विश्व व्यापार संगठन (WTO) की बैठक में थाईलैंड ने चावल के मुद्दे पर भारत को घेरने की कोशिश की है और इससे दोनों देशों के बीच राजनयिक तनाव पैदा हुआ है.
मंगलवार को WTO में थाईलैंड की दूत पिमचानोक वोंकोरपोन पिटफ़ील्ड ने भारत पर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सस्ती दरों पर चावल ख़रीदकर अंतर्राष्ट्रीय चावल निर्यात बाज़ार पर क़ब्ज़ा कर रहा है. भारत ने थाईलैंड की इस टिप्पणी का कड़ा विरोध किया है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ भारतीय प्रतिनिधियों ने ऐसे कुछ वार्ता समूहों में हिस्सा लेने से भी इंकार कर दिया, जिनमें दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश थाईलैंड के प्रतिनिधि भी मौजूद थे.
क्या है विवाद?
दरअसल, जनता के लिए खाद्य भंडारण पर सीमा निर्धारित है. अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इसे लेकर स्थायी समाधान को कई बार रोका है.
भारत खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर देश में कुल चावल उत्पादन का क़रीब 40 प्रतिशत ख़रीदता है. बाक़ी उत्पादन बाज़ार मूल्य पर बिकता है.
वरिष्ठ पत्रकार और कृषि विशेषज्ञ हरवीर सिंह कहते हैं, “भारत ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के लिए ख़रीददारी करने के लिए एमएसपी पर ख़रीदारी की है. भारत को पीडीएस के लिए ख़रीदारी करने के लिए पब्लिक स्टॉक लिमिट में छूट मिली हुई है. यानी भारत सरकार जनता में बाँटने के लिए जो चावल ख़रीदती है उस पर भंडारण करने की सीमा लागू नहीं होती है.” वे मानते हैं कि थाईलैंड के ऐसे आरोप तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है.
हरवीर सिंह कहते हैं, “रिकॉर्ड के हिसाब से ऐसा नहीं है. भारत सरकार का ये कहना है कि वह पीडीएस के लिए जो चावल ख़रीदती है, उसे एक्सपोर्ट नहीं करती है बल्कि भारत के निर्यातक बाज़ार में बाज़ार भाव पर चावल ख़रीदते हैं और उसे निर्यात करते हैं. थाईलैंड का आरोप है कि भारत सस्ते दाम पर चावल ख़रीदकर उसे निर्यात कर रहा है और इससे बाज़ार को अस्थिर कर रहा है लेकिन तथ्य इन आरोपों से अलग हैं.”
भारत ने चावल निर्यात पर लगाए थे प्रतिबंध
भारत ने घरेलू बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए धीरे-धीरे चावल के निर्यात पर रोक लगाई थी. 2022 में जब घरेलू बाज़ार में चावल के दाम बढ़ रहे थे तब भारत ने धीरे-धीरे पाबंदी लगानी शुरू की.
पहले टूटे हुए चावल पर रोक लगाई फिर सफेद चावल के निर्यात को रोका. चावल की कुछ क़िस्मों पर निर्यात कर लगाया गया.
इसके अलावा ग़ैर बासमती चावल पर भी निर्यात कर लगाया गया, ताकि घरेलू बाज़ार में क़ीमतों को नियंत्रित किया जा सके. सरकार ने अपने भंडार से भी कम क़ीमत पर चावल की बिक्री की.
जब भारत ने ये प्रतिबंध लगाए थे तब थाईलैंड ने इसे एक मौक़े की तरह देखा था और थाईलैंड सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री ने कहा था कि थाईलैंड इस स्थिति का फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगा.
हालाँकि, पिछले कुछ सालों में भारत का चावल का निर्यात बढ़ा है. भारत विश्व में चावल के निर्यात में 40 प्रतिशत तक चला गया था.
थाइलैंड भी एक बड़ा चावल निर्यातक है, थाईलैंड को लगता है कि भारत उसके बाज़ार पर कब्ज़ा कर रहा है.
डब्लूटीओ की बैठक में थाईलैंड के चावल निर्यात के मुद्दे को उठाने की वजह बताते हुए हरवीर सिंह कहते हैं, “विश्व व्यापार संगठन में कृषि मंत्रियों की बैठक हो रही है. थाईलैंड को लगा होगा कि इस प्लेटफ़ॉर्म पर इस मुद्दे को उठाया जा सकता है और थाईलैंड ने इस मौक़े का इस्तेमाल किया है. थाईलैंड चावल निर्यात के मामले में दूसरे नंबर पर है,
थाईलैंड को लग रहा है कि भारत उसके निर्यात को टक्कर दे रहा है.”
हाल के सालों में चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बढ़ी है. हालाँकि भारत के चावल निर्यात पर आंशिक प्रतिबंध लगाने से पश्चिमी देशों में ग़ुस्सा भी बढ़ा है.
दुनिया के विकसित देशों ने ये दिखाने की कोशिश की है कि भारत सब्सिडी पर ख़रीदे गए चावल को निर्यात बाज़ार में भेजकर इसके वैश्विक व्यापार को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है.
विश्लेषक मानते हैं कि स्टॉक सीमा के नियम कुछ इस तरह बनाए गए हैं कि इनसे अमीर देशों को फ़ायदा पहुँचता है. इन नियमों की वजह से भारत सब्सिडी पर 10 प्रतिशत तक उत्पादन ख़रीदने की सीमा को पार कर जाता है.
हरवीर सिंह कहते हैं, “ये नियम सख़्ती से लागू नहीं है और भारत को इसमें छूट मिल जाती है. सदस्य देशों ने तब तक नियमों के उल्लंघन को स्वीकार किया है जब तक कि नए नियम नहीं बन जाते हैं. ये एक दशक से अधिक समय पहले तय हुआ था और तब से ये सुधार नहीं किए गए हैं. भारत को लगता है कि ग़रीब राष्ट्रों के लिए जो सबसे अहम विषय है पश्चिमी देश उसका समाधान नहीं निकाल रहे हैं.”
चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है भारत
साल 2022 में विश्व चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी. पिछले साल चावल की कुछ क़िस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद भारत चावल निर्यात में शीर्ष पर रहा है. प्रतिबंधों के बावजूद चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 27 प्रतिशत थी.
साल 2024 में भारत की बासमती चावल का निर्यात कम हो सकता है. भारत का प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान उत्पादन बढ़ने की वजह से प्रतिस्पर्धी क़ीमतों पर चावल बेच रहा है.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इससे भारत का बासमती निर्यात इस साल कम हो सकता है. भारत और पाकिस्तान लंबे बासमती चावल के निर्यात में सबसे आगे हैं.
इन चावलों की ईरान, इराक़, सऊदी अरब, यमन और अमेरिका जैसे देशों में मांग अधिक है. बासमती चावल के निर्यात से भारत ने 2023 में 5.4 अरब डॉलर की कमाई की थी. अधिक क़ीमतों की वजह से 2022 के मुक़ाबले 2023 में भारत ने 21 फ़ीसदी अधिक कमाई की थी.
-एजेंसी
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