डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. आगरा वह स्थान है जहाँ डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बौद्ध धर्म ग्रहण करने की योजना बनाई थी। 1956 में नागपुर में हुए दीक्षा समारोह की तैयारियों और आंदोलन की पृष्ठभूमि में आगरा को केंद्र माना जाता है। आगरा में दलित चेतना और आंदोलन की जड़ें बहुत गहरी रही हैं। 18 मार्च, 1956 को डॉ. आंबेडकर आगरा आए और बौद्ध धर्म ग्रहण किया। जाटव समाज की बड़ी संख्या, संगठनों की सक्रियता और बहुजन राजनीति ने आगरा को “भारत की दलित राजधानी” बना दिया।
आगरा को दलित राजधानी इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ दलित समाज की सबसे बड़ी आबादी है, दलित चेतना और आंदोलन का मजबूत इतिहास रहा है, आंबेडकरवादी विचारधारा ने यहाँ गहरी जड़ें जमाई हैं और उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति का यह मुख्य गढ़ रहा है। वर्तमान में माना जाता है कि आगरा के दलित बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक है। यह बात अलग है कि बसपा कभी भी आगरा लोकसभा सीट नहीं जीत सकी है। इसके बाद भी दलित वोट बसपा के पक्ष में है।
आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि आगरा को “दलित राजधानी” कहने के पीछे ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक कारण क्या हैं-
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- आगरा वह स्थान है जहाँ डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बौद्ध धर्म ग्रहण करने की योजना बनाई थी।
- 1956 में नागपुर में हुए दीक्षा समारोह की तैयारियों और आंदोलन की पृष्ठभूमि में आगरा को केंद्र माना जाता है।
- यहाँ दलित चेतना और आंदोलन की जड़ें बहुत गहरी रही हैं।
- दलित आंदोलन का गढ़
- 1950–60 के दशक से लेकर आज तक आगरा उत्तर भारत में दलित आंदोलन का सांस्कृतिक और वैचारिक केंद्र बना रहा।
- यहाँ दलितों की बड़ी आबादी है, जिनमें मुख्यतः जाटव (चमार) समाज की संख्या सबसे अधिक है।
- डॉ. भीमराव आंबेडकर की विचारधारा का प्रसार करने में आगरा की अहम भूमिका रही।
- राजनीतिक महत्व
- उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित समाज को संगठित करने का सबसे बड़ा प्रयोग बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने किया और उसका सबसे मजबूत आधार क्षेत्र आगरा रहा।
- मायावती की राजनीति की जड़ें यहीं से गहरी हुईं।
- दलित वोट बैंक के लिहाज से आगरा हमेशा निर्णायक माना गया है।
- सामाजिक-सांस्कृतिक केंद्र
- आगरा में बड़ी संख्या में बौद्ध विहार, आंबेडकर पार्क, प्रतिमाएं और स्मारक बने हैं।
- यहाँ हर साल आंबेडकर जयंती और बुद्ध पूर्णिमा पर बड़े पैमाने पर आयोजन होते हैं।
- देशभर के दलित नेताओं, चिंतकों और कार्यकर्ताओं का जमावड़ा अक्सर आगरा में होता रहा है।
- दलित समाज की संख्या और पहचान
- आगरा ज़िले में दलितों की आबादी बहुत अधिक है, खासकर जाटव समाज की।
- समाजशास्त्रियों के अनुसार, आगरा की पहचान दलितों की सामूहिक राजनीतिक शक्ति और सांस्कृतिक चेतना से बनी।
- यही कारण है कि इसे “भारत की दलित राजधानी” कहा जाने लगा।

आगरा में दलित आंदोलन की प्रमुख घटनाएं
- 1920–1930 का दशक
- आंबेडकर के विचार आगरा पहुँचने लगे।
- स्थानीय दलित बुद्धिजीवियों ने सामाजिक भेदभाव के खिलाफ चेतना जगाना शुरू किया।
- 1940–1950 का दशक
- आगरा में जाटव समाज ने अपने संगठनों के माध्यम से दलित एकता को मजबूत किया।
- “जाटव महासभा” जैसी संस्थाएँ सक्रिय हुईं।
- आगरा में डॉ. आंबेडकर के विचारों के प्रचार के लिए कई सम्मेलन आयोजित किए गए।
- 18 मार्च 1956 : डॉ. आंबेडकर का आगरा दौरा
- डॉ. भीमराव आंबेडकर अंतिम बार आगरा आए।
- उन्होंने दलित समाज से कहा: “शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो।”
- आंबेडकर ने यहाँ घोषणा की थी कि वे बौद्ध धर्म अपनाएँगे।
- इस दौरे के बाद से आगरा दलित चेतना का सबसे बड़ा केंद्र बन गया।
- 1956 : आंबेडकर की मृत्यु और बौद्ध धर्म ग्रहण आंदोलन
- नागपुर में आंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपनाया।
- उनकी मृत्यु के बाद आगरा में बौद्ध धर्म की ओर बड़े पैमाने पर झुकाव हुआ।
- कई दलित परिवारों ने यहाँ बौद्ध धर्म अपनाया।
- 1960–1970 का दशक
- आगरा में बौद्ध विहारों और आंबेडकर स्मारकों का निर्माण शुरू हुआ।
- दलित छात्र संगठनों और समाज सुधार आंदोलनों की गतिविधियाँ तेज़ हुईं।
- 1980 का दशक : बहुजन राजनीति का उदय
- कांशीराम ने बहुजन आंदोलन की नींव डाली।
- आगरा इस आंदोलन का प्रमुख गढ़ बना।
- मायावती को यहाँ से सबसे बड़ा जनसमर्थन मिला।
- 1990 का दशक : बसपा का विस्तार
- आगरा और आसपास के क्षेत्र बसपा की राजनीतिक शक्ति का मुख्य आधार बने।
- यहाँ से कई बार बसपा के सांसद और विधायक चुने गए।
- शहर को “दलित राजधानी” के रूप में देशभर में पहचान मिली।
- 2000 के बाद
- आगरा में बड़े पैमाने पर आंबेडकर पार्क, मूर्तियाँ और स्मारक बने।
- बुद्ध पूर्णिमा और आंबेडकर जयंती पर लाखों लोग यहाँ इकट्ठा होने लगे।
- दलित राजनीति और संस्कृति का यह शहर स्थायी केंद्र बन गया
भारतीय जाटव समाज ने योगी आदित्यनाथ से आगरा बुद्धा पार्क के लिए कराया बड़ा काम
ऐसी दलित राजधानी में दलितों को नए सिर से गोलबंद करने का काम कर रहे हैं उपेंद्र सिंह जाटव। वे भारतीय जाटव समाज के नाम से शुद्ध रूप से सामाजिक संगठन कई वर्षों से चला रहे हैं। पहली बार इस संगठन का नाम उजागर हुआ है। उपेंद्र सिंह जाटव पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं। वे पार्टी में अपनी अलग पहचान के लिए छटपटा रहे हैं। शायद इसी कारण वे आगरा में प्रथम बार भारतीय जाटव समाज का राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं। अधिवेशन का विषय है- समानता एवं समृद्धि।
कहां हो रहा अधिवेशन
यह अधिवेशन 7 सितंबर, 2025 को पूर्वाह्न 11 बजे से राशि रिसोर्ट, नगला शंकर लाल, जगनेर रोड, धनौली, आगरा पर है। मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण आ रहे हैं। वे आईपीएस अधिकारी हैं। श्री असीम अरुण अधिवेशन से पूर्व राजकीय अनुसूचित जाति छात्रावास शाहगंज तथा अधिवेशन के बाद जयप्रकाश नारायण सर्वोद्य विद्यालय इटौरा का निरीक्षण करेंगे। उनके निरीक्षण के वीडियो खासे लोकप्रिय हो रहे हैं।
छह राज्यों से आ रहे प्रतिनिधि
अधिवेशन में राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में पदाधिकारी व जाटव समाज बंधु भाग लेंगे। महिलाओं की सक्रिय उपस्थिति और समाजसेवियों का सम्मान समारोह अधिवेशन की विशेषता होगा। 60 से अधिक पदाधिकारी पिछले एक माह से सतत रूप से लगे हुए हैं।
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