2012 और 2007 में रालोद की लुटिया क्यों डूब गई। क्रमशः सपा और बसपा को जोर रहा। 2017 में तो उसका खाता भी नहीं खुला। मान सकते हैं कि 2017 में मोदी लहर थी लेकिन 2007 और 2012 में तो कोई लहर नहीं थी। ऐसे में सपा के साथ मिलकर रालोद कोई चमत्कार कर पाएगा, इसकी बहुत अधिक संभावना नजर नहीं आ रही है। सपा-रालोद गठबंधन में यह बात भी सामने आई कि जहां रालोद का प्रत्याशी है, वहां तो जाटों ने वोट किया है लेकिन जहां सपा का प्रत्याशी है, वहां उदासीन हो गया है। इसका लाभ भी अंततः भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा है।
मुस्लिमों की स्थिति
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम भी कई सीटों को प्रभावित करते हैं। मुस्लिमों का एकमात्र उद्देश्य भाजपा के खिलाफ वोट करना है। इसलिए वे ऐसा प्रत्याशी चुनते हैं जो भाजपा को हरा सकने की स्थिति में होता है। इस बार ऐसी स्थिति नहीं है। हमें जो रुझान मिले हैं, उनके अनुसार तो मुस्लिमों ने एकमुश्त सपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी को वोट किया है। 2007 में मुस्लिमों ने बसपा को वोट किया था।
बसपा की स्थिति
2022 के चुनाव में बसपा की अजब स्थिति रही। विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले से ही यह प्रचारित हो गया कि बसपा का भाजपा को समर्थन है। इसी कारण बसपा प्रमुख मायावती ने सक्रियता नहीं दिखाई। भाजपा और बसपा एकदूसरे पर हमलावर भी नहीं दिखाई दिए। 10 फरवरी को मतदान के दौरान मायावती का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह कह रही हैं कि सपा को हराना है, इसके लिए जरूरत पड़े तो भाजपा को भी वोट दें। यह वीडियो सही है या गलत, कहा नहीं जा सकता लेकिन इसे तेजी के साथ वायरल किया गया। इस वीडियो का कुछ तो असर होगा। इतना सब होने के बाद भी बसप का वोट स्थिर है। हां, उसे अन्य समाज का वोट मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। कुछ सीटों पर बसपा ने त्रिकोण बनाने का प्रयास किया है।
गन्ना भुगतान मुद्दा नहीं रहा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना भुगतान बड़ा मुद्दा होता है। 2022 के चुनाव में यह मुद्दा नहीं रहा क्योंकि लगभग शत प्रतिशत भुगतान हो चुका है। हां, भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने भाजपा को हराने की अपील की है, देखते हैं इसका कितना असर किसानों पर पड़ता है। यह अपील करके राकेश टिकैत ने अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक पारी खेलने का प्रयास किया है। किसानों के सबसे बड़े नेता महेन्द्र सिंह टिकैत ने भी राजनीतिक पार्टी बनाई थी लेकिन वे बुरी तरह असफल रहे थे।
चार कारणों से भाजपा मजबूत
भाजपा की स्थिति मजबूत होने के चार कारण हैं- राशन वितरण योजना, व्यक्तिगत लाभार्थीपरक योजनाएं, दंगा का भय और राष्ट्रवाद। डबल इंजन की सरकार में डबल राशन की चर्चा तो गांव-गांव और हर मोहल्ले में है। चुनाव से कुछ दिन पूर्व लाखों लेबर कार्ड बनाए गए। सबके खाते में 2500 रुपये पहुंच गए। विधवा, वृद्धा और विकलांग पेंशन भी डबल होकर पहुंची है। किसान सम्मान निधि मिल ही रही है। इसके अलावा आवास, शौचालय, बिजली, गैस सिलेंडर वाली योजनाएं भी चल रही है। इन लाभार्थियों से व्यक्तिगत संपर्क करके वोट देने की अपील की गई। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में पेंशन बढ़ाने और साल में दो बार फ्री गैस सिलेंडर देने की बात कही है। सिंचाई के लिए बिजली फ्री देने की घोषणा की है। भाजपा ने सपा के सत्ता में आने पर दंगों का भय दिखाया। बार-बार मुजफ्फरनगर और कोसी (मथुरा) के दंगों की याद दिलाई। मुजफ्फनगर दंगों का सीधा संबंध जाटों से है। दंगों के कारण पलायन करना पड़ा था। दंगों में एकतरफा कार्रवाई हुई। योगी सरकार में पांच साल तक कोई दंगा नहीं हुआ। इसे पार्टी ने सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया है और है भी।
आगरा में क्या होगा
आगरा की बात करें तो 2017 में सभी नौ सीटें जीती थीं। क्या इस बार नौ सीटें मिलेंगी, यही यक्ष प्रश्न है। मतदान से पूर्व तक कहा जा रहा था कि एत्मादपुर, बाह, फतेहाबाद, फतेहपुर सीकरी, खेरागढ़ सीट भाजपा हार सकती है। खेरागढ़ सीट से कांग्रेस, एत्मादपुर, फतेहपुर सीकरी से बसपा और फतेहाबाद से सपा का खाता खुलने की बात कही जा रही था। कुछ पत्रकारों का भी यही आंकलन था। मतदान वाले दिन कुछ और ही स्थिति दिखाई दी। हर सीट पर भाजपा का जोर दिखाई दिया। हर बूथ पर भाजपा का जोर रहा। आगरा ग्रामीण के कई मतदान केन्द्रों पर लोगों ने खुलकर कहा कि वे भाजपा को वोट दे रहे हैं। अन्य दलों ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में जमकर वोट पाए लेकिन भाजपा को हर जगह से वोट मिला है। 2017 में भी जीत का यही कारण था। हां, तब मोदी की लहर थी। इस बार लहर जैसी कोई बात नहीं है, लेकिन सपा के सत्ता में आने पर क्या हश्र होगा, यह समझाने में भाजपा नेता कामयाब रहे।
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