Abu road railway station

पुरुषों का स्वर्णाभूषण जैसे अंगूठी, जंजीर पहने रखना क्यों जरूरी है? आबू रोड रेलवे स्टेशन पर हुई घटना से सबक

EXCLUSIVE लेख

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat.  स्वर्ण आभूषण महिलाओं के श्रृंगार का अनिवार्य अंग हैं। विवाह समारोह में भी स्वर्ण आभूषण कन्या पक्ष द्वारा भेंट किए जाते हैं। केरल में तो विवाह के दौरान कन्या पक्ष से प्रश्न किया जाता है कि दहेज में कितना सोना देंगे। हमारे यहां तोला की बात होती है तो केरल में किलोग्राम की। मुझे लगता है कि महिलाओं के अलावा पुरुषों को भी स्वर्णाभूषण जैसे अंगूठी, जंजीर आदि धारण किए रहना चाहिए। इसके पीछे मेरा एक अनुभव है, जो आपको सुनाता हूँ।

मैं प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के विश्व मुख्यालय ज्ञान सरोवर, माउंट आबू, राजस्थान में राष्ट्रीय मीडिया महासम्मेलन में भाग लेकर 26 मई, 2024 को आगरा लौट रहा था। यह महासम्मेलन 22 से 27 मई, 2024 तक हुआ। विषय था-“नई सामाजिक व्यवस्था के लिए दृष्टिकोण और मूल्य – मीडिया की भूमिका”। महासम्मेलन का आयोजन मीडिया विंग, राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन (आरईआरएफ) द्वारा किया गया। महासम्मेलन में देशभर से प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडिया, वेब मीडिया से जुड़े मालिक संपादक, ब्यूरो प्रमुख, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के वरिष्ठ संवाददाता, टीवी और रेडियो चैनलों के सीईओ, निदेशक और कार्यक्रम निर्माता, पीआरओ और मीडिया शिक्षाविदों ने भाग लिया।

जब मैं पहाड़ पर जाता हूँ तो कोई समस्या नहीं होती है। लौटता हूँ तो उल्टी का मन करने लगता है। मन खराब हो जाता है। मार्ग में रुकना पड़ता है। ऐसा लगा रहता है कि उल्टी आई। इसी स्थिति के बीच मैं 26 मई, 2024 को आबू रोड रेलवे स्टेशन पर पहुंचा।

उल्टी के साथ पेट में बड़ी समस्या हो गई। लगा कि शौच कर लें तो शायद राहत मिल जाए। इसलिए मैं आबू रोड रेलवे स्टेशन पर शौचालय तलाशने गया। मैंने अपना मोबाइल और बटुआ पत्नी को दिया। आबू रोड रेलवे स्टेशन पर ब्रह्माकुमारीज सेंटर जाने वालों के लिए अलग से प्रवेश और निकास द्वार है। पत्नी वहीं थीं। उन्हें छोड़कर मैं आबू रेलवे स्टेशन के दूसरे छोर पर स्थित शौचालय पर गया। वहां पे एंड यूज लिखा हुआ था।

द्वार के अंदर संचालक बैठा था। वह मोबाइल पर बात कर रहा था। मैंने कहा कि शौच जाना है। उसने 10 रुपये मांगे।

मैंने कहा- भाई थोड़ी समस्या है, लौटकर देता हूँ।

संचालक ने दया दिखाई और जाने दिया।

शौचालयों की स्थिति बड़ी खराब थी। सीट सही थी, बाकी सब टूटा पड़ा था। फ्लश काम नहीं कर रहा था। हाथ धोने के लिए वॉशबेसिन भी नहीं था।

शौच करके बाहर आया तो पैसे की मांग की।

मैंने कहा- मेरी पत्नी दूसरे छोर पर है, उससे लेकर आता हूँ।

यह सुनकर संचालक मुस्कराया और कहा- यहां सब ऐसे ही आते हैं। कोई लौटकर नहीं आता।

मैंने कहा- 10 रुपये भी कोई मार लेगा क्या?

यह सुनकर संचालक बोला- आप 10 रुपये दीजिए।

मैंने कहा- आप मुझे मोबाइल दो, अभी कॉल करके बुलाता हूँ।

उसने मोबाइल नहीं दिया। मैंने फिर निवेदन किया कि ट्रेन का समय हो रहा है, पैसे तभी मिल पाएंगे, जब मैं जाऊँगा।

संचालकः तुम क्या करते हो?

मैंने कहा- पत्रकार हूँ।

संचालक ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में कहा, अच्छा पत्रकार हो। पत्रकार तो बिना पैसे के खबर नहीं छापते हैं।

यह सुनकर मैं अंदर तक हिल गया यह सोचकर कि पत्रकारों की समाज मे कैसी खराब छवि है।

मैं यह भी समझ गया कि यह किसी पत्रकार से पीड़ित है, इसलिए जाने नहीं देगा।

मेरी मध्यमा में अंगूठी थी। मैंने अंगूठी उतारकर देते हुए कहा- इसकी कीमत 10 रुपये से अधिक है। अभी पैसे लाकर देता हूँ, तब वापस कर देना।

संचालक ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।

मैं पत्नी के पास गया, पैसे लेकर आया, संचालक को पैसे दिए और अंगूठी वापस ली। इस तरह अच्छी खासी परेड हो गई।

शौचालय संचालक के पास ऑनलाइन भुगतान की सुविधा नहीं थी। वह सिर्फ नकद ले रहा था।

मैंने ट्रेन में पत्नी को पूरी कहानी सुनाई तो उन्होंने अपना माथा पीट लिया और बोलीं- कैसे-कैसे लोग पड़े हैं दुनिया में, 10 रुपये का भी विश्वास नहीं है।

इस पूरी कहानी का निष्कर्ष यह है कि पुरुष भी स्वर्णाभूषण धारण करें। आपातस्थिति में स्वर्णाभूषण बड़े काम आते हैं।

खैर, मीडिया महासम्मेलन में मैंने शिवानी दीदी से सीखा कि “सबको दुआएं दो। तुम्हारे साथ कोई गलत व्यवहार कर रहा है तो भी उसे दुआएं दो। हमारे कर्म ही हम तक लौटकर आते हैं, फिर वे इस जन्म के हों या पिछले जन्म के। विकर्म के विनाश की विधि यही है कि दुआएं दो और दुआएं लो।”

इसलिए मैंने शौचालय संचालक को दुआ ही दी।

ओम शांति

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