हम सभी लोग जानते हैं पर्यावरण में पशु पक्षियों का बहुत बड़ा योगदान होता है। इनमें गौरैया पर्यावरण को न केवल सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण देती है बल्कि अपनी मधुर आवाज से मानव जीवन में एक उत्साह और खुशी का माहौल भी पैदा करती है। गौरैया के संरक्षण हेतु प्रत्येक वर्ष विश्व में 20 मार्च को गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है।
गौरैया के बारे में
द नेचर फॉर सोसाइटी ऑफ इंडियन एनवायरनमेंट(भारत) और इको-सिस एक्शन फ़ाउंडेशन (फ्रांस) के मिले जुले प्रयासों से हर वर्ष 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जाता है। गौरैया एक पक्षी है जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है। वैसे पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया और अमरीका के अधिकतर स्थानों, अफ्रीका के कुछ स्थानों, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया तथा अन्य नगरीय बस्तियों में अपना घर बनाया। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह गाँव में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं, देर सवेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं।
भारत में गौरैया की स्थिति
हम सभी जानते हैं लगभग 40 वर्ष पूर्व भारत के हर घर के आंगन में गौरैया अपनी मधुर चहचाहाहट से घर के माहौल को खुशनुमा रखती थी साथ ही पर्यावरण को ना केवल संतुलित रखती थी बल्कि कीट पतंगों को खाकर कृषि पैदावार को सुरक्षित रखती थी| गौरैया भारत में पाई जाने वाला एक सामान्य पक्षी है| जिस प्रकार विश्व में गौरैया विलुप्त हुई उससे भारत भी अछूता नहीं रहा है| रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार पिछले 40 वर्षों में अन्य पक्षियों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन भारत में गौरैया की संख्या में 60% की कमी आई है| दुनिया भर में गौरैया की 26 प्रजातियां हैं, जबकि उनमें से 5 भारत में पाई जाती हैं| भारत में वर्ष 2015 की पक्षी जनगणना के अनुसार लखनऊ में केवल 5692 और पंजाब में कुछ क्षेत्रों में लगभग 775 गौरैया थी। वर्ष 2017 में तिरुवनंतपुरम में केवल 29 गौरैया की पहचान की गई| भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सर्वेक्षण पाया गया कि आंध्र प्रदेश में इसकी संख्या में 80 % की कमी है| भारत का हर भाग गौरैया की कमी से अलग-अलग प्रतिशत में अछूता नहीं है|
गौरैया का पर्यावरण संतुलन में योगदान
गौरैया पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| गौरैया अपने बच्चों को अल्फ़ा और कैटवॉर्म नामक कीड़े खिलाती है| ये कीड़े फसलों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं| वे फसलों की पत्तियों को मारकर नष्ट कर देते हैं| इसके अलावा गौरैया मानसून के मौसम में दिखाई देने वाले कीड़े भी खाती है|
आगरा में अनेक संस्था गौरैया संरक्षण हेतु घरौदे और पानी के बर्तन कई वर्षो से बाँटने का काम कर रही है|इस साल भी लोकस्वर संस्था पक्षियों के लिए घरौदे व पानी के बर्तन बाँट रही है|

राजीव गुप्ता जनस्नेही
लोकस्वर, आगरा
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