आगरा। अब परम्परागत रिसर्च चलने वाली नहीं। भारत का इतिहास बहुत सम्वृद्ध है, जो विश्व को संदेश देता है। मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च के दौर में प्रयोगशाला में कैद होने से रिसर्चर नहीं बनने वाले। इसके लिए धरातल पर उतरना पड़ेगा। हम सबको मिलकर एक ऐसे सिस्टम को खड़ा करना होगा, जिसमें विकास के साथ युवाओं को लाभ भी हो। यह कहना था मिनिस्ट्री एनवायरमेंट ड फारेस्ट्री के एडवायजर प्रो. केएस राणा का। जो विवि के संस्कृति विभाग में कौशाम्बी फाउंडेशन, नीलम ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन व डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री ड कल्चर से संयुक्त संयोजन में आयोजित तीन दिवसीय इंटरनेशनल कांफ्रेंस इन मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च एंड प्रैक्टिस फार सस्टेनेबल डलवपमेंट एंड इनोवेशन कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट एंड फारेस्ट्री के एडवायजर प्रो. के एस राणा ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया। अतिथियों का स्वागत कौशाम्बी फाउंडेशन के चेयरमैन लक्ष्य चौधरी ने स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया। विवि की कुलपति उपस्थित विद्यार्थियों को मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च की व्याख्या कर विस्तार से समझाया।
मुख्य वक्ता विग्नेश त्यागी ने कहा कार्यशाला में सभी विषय समाहित है। शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। किसी एक विषय को किसी एक विषय का अध्ययन करके नहीं जाना जा सकता। सभी विषय एक दूसरे से इंटररिलेटिड हैं। पहले इसकी बहुत आवश्यकता नहीं थी, परन्तु अब भविष्य की चुनौतियों व उसके समाधान के लिए आज मल्टीडिसिप्लिनरी के साथ शोध के क्षेत्र में आगे बढ़े। आगरा विरासत की नगरी है। आज इतिहास को खोजने और जानने में विज्ञान की भी जरूरत है। इतिहास की इस भ्रांति को विज्ञान ने ही दूर किया कि आर्य भारतीय नहीं थे। भ्रांति थी कि अग्रेज, पुर्तगाली, मुगल, खिलजी बाहर से आए इसी तरह आर्य भी बाहर से आए थे।
विज्ञान के साक्ष्य डीएनए ने बताया कि आर्य भारतीय थे। कहा कि सूर्य की मूर्ति एक घोड़ा नहीं सात घोड़े दिखते हैं। 600 वर्ष पहले तक पता नहीं था सूर्य की रश्मि सात रंगों से मिलकर बनी है। विज्ञान ने इस बात को खोजा। यथा पिंडे तथा ब्रामांडे को आज के शोध साबित कर रहे हैं।
वेद पुराणों में जो लिखा है वह शब्द नहीं मंत्र हैं
प्रो. तीर्थेश कुमार सिंह ने कहा कि सस्टेनिबल डबलपमेंट वह है जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए भविष्य का भी खयाल रखे। शोध हो या विकास भविष्य की जरूरतों को संरक्षित करते हुए आगे नहीं बढ़ेंगे तो हमारी रिसोर्स समाप्त होते चले जाएंगे। विज्ञान भी दो भागों में विभक्त होता जा रहा है। प्राच्य विज्ञान और आधुनिक विज्ञान। कभी कल्पना किजिए जो कुछ वेदों में बिना किसी उपकरणों की मदद के लिखा गया, चाहें वह एस्ट्रोनॉमी हो वह आज सत्य हो रही है, जब उन्हें उपकरणों से शोध किया जा रहा है।
50 रुपए का पंचांग ग्रहणों के बारे में सटीक व्याख्या करता है जो नासा के बड़े बड़े उपग्रहों पर खर्च करके हो पाते हैं। अब समय आ गया कि हमें आधुनिक उपकरणों के साथ अपने प्राच्य साहित्य में चाहे वेद हो या पुराण, जो लिखा है वह शब्द नहीं मंत्र हैं। उनकी व्याख्या होनी चाहिए। हमें आदत हो चुकी है अपनी चीजों को छोड़कर आगे बढ़ने की। शहरों का विकास तो हो रहा लेकिन समानान्तर रूप से स्लम भी विकसित हो रहे हैं। सरकारी अधिकारी और समाज दोनों जिम्मेदार हैं।
सस्टेनिबल डवलपमेंट के लिए गरीबी, खाना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ वातारवण, स्वच्छ पानी, क्लीन एनर्जी जैसे सात गोल को पूरा करना बहुत जरूरी है। यह सभी गोल हमारी संस्कृति और संस्कार में पहले से थे। आखिल हम कब विकास की कंक्रीट वाली रेस में सामिल हो गए। पहले के लोग ज्यादा ईकोफ्रेंडली हुआ करते थे। जहां हम आवस्यकता से ज्यादा लेने की बात करते हैं वहीं से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना शुरु कर देते है। हमें पर्यावरण के साथ सहजीवन की तरह जीना चाहिए।
कार्यशाला में देश विदेश के 500 से अधिक प्रतिनिधि ले रहे हैं भाग
कौशाम्बी फाउंडेशन के चेयरमैन लक्ष्य चौधरी ने बताया कि कार्यशाला में इटली, यूएस, कनाडा, श्रीलंका, नेपाल, यूगांडा के 50 प्रतिनिधियों सहित देश भर के 500 से अधिक प्रतिनिदि भाग ले रहे हैं। कार्यशाला में विभिन्न विषयों पर 150 रिसर्च पेपर व 50 पोस्टर प्रस्तुत किए जा रहे हैं। 17 दिसम्बर को रिसर्च पेपर ऑन लाइन व ऑफ लाइन प्रस्तुत के जाएंगे। 18 दिसम्बर को समापन समारोह का आयोजन किया जाएगा।
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