गजमुक्ता क्या है और इसके दर्शन किसे हो सकते हैं

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गजमुक्ता या गजमणि स्वर्ग में स्थित इंद्र के ऐरावत हाथी के अलावा पृथ्वी लोक के किसी अन्य हाथी में यह दिव्य मणि सम्भव नहीं हो सकती है, लेकिन कुछ पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि “जो हाथी पृथ्वी लोक पर यदि पुष्य नक्षत्र में पैदा होता है, विशेषकर सोमवार या रविवार को, उनमें ये दिव्य गजमुक्ता पाया जा सकता है, लेकिन सम्पूर्ण विश्व में लाखों हाथियों में हमें क्या पता चलेगा कि, कौन सा हाथी पुष्य नक्षत्र में सोमवार या रविवार को पैदा हुआ है, कुल मिलाकर यह स्वर्ग की दिव्य मणि है, जिसके दर्शन भी दिव्य कृपा से किसी अलौकिक शक्तियों युक्त दिव्य ऋषि की कृपा से जरूर सम्भव हैं, जो कि हिमालय क्षेत्र में पाए जाते हैं, कुल मिलाकर उन्हें दिव्य गजमुक्ता के दर्शन वर्ष 2008 में एक दिव्य ऋषि की कृपा से हुए थे।” एक एस्ट्रोलॉजर होने के साथ-साथ पत्रकार भी हूं तो  मन-मस्तिष्क में इस दिव्य गजमणि के सन्दर्भ में कुछ अनसुलझे रहस्यमयी प्रश्न थे। उन रहस्यमयी प्रश्नों की जिज्ञासाओं को भी दिव्य ऋषि ने शांत किया था और उन्हें पूर्ण प्रमाण के साथ वास्तविक गजमुक्ता के दर्शन कराए थे। तब पूर्ण विश्वास हुआ कि दिव्य ऋषि ने जिस गजमुक्ता के उन्हें दर्शन कराए हैं वो वास्तविक गजमुक्ता है, जो कि सिर्फ स्वर्ग लोक के हाथी ऐरावत में ही सम्भव है।

 गज अर्थात हाथी के माथे के भीतर की मणि गज मुक्ता कही जाती है जो कि वर्तमान समय में धरतीं पर नही मिलतीं, हाँ देवलोक/स्वर्ग के हाथियो में गज मुक्ता मणि होती है। जैसे इन्द्र के हाथी ऐरावत में यह दिव्य मणि पायी जाती है। भारतीय पारंपरिक विश्वास के अनुसार मुक्ता (मोती) गज, मेघ, वराह, शंख, मत्स्य, सर्प, शक्ति और वेण, आठ साधनों से प्राप्त होते हैं। जो कि प्रकृति के द्वारा निर्धारित होते हैं।

हम यह समझ सकते हैं कि गजमुक्ता के सन्दर्भ में मान्यता है कि गजमुक्ता मोती हाथी के मस्तक से प्राप्त होता है। इसका आकार आँवले के फल के समान तथा शुभ्रवर्ण होता है, इसे सभी मोतियों में श्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि जिस किसी के पास यह मोती होता है, उसे जीवन में किसी प्रकार की कोई विघ्न या बाधा नहीं आती है। लेकिन इसके दर्शन किसी भाग्यशाली को ही प्राप्त होते हैं। मेरा जन्म पुष्य नक्षत्र में आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि का है, इसलिए पूर्वजन्म के दिव्य संस्कार के कारण उन्हें वास्तविक गजमुक्ता के दर्शन वर्ष 2008 में एक दिव्य ऋषि की कृपा से हुए थे, वो भी पूर्ण प्रमाण के साथ। फिर  ऋषि की आज्ञानुसार उस दिव्य गजमुक्ता के दुर्लभ फ़ोटो को अपने कैमरे में कैद कर लिया था। लाइव स्टोरी टाइम के रहस्यमयी विश्लेषण में आप सभी वास्तविक गजमुक्ता के पुनः दिव्य दर्शन कर सकते हैं।

गजमणि के स्वयं साक्षात दर्शन करने के बाद उनके मन-मस्तिष्क में एक प्रश्न आया फिर उन्होंने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए दिव्य ऋषि से एक प्रश्न पूछा, “गुरुदेव जिस प्रकार सूर्य के उत्तरायण में सोमवार या रविवार को पृथ्वी लोक पर पुष्य नक्षत्र में जन्मे किसी विरले हाथी के मस्तिष्क में दिव्य गजमणि का मिलना, पौराणिक शास्त्रों के अनुसार यदि सम्भव है तो क्या किसी मनुष्य का जन्म यदि सूर्य के उत्तरायण में पृथ्वी लोक पर सोमवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र में हुआ हो, तो क्या उस मनुष्य की भृकुटि में भी जिसे हम कुंडलिनी शक्ति का छठवां, आज्ञा चक्र भी कहते हैं, उस मनुष्य के आज्ञा चक्र पर भी कोई दिव्य मणि होने की संभावना हो सकती है,” तब गुरुदेव ने  जवाब दिया, हाँ ऐसा सम्भव है “क्योंकि पुष्य नक्षत्र में जो कोई भी जन्म लेता है, उसकी आत्मा ब्रह्माण्ड के ऊपर स्थित दिव्य लोकों से पृथ्वी पर मनुष्य रूप में जन्म लेती हैं,” लेकिन वो आत्मा पुष्य नक्षत्र में किस दिव्य लोक से आयी है, इसका आँकलन करना बड़ा मुश्किल होता है। “लेकिन जो दिव्य आत्मा सूर्य के उत्तरायण में यदि सोमवार, गुरुवार एवम रविवार को पुष्य नक्षत्र में विशेष माह एवम विशेष तिथि में मनुष्य रूप में जन्म लेती हैं, वो साधारण आत्म-ज्योति नहीं होती हैं, वो ज्यादातर उच्च लोकों से ही आती हैं, और उनके मस्तिष्क में दिव्य मणि होने की संभावना अधिक है”

मेरा जन्म भी सूर्य के उत्तरायण में रविवार को पुष्य नक्षत्र में ही हुआ है। मेरी भृकुटि पर एक लंबा लाल तिलक  स्वतः ही आया था। ये बात  पूज्य माताजी बचपन में बताया करती थीं। हो हो सकता है किसी कारण मुझे गज मणि के दर्शन हुए।

पंडित प्रमोद गौतम

एस्ट्रोलॉजर एवम चेयरमैन वैदिक सूत्रम, आगरा

Dr. Bhanu Pratap Singh