29 मई को चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि है। उन्हें उत्तर प्रदेश और भारत के अन्य कई राज्यों में कृषि सुधारों के अग्रदूत के रूप में जाना जाता है। उन्होंने सबसे प्रशंसित और क्रांतिकारी कृषि सुधार – उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1952 की कल्पना की और उसे तैयार किया। आज बहुत से बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर उस समय उस सुधार को लागू नहीं किया गया होता, तो आज उत्तर प्रदेश छत्तीसगढ़ की जगह माओवादी और नक्सली विद्रोहियों का गढ़ बन गया होता, क्योंकि किसानों की संख्या बहुत ज़्यादा थी, जिनके पास जमीन रखने का अधिकार नहीं था।
लाखों लोग पीढ़ियों से ज़मीनदारों के खेतों पर खेती कर रहे थे, जबकि उनके पास ज़मीन के अधिकार नहीं थे। चरण सिंह ने देश को आज़ादी मिलने से पहले ही भविष्य के ग्रामीण वर्ग-युद्धों का पूर्वानुमान लगा लिया था। उन्होंने ग्रामीण इलाकों का व्यापक दौरा किया और ऐसे किसानों से बातचीत की। उन्होंने अपनी अच्छी तरह से शोध की गई और दस्तावेज़ों में दर्ज नीतियों के जरिए कांग्रेस नेतृत्व को भरोसे में लिया। फिर इसे विधेयक के रूप में पेश किया और अकेले ही सभी प्रश्नों और आशंकाओं का उत्तर दिया। इसे पारित कराया और जुलाई, 1952 से इसका क्रियान्वयन शुरू किया। (उस समय अमर उजाला की यह खबर इसका प्रमाण है)।
फैजाबाद के डिप्टी कमिश्नर (डीएम) के रूप में कैप्टन भगवान सिंह ने इस क्रांतिकारी घटना की याद में गुलाबवाड़ी (फैजाबाद) में एक टॉवर बनवाया। रातोंरात लाखों भूमिहीन किसान उस जमीन के मालिक बन गए, जिस पर वे पीढ़ियों से खेती कर रहे थे। यह एक ऐतिहासिक निर्णय, जिसके निर्माता चौ. चरण सिंह थे, एक गेम चेंजर साबित हुआ और इसके परिणामस्वरूप इस विशाल राज्य में भविष्य में होने वाले वर्ग विद्रोह या नक्सली विद्रोह को रोका जा सका।

पिछली सदी के नब्बे के दशक में ही मूल रूप से कम्युनिस्ट ई.एम.एस. नंबूदरीपाद ने चरण सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था – “हम कम्युनिस्ट होने के नाते भूमि सुधारों को बनाने और लागू करने में विफल रहे, जिसे यूपी में कांग्रेस के मंत्री चरण सिंह ने आजादी के तुरंत बाद पूरा किया था!”
मेक्सिको, मनीला और टोक्यो में कृषि वैज्ञानिक रात-रात भर प्रयोगशालाओं में गेहूं और चावल की उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने के लिए काम कर रहे थे, जिसके कारण 1965 के आसपास हरित क्रांति हुई, वहीं चरण सिंह ने 1950 के दशक में ग्रामीण उत्तर प्रदेश में खेतों को तैयार किया ताकि वे बीज जड़ पकड़ सकें और अनाज पैदा कर सकें।
उन्होंने चकबंदी कानून लागू किया, जिसके तहत किसानों की बिखरी हुई जमीन को एक या दो जगहों पर जोड़ दिया गया, जहां किसान सिंचाई की सुविधा जुटा सकते थे। उन्होंने सहकारी बैंकों के माध्यम से सीमांत और छोटे किसानों के लिए सूक्ष्म वित्त पोषण का प्रावधान करवाया। वे इन ऋणों के माध्यम से बहुत कम ब्याज दरों पर कुएं, ट्यूबवेल बना सकते थे। भूमिहीनों को भूमि के टुकड़े उपलब्ध कराने के लिए चरण सिंह ने कानून बनाया और भूमि हदबंदी कानून लागू किया। बड़े जमींदारों से बची हुई जमीन भूमिहीन किसानों को आवंटित करने का प्रावधान किया गया।
जब 1965 के आसपास उत्तर प्रदेश में उच्च उपज देने वाली किस्म के बीज पेश किए गए, तो हमारे किसान एक सघन भूमि, उसके पास सिंचाई की सुविधा और ऐसे बीज खरीदने के लिए पर्याप्त ऋण/पैसा के साथ अच्छी तरह तैयार थे। हरित क्रांति लाने का सारा श्रेय नोबेल पुरस्कार विजेता नॉर्मन बोरलॉग और एम.एस. स्वामीनाथन को जाता है, लेकिन इसे एक झटके में सफल बनाने वाले चरण सिंह का योगदान भी कम उल्लेखनीय और उत्कृष्ट नहीं है। उनके नेतृत्व में किसानों की यात्रा महज किसान से लेकर खेती की जमीन के असली मालिक बनने और अब अपने घरों में इतना अनाज रखने तक की हैसियत हासिल करने तक पहुंची कि वे अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों को पूरा कर सकें।
जिन वर्षों में कृषि परिवर्तन के लिए ये क्रांतिकारी नीतियां बनाई गईं, उन वर्षों में चरण सिंह को कांग्रेस में अपने सहयोगियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन सीएम जीबी पंत के समर्थन से उन्हें अपनी पसंद की दिशा में नीतियां बनाने की शक्ति मिली। उस समय के नेतृत्व और चरण सिंह जैसे मंत्री की आम किसानों के प्रति भक्ति और जुनून को सलाम! आम किसानों से लेकर नौकरशाहों तक सभी ने माना कि वे एक साथ गंभीर, ईमानदार और भ्रष्ट अधिकारियों के लिए खौफ थे।
चोब सिंह वर्मा, आईएएस (सेवानिवृत्त)
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