पूरन डावर आगरा

‘जूता उद्योग विरासत और चुनौतियां’ विषयक कॉनक्लेव में प्रसिद्ध शू एक्सपोर्टर पूरन डावर ने कहा, सब सोचें पूरन डावर कैसे बनना है?

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. आगरा का जूता उद्योग देश-विदेश में प्रसिद्ध है, लेकिन इसके सामने आज कई चुनौतियाँ खड़ी हैं। विशेष रूप से, इस व्यवसाय में लगे परिवारों के बच्चों की रुचि में कमी देखी जा रही है, जिसके कारण भविष्य में इस उद्योग का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इस बात से चिंतित अपना उद्योग कल्याण समिति आगरा ने ‘जूता उद्योग विरासत और चुनौतियां’ विषयक कॉनक्लेव होटल ग्रांड आगरा कैंट में किया। इसमें लघु जूता उद्यमियों को उपयोगी सलाह दी गई। देश-दुनिया के जाने-माने जूता निर्यातक पूरन डावर ने कहा, सभी जूता उद्यमी सोचें कि पूरन डावर कैसे बनना है। प्रसिद्ध शू डिजाइनर देवकी नंदन सोन ने शू विलेज की मांग की। सामाजिक चिंतक अरुण डंग ने जूता का रोचक इतिहास बताया। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह ने कहा कि हुनरमंद के लिए काम की कोई कमी नहीं है।

जूता की उत्तपत्ति आगरा में हुई

पूरन डावर ने कहा, जूता को जी.आई. टैग (Geographical Indication Tag) मिलने से सिद्ध हो गया है कि जूता की उत्तपत्ति आगरा में हुई है। इसमें देवकीनंदन सोन की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने सात पीढ़ियों के इतिहास को जीआई टैग समिति के समक्ष रखा।

लाहौर की घटना

उन्होंने लाहौर की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वहां भल्ला ने जूते की दुकान खोली थी। उनके खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया क्योंकि कोई भी सवर्ण जूता का काम नहीं करता था। इसके बाद भी भल्ला ने इस आंदोलन को हवा दी। इसके बाद ‘भल्ले दी हट्टी’ प्रसिद्ध हो गई। इसका प्रभाव यह हुआ कि भारत बँटवारे के बाद पाकिस्तान से आगरा आए शरणार्थियों ने जूता का व्यवसाय शुरू किया। हींग की मंडी में जूता का सारा काम शरणार्थी करते हैं।

हमारे यहां कोई जाति नहीं थी

श्री डावर ने कहा कि हमारे यहां कोई जाति नहीं थी। व्यक्ति की पहचान उसके काम से थी। चमड़े का काम करने वाले चर्मकार, शाक-भाजी का काम करने वाले शाक्य, शास्त्र में पारंगत लोग ब्राह्मण, व्यापार में संलग्न लोग वैश्य, शस्त्र में पारंगत क्षत्रिय कहलाते थे। जिस काम को आज छोटा कहा जाता है, वही काम करने वाले देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे। भारत सोने की चिड़िया इसलिए कहलता था क्योंकि हर हाथ को काम था।

ऐसी डिग्री को फाड़कर फेंक दो

उन्होंने कहा कि वह शिक्षा और डिग्री बेकार है, जिसने हुनर छीन लिया हो। ऐसी डिग्री को फाड़कर फेंक दो। मैं पढ़-लिखकर एक्सपोर्टर हो गया वरना जूता दस्तकार ही रहता। पढ़-लिखकर काम को सम्मानजनक बनाया जाता है।

पूरन डावर आगरा
अतिथि अरुण डंग, देवकी नंदन सोन और डॉ. भानुि प्रताप सिंह के साथ अपना उ्दयोग कल्याण समिति के पदाधिकारी।

जूता के जनक राजनीति की भेंट चढ़ गए

श्री डावर ने कहा कि जूता के जनक राजनीति की भेंट चढ़ गए हैं। उन्हें नौकरी का झुनझुना थमाया गया जबकि सरकारी और निजी क्षेत्र मे सिर्फ 7 फीसदी नौकरियां हैं। 93 फीसदी को नौकरी नहीं मिलेगी। आने वाले समय में नौकरियां और कम होंगी क्योंकि ए.आई. के आने से 100 आदमियों का काम एक आदमी करेगा।

पूरन डावर की सलाह

  1. अपना कोई भी काम हो, उसे ठीक से करो तब दूसरे का काम भी ठीक से कर पाओगे।
  2. शिक्षा की शक्ति आपके काम का अच्छा बनाती है।
  3. ऐसी डिग्री को फाड़कर फेंक दो जो आपको काम करने से रोकती है।
  4. जिनके पास हुनर और पारंपरिक काम है, उससे बड़ा कोई काम नहीं हो सकता है।
  5. जब मैं मलपुरा के शरणार्थी शिविर से यहां तक पहुंच सकता हूँ तो कोई भी पहुंच सकता है, सिर्फ सोच बदलने की जरूरत है।
  6. मेरा बेटा इंग्लैंड में पढ़कर आया लेकिन वह अपना पारंपरिक जूता बनाने का काम करता है।
  7. छोटे कामों से भी पैसा बनाया जा सकता है क्योंकि छोटे से गांव में बैठकर भी दुनियाभर में कुछ भी बेचा जा सकता है।
  8. जिसके पास दुकान खोलने के लिए पैसा नहीं, वह घर बैठकर जूता बेच सकता है। आम जूता से हटकर अलग जूता बनाना होगा। ऑनलाइन में पूरा विश्व बाजार है। एक व्यक्ति ने लंबाई अधिक करने वाले जूता बनाया। 75 पेयर प्रतिदिन बनाने वाली कंपनी आज 120 करोड़ रुपये की हो गई है।
  9. ऐसा काम करने के लिए पांच कारीगर बहुत हैं। जीरो से 55 साइज तक का जूता बनाओ। जो जूता बाजार में नहीं मिलता, जो फैक्टरी में आसानी से नहीं बनते, वह बनाओ तो ऑनलाइन बिकेगा। फिर 2000 रुपये की कीमत का जूता 7000 रुपये तक में बेच सकते हैं।
  10. युवा पीढ़ी अपने पारंपरिक काम को न छोड़े। युवा पीढ़ी अमेरिका जाकर ऐश कर सकती है लेकिन माता-पिता की जीवन न सुधरा तो बेकार है।
  11. पढ़-लिखकर काम करना है, पढना लिखना नौकरी के लिए है, यह सोचना भूल है।
  12. एमपी, एमएलए, आईएएस होकर भी दलित बने रहना आरक्षण का दुरुपयोग है। आरक्षण का लाभ असली हकदार तक नहीं पहुंचा है।
  13. आज फाइनेंस की कोई कमी नहीं है। पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है। 140 करोड़ मैन पॉवर को पूंजी बनाना है। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे नारे शीघ्र ही सार्थक होंगे।
  14. जूता का भविष्य उज्ज्वल है।
  15. आजकल फाइनेंस की कोई कमी नहीं है।
  16. सब सोचें कि के पूरन डावर कैसे बनना है।

अध्यक्ष और महासचिव ने क्या कहा

समिति के अध्यक्ष राजकुमार पारस और महासचिव कमल दीप ने बताया कि कॉनक्लेव का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। युवा पीढ़ी को इस परंपरागत व्यवसाय की ओर आकर्षित होगी। कॉन्क्लेव के माध्यम से जूता उद्योग से जुड़े उद्यमियों को अपने अनुभव साझा करने का अवसर मिला। नई दृष्टि से उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए दिशा-निर्देश मिले हैं।

उल्लेखनीय उपस्थिति

कार्यक्रम में समिति के संरक्षक सीताराम, अध्यक्ष राजकुमार पारस, महासचिव कमलदीप, उपाध्यक्ष सुनील कुमार और मनीष कुमार, कोषाध्यक्ष करतार सिंह, मीडिया को-ऑर्डिनेटर नितिन कुमार, ग्रुप को-ऑर्डिनेटर देशराज, प्रचार सह-संयोजक सागर कुमार, संयोजक दिनेश दास संत जी और कार्यकारी सदस्य अरुण सिंह, राम बाबू कैन तथा बलवीर सोनी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

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Dr. Bhanu Pratap Singh