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जब नेपाल केसरी जैन मुनि मणिभद्र ने की काम वासना और भोग पर बात

NATIONAL RELIGION/ CULTURE

Agra, Uttar Pradesh, India. नेपाल केसरी जैन मुनि मणिभद्र ने आज कहा कि सहानुभूति की नहीं,  दुखी व्यक्ति को समानभूति की जरूरत होती है,  उसी से उसका कष्ट दूर होता है,  सुख की अनुभूति होती है।

 

मुनिवर राजामंडी स्थित जैन स्थानक, जैन भवन में प्रतिदिन प्रवचन दे रहे हैं। गुरुवार को उन्होंने कहा कि दुखी व्यक्ति को खुश व्यक्ति सहानुभूति देता है। सहानुभूति व्यक्त करना एक तरह से उस व्यक्ति पर अहसान जताना होता है। सहानुभूति का ही दूसरा शब्द होता है समानभूति। इसमें व्यक्ति दूसरे को दुख को अपना दुख जैसा अहसास करता है और दुख में उसका साथ देता है। दुखी व्यक्ति को सुख देना सबसे बड़ा धर्म है। अहिंसा का मतलब भी दूसरे के प्राण को अपने प्राण समझना होता है।

 

काम- वासना पर नियंत्रण की चर्चा करते हुए मुनि महाराज ने कहा कि काम,  वासना,  भोग ये सब व्यक्ति को दुख की ओर धकेलते हैं। इनसे कभी किसी की तृप्ति नहीं हो सकती। इसके त्यागने से ही व्यक्ति सुखी रह सकता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से आत्मा में रमण करने की शक्ति आ जाती है। ब्रह्मचर्य से अनेक तपस्याओं का फल मिलता है। इस व्रत को स्वीकार करना आसान नहीं है। इसके लिए मन को वश में करना होता है। मन साथ देगा तो हम ब्रह्मचारी रह सकते हैं।

 

उन्होंने कहा कि धर्म की चर्चा वहां होनी चाहिए, जहां अधर्म हो। सामायिक की बात वहां हो,  जहां लोग पहले से ही इस धर्म क्रिया नहीं कर रहे हों। जहां लोग स्वस्थ हों, वहां स्वास्थ्य की चर्चा की जरूरत नहीं है। जो लोग धर्म से दूर होते जा रहे हैं, वहां धार्मिक आयोजन ज्यादा से ज्यादा होने चाहिए।

 

इससे पूर्व मुनि पुनीत ने लोभ कषाय की चर्चा की। कहा कि जैन ग्रंथों में लोभ को पाप का बाप बताया गया है। इससे व्यक्ति का विनाश होता है। यह लोभ, लाभ से बढ़ता है। जीवन के साधनों को सीमित कर लेंगे तो लोभ में भी कमी आ जाएगी।

 

इस चातुर्मास पर्व में श्रुति दुग्गर की छठवें दिन की तपस्या जारी रही।आयंबिल की तपस्या अंजू सकलेचा एवमं नवकार मंत्र के जाप का लाभ प्रेमचंद हेमलता जैन परिवार ने लिया। राजेश सकलेचा ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस दौरान नरेश बरार , अमित जैन ,  सुरेश चप्लावत , रंजीत सिंह सुराना, विनीत दुग्गर,  सिद्धार्थ सकलेचा, ऋषभ,  सुरेश जैन  सहित अनेक धर्म प्रेमी उपस्थित थे।

Dr. Bhanu Pratap Singh