5th Global Taj International Film Festival

सोते और मरते आगरा में 5वां ग्लोबल ताज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, कुलपति प्रो. आशु रानी ने कहा- शुरू करेंगे फिल्म लेखन का कोर्स, आयोजक सूरज तिवारी ने यूपी फिल्म नीति की धज्जियां उड़ा दीं

ENTERTAINMENT

बृज भाषा की ओपनिंग फिल्म बासन के संवाद समझ में नहीं आए

स्वागत सम्मान के चक्कर में अंत तक जमे रहे कई साहित्यकार

4, 5 नवम्बर को 29 फिल्मों का प्रदर्शन प्रातः 10 बजे से, जरूर देखें

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, Bharat, India. सोते और मरते आगरा में 5वां ग्लोबल ताज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (GTIFF- 2023) शुरू हो गया। उद्घाटन समारोह में आयोजक सूरज तिवारी ने उत्तर प्रदेश सरकार की फिल्म नीति की धज्जियां उड़ा दीं। सरकार की बेरुखी से खासे खफा सूरज तिवारी ने कहा- अगला फिल्म फेस्टिवल नहीं कर पाऊँगा। अन्य वक्ताओं ने उन्हें सहयोग का वचन दिया। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी ने फिल्म लेखन का कोर्स शुरू करने की बात कही। उनके इस कथन से फिल्म क्षेत्र में रुचि रखने वाले खुश हो सकते हैं। फिल्म फेस्टिवल में 100 फिल्में आईं हैं, जिनमें से 10 देशों की 30 फिल्मों का चयन हुआ। अगले दो दिन में इनका प्रदर्शन किया जाएगा।

ग्लैमर लाइव फिल्म और डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के आईटीएचएम  के संयुक्त बैनर तले जेपी सभागार खंदारी कैम्पस में फिल्म फेस्टिवल का शुभारंभ हुआ। अतिथियों ने माँ सरस्वती,  गणपति और दादा साहेब फाल्के के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलित किया। मंचासीन अतिथियों का माला, पटका एवं प्रतीक चिह्न देकर स्वागत किया गया। जेपी सभागार पूरा भर नहीं पाया, शायद इसीलिए संचालक हरीश चिमटी को कहना पड़ा- सोते और मरते आगरा में फिल्म फेस्टिवल का पांचवां संस्करण है। कालिंदी डांस एन्ड म्यूजिक अकादमी के कलाकारों ने राधा-कृष्ण नृत्य प्रस्तुत किया। पहले सत्र में फिल्म मेकर, डेलिगेट्स आदि ने रजिस्ट्रेशन कर अपना अपना शेड्यूल एवं आई कार्ड्स प्राप्त किए।

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फेस्टिवल निदेशक सूरज तिवारी अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए।

आयोजक सूरज तिवारी ने कहा- भारत में 1600 से 1900 फिल्में हर साल बनती हैं, जो दुनिया में सर्वाधिक हैं। 90 से अधिक देशों में रिलीज होती हैं। 22 से अधिक भाषाओं में बनती है जो दुनिया में कहीं नहीं बनती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार नोएडा में फिल्म सिटी बनाने का प्रयास कर रही है। हमारे फिल्म फेस्टिवल में निर्देशक, लेखक, निर्माता आदि एक मंच पर आते हैं, उनकी फिल्मों का प्रदर्शन होता है, जो किसी कारण से रिलीज नहीं हो पाती हैं। एक दूसरे से संपर्क होता है। इससे समाज जागरूक होता है। सिनेमा समाज का दर्पण है। सर्वाधिक हेरिटेज उत्तर प्रदेश के आगरा में हैं। यहां शूटिंग के लिए शानदार लोकेशन हैं। फिल्में रोजगार का बड़ा माध्यम है। हमें सर्वाधिक सहयोग विश्वविद्यालय से मिलता है।

श्री तिवारी ने पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा- दुख इस बात की है कि सरकार ऐसी चीजों की घोषणा करती है, जिन पर अमल बिलकुल हो नहीं पाता है। पांच साल से लगातार लखनऊ के चक्कर काट रहा हूँ। उत्तर प्रदेश फिल्म नीति को दिखाते हुए कहा कि इसे आप पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि अनुदान दिया जाएगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। समाचार पत्रों में विज्ञापन देखते होंगे कि फिल्म इंडस्ट्री नोएडा आ रही है, लोगों को रोजगार मिलेगा लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। चींजें कुछ हैं और हकीकत कुछ है। फिल्म रोजगार का साधन है। दुख हो रहा है कि शायद इस फेस्टिवल को अगले साल कर ही न पाऊँ क्योंकि बहुत थकान हो गई है, लेकिन मेरी फिल्म की यात्रा चलती रहेगी।

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डॉ. भीमरावआंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी।

कुलपति प्रो. आशु रानी ने कहा कि फिल्म बनाने में लिखना, निर्देशन, संपादक, फिल्मांकन और प्रसार में एक सब्जेक्ट छिपा हुआ है। हमारे छात्रों में प्रतिभा होती है, लेकिन डिग्री हासिल नहीं की है तो विमुख हो जाते हैं। बचपन से फिल्मों में जाने को यही समझते हैं कि हीरो बनेगा। फिल्म एक तकनीक भी है। कुछ फिल्म इंस्टीट्यूट को छोड़ दें तो कहीं भी फिल्म निर्देशन नहीं सिखाया जाता है। मैं इस सब्जेक्ट का सुनहरा भविष्य देखती हूँ। विश्वविद्यालय इस तरह के आयोजन से मोटीवेट है। यदि समाज का साथ इस प्रकार के क्षेत्रों में भी मिलेगा तो बहुत अच्छा रहेगा। एनीमेशन और कार्टून फिल्मों का करोड़ों का बजट होता है और कितने ही कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के छात्र काम करते हैं। बाद में उन्होंने बातचीत में कहा कि आशा है अगले सत्र से फिल्म पर कोर्स शुरू कर सकेंगे।

मुख्य अतिथि विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल ने कहा कि आगरा से जूता, कालीन, मार्बल का सामान खऱीदने आते हैं। आगरा इतना बड़ा केन्द्र रहा है कि पिछले 800 वर्षों में विदेशी राजनयिकों ने कब्जा किया। आगरा में फिल्म के लिए देश और विदेश के लोगों को एकत्रित किया है। उन्होंने कहा कि फिल्म ज्वलंत मुद्दों पर बनती है और बनाते समय मुद्दा समाप्त हो गया तो बहुत घाटा हो जाता है।

एफमैक के अध्यक्ष और जाने-माने समाजसेवी पूरन डावर ने कहा कि  फिलमों के माध्यम से समाज में बड़ा संदेश जाता है। यहां 100 से अधिक फिल्में आई हैं, जो कार्यक्रम की सफलता को दर्शाता है। शॉर्ट फिल्म नए कलाकारों को जन्म देती हैं। यह कला की साधना की इंडस्ट्री है जो सही तरीकों से काम करने पर एक पहचान तो बनाती ही है, साथ ही आर्थिक रूप से भी ताकत और रोजगार देती है।

फ्रांस की प्रसिद्ध कलाकार मैरिने बोर्गो ने इंडिया में लोकेशन को सुखद बताया पर यहाँ अनुमति आदि को बड़ा दर्दभरा बताया।

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सम्मान समारोह

आगरा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और पर्यटन विशेषज्ञ डॉ. लवकुश मिश्रा ने कहा– एक समय था जब कश्मीर में बम विस्फोट होता था तो गोवा और केरल में आने वाले पर्यटक रुक जाते थे। फिर सरकार ने नीति बनाई और हर राज्य ने अपने यहां के पर्यटन का प्रचार शुरू किया। इसका लाभ यह हुआ कि अगर कश्मीर में बम फटा है तो गोवा सुरक्षित है। राज्यों में पर्यटन की तरह फिल्म प्रोडक्शन में भी प्रतियोगिता होनी चाहिए।

नेशनल चैम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष और जाने-माने कर अधिवक्ता अनिल वर्मा, बुलंद हाउसिंग के चेयरमैन पीएल शर्मा, ऑर्डिनेस फैक्ट्री हजरतपुर के महाप्रबंधक अमित सिंह ने सूरज तिवारी को भरोसा दिलाया कि आगरा आगामी फिल्म फेस्टिवल में पूरी मदद करेगा। फेस्टिवल के संरक्षक रंजीत सामा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए इस आयोजन को शहर के नए उद्योग की ज़रूरत बताया।

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राधा-कृष्ण नृत्य की प्रस्तुति।

फ़िल्म की स्क्रीनिंग में मंगल सिंह धाकड़ मार्क ज्वेल्स के निदेशक, साहित्यकार श्रुति सिन्हा, नाटककार राजीव सिंघल, महामंत्री अरविंद गुप्ता, गगन मित्तल निदेशक हिन्द फ़ूड हब, विनोद यादव लेक्चरर, मुकेश नेचुरल, मन शुक्ल प्रोड्यूसर एसोसिएशन के महाससहिव, नासिक के प्रोड्यूसर बीएस जोगदंड,  सत्यप्रकाश तीतल, प्रो. बृजेश चंद्रा, संजय गुप्त, शरद गुप्ता, विजय गोयल संपादक, डॉ. भानु प्रताप सिंह, राजेन्द्र मिलन, राजबहादुर सिंह राज, अशोक अश्रु, डॉ. मधु भारद्वाज, आरोही इवेंट्स के अमित तिवारी, पवन आगरी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

फेस्टिवल डायरेक्टर सूरज तिवारी ने धन्यवाद देते हुए बताया कि 4 नवंबर को पूरे दिन देश विदेश की कई फिल्में स्क्रीन होंगी। आइए और देश- दुनिया की कहानियों को पर्दे पर निःशुल्क देखिए जो समाज में जनजागरण का काम कर रहीं हैं।

 

ओपनिंग फिल्म बासन के संवाद समझ नहीं आए

उद्घाटन सत्र में बृज भाषा की फिल्म बासन का प्रदर्शन हुआ, जिसका ऑडियो शुरू से ही बहुत खराब रहा। अधिकांश संवाद समझ ही नहीं आ रहे थे। अच्छा है कि संवादों को अंग्रेजी में स्क्रीन पर प्रदर्शित किया गया था, इस कारण बातें पल्ले पड़ रही थीं। हां फिल्मांकन ठीक था। इस फिल्म के निर्माता निर्देशक मध्य प्रदेश के जितांक सिंह गुर्जर हैं। यह फिल्म गांव की पृष्ठभूमि और प्रथाओं पर बनी है। स्क्रीनिंग के दौरान फ़िल्म की टीम भी मौजूद थी। पर्दे पर पता नहीं क्या खराबी आ गई कि टाइल्स नजर आ रहे थे।

 

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फिल्म फेस्टिवल में साहित्यकारों का सम्मान।

स्वागत के चक्कर में साहित्यकार जमे रहे

फिल्म फेस्टिवल में साहित्यकारों का सम्मान किया गया। इस कारण वे कार्यक्रम के अंत तक जमे रहे। इनके कारण फेस्टिवल में रौनक बनी रही।

Dr. Bhanu Pratap Singh