भारत विभाजन पूरन डावर

15 अगस्त गर्व का दिन लेकिन 14 अगस्त 1947 भारत विभाजन, मजबूर हिंदुओं की लाशों से भरी हुई रेलगाड़ियां, शरणार्थी कैम्प, याद कर रूह काँपती है, पूरन डावर बता रहे इतिहास से सबक लेने वाली सच्ची कहानी

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Agra, Uttar Pradesh, India. इतिहास सदैव एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय रहा है। इतिहास का महत्व इसलिए है जो त्रुटियां इतिहास में हुई है वह दोहरायी न जायें। जो व्यक्ति या देश इतिहास से सबक नहीं लेते या इतिहास झुठलाते हैं, वे विलुप्त हो जाते हैं। हमें इतिहास में जीना नहीं है जीना वर्तमान में हैं, लेकिन इतिहास में जो घटा उसकी पुनरावृत्ति न हो इसके लिये चिंतन हर पल जरूरी है। सावधानी हटी दुर्घटना घटी।

 

हम 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं। किसी भी राष्ट्र के लिये स्वतंत्रता से बड़ा कुछ भी नहीं हो सकता। नि:संदेह देश के लिये 15 अगस्त, 1947 गर्व का दिन है। इस दिन के लिये लाखों कुर्बानियां हुई हैं। लेकिन ठीक एक दिन पहले, इतिहास के उस काले पृष्ठ को भूल जाना भारी भूल होगी। 14 अगस्त, 1947 को देश के विभाजन की वो विभीषिका जो मेरे परिवार जैसे लाखों परिवारों ने देखी है, उसे स्मरण कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लाखों की संख्या में पंजाब और सिंध से पलायन धर्म परिवर्तन को मजबूर हिंदुओं से कटी हुई रेलगाड़ियां, वो शरणार्थी कैम्प, उस मंज़र को याद कर रूह काँपती है।

 

मेरा परिवार भी उन परिवारों में से एक था। मेरा परिवार जो डेरा गाजी खान में प्रतिष्ठित समृद्ध परिवार था, जैसे-तैसे जिंदा आगरा पहुँचने में सफल हुआ और मलपुरा के कैम्प में रहा। कैम्प से यहाँ तक पहुँचने के प्रयास, माता-पिता की अनगिनत कुर्बानियां जो पूँजी बचा छिपा कर ला पाये थे वो प्रारम्भिक कारोबार में लग गई। असफलताओं का दौर लेबर से लेकर, दूध, दर्जी, कोयला-लकड़ी का बेचना, बेलचे से भर छानने से लेकर ठेल लादना भले ही अब भूल चुके हों, क्योंकि ईश्वर ने न्याय किया।

उच्च शिक्षा के साथ-साथ उद्यमशीलता जो परिवार ने विरासत में जींस में दी थी उसमें आशातीत सफलता मिली, लेकिन उस इतिहास को, उस विभीषिका को भुला पाना या भूल जाना एक बड़ी भूल हो सकती है। हम जियें वर्तमान में लेकिन इतिहास को कभी न भूलें।

पूरन डावर

उद्योगपति, लेखक, चिंतक एवं विश्लेषक

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