डॉ. भानु प्रताप सिंह
वो वोट मांगने आया, भोली सूरत लाया। अब तो नजर ‘लक्ष्मणी’ हो गई है, ‘सीता मैया’ के चरणों में खो गई है। हाथ जुड़े हैं, नैन झुके हैं। ये बात बड़ी करामाती है, हर लड़की ‘दीदी’ नजर आती है। हर महिला मां है, चाची है, ताई है, वोटन के ताईं चरणों में पड़ा भाई है। वोटर को देखकर मुस्कराता है, अंदर से कुटिल है, बाहर से हँसकर दिखाता है। हे प्रभु दुहाई है, दुहाई है, तूने राजनीति कितनी बहुरूपी बनाई है।
कल तक कहता था वोटर चोर, उचक्के, बेईमान है, आज भाई मेरा इन शब्दों से ही अनजान है। प्रत्येक वोटर सत्यवादी हरिश्चंद नजर आता है, सबको अन्ना का प्रतिरूप बताता है। यूथ में विवेकानंद और बोस दिखाई देते हैं, सड़क छाप लेखकों में तुलसीदास दिखते हैं। कोई वृद्ध मिल जाए तो दंडवत हो जाता है, एक वोट के लिए क्या-क्या करतब दिखाता है। राजनीति में ही ऐसी चतुराई है, कहीं और नजर नहीं आई है।
राजनीति की धुरी, मुख में राम बगल में छुरी।
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