आगरा, 06 अप्रैल। आज़ादी के सिपाही, मार्क्सवादी विचारक महादेव नारायण टंडन की 22 वीं पुण्यतिथि पर माथुर वैश्य सभागार, पचकुड्यां पर ‘हमारी हिंदी के अवसर और संकट’ विषयक व्याख्यान में कहा गया कि हिंदी ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो अंग्रेजी के प्रसार और प्रभुत्व का डटकर मुक़ाबला कर सकती है।
बाबा आमटे दिव्यांग विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति डॉ. देव स्वरुप ने टंडन के अविस्मरणीय एवं अतुलनीय व्यक्तित्व को याद किया। विषय प्रवतन् करते हुए डॉ. जे. एन. टंडन ने कहा आज हिंदी का संकट यही है कि हिंदी भाषी नई रागात्मक निष्ठा के सांस्कृतिक स्तर पर भाषा से कटा हुआ है. हमे हिंदी को सिर्फ बोलने की नहीं अपनाने की ज़रूरत है।
अतिथि वक्ता प्रख्यात मीडिया विश्लेषक प्रो. अभय कुमार दुबे ने कहा कि शुरुआत से ही हिंदी का संघर्ष तितरफ़ा था. पहली समस्या यह थी कि उसे एक बेहद बहुभाषी देश में यूरोपीय शैली की राष्ट्रभाषा को थोपे बिना भारतीय संघ की राजभाषा बनना था। दूसरी समस्या यह थी कि इस प्रक्रिया में महज़ सरकारी कामकाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली राजभाषा और सभी के लिए अनिवार्य राजभाषा के बीच घालमेल कैसे रोका जाए।
तीसरी और सबसे बड़ी समस्या यह थी कि राजभाषा के रूप में हिदीं को अन्य भाषाओं पर आरोपित किये बिना राष्ट्रीय एकता के सर्वमान्य उपकरण में कैसे बदला जाए। अंततः हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो अंग्रेज़ी के प्रसार और प्रभुत्व का मुक़ाबला कर सकती है। अंग्रेज़ी को कोने में धकेल कर भारत की सम्पर्क भाषा बनना और राष्ट्रीय एकता का भाषिक आधार प्रस्तुत करना ही हिंदी का प्रारब्ध है।
इससे पूर्व व्याख्यान की शुरुआत वरिष्ठ शिक्षाविद एवं कवयित्री कार्यक्रम अध्य्क्ष डॉ. कुसुम चतुर्वेदी, अतिथि वक्ता प्रो. अभेय कुमार दुबे, डॉ. देव स्वरुप, पूरन सिंह. भावना जितेंद्र रघुवंशी ने की।
कार्यक्रम का संचालन हरीश चिमटी ने किया। पूरन सिंह ने आभार व्यक्त किया। पूर्व मंत्री उदय भान सिंह, रामनाथ गौतम, ज्योत्सना रघुवंशी, दिलीप रघुवंशी, डॉ. वी आर सेंगर, डॉ. राकेश भाटिया, डॉ. अजय कालरा, डॉ. सुनील शर्मा, डॉ अनुपमा शर्मा, डॉ. अनुपम गुप्ता, शरीफ उस्मानी, शिवराज यादव, डॉ संजय कुलश्रेष्ठ, डॉ एस एस सूरी, डॉ अनूप दीक्षित, डॉ रजनीश त्यागी, डॉ जय बाबू, डॉ विजय कत्याल, डॉ मुकेश भारद्वाज, राम नाथ शर्मा, रमेश पंडित, डॉ. रजनीश गुप्ता, डॉ. मधुरिमा शर्मा, नीरज मिश्रा, डॉ. मुनीश्वर गुप्ता आदि उपस्थित थे।
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