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Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -60: सतगुरु का उपदेश मिलते ही क्या होता है?

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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जैसे ही सतगुरु से उपदेश मिलता है, आपका संबंध काल से कट जाता है। उसके बाद आपके उद्धार की यह कार्रवाई जितने भी दिन जारी रहे, लेकिन आप एक दिन परम पद को पाने के अधिकारी बन जाते हैं। यह कितना बड़ा भाग है हम सब लोगों का जो राधास्वामी दयाल की चरन सरन में आए हैं। इसलिए चाहिए कि सतगुरु का निजी सत्संग करें, रस लें और किसी से अदावत न करें। किसी का बुरा ना चाहें। अपनी और देखें। उन सब औगुनों को जो भरे हुए हैं, उनको हटाने का प्रयास करें। बहुत सा काम ऐसा होता है कि जिसका आप बीड़ा उठा लें तो पूरा करके छोड़ते हैं। खासतौर पर दुनिया में लोग अजीबोगरीब कार्यवाही करते हैं, उसमें अपना पूरा समय लगा देते हैं और कुछ न कुछ अचरजी चीज दिखा देते हैं। इससे मालूम हुआ कि कुव्वत है, ताकत है। अब सवाल यह है कि ताकत कहां लगानी है। दुनिया में नामवरी के लिए या दुनिया में कोई उपयोगी कार्यवाही करने के लिए या लोगों को आराम पहुंचाने के लिए है तो वह शुभ कर्म में दाखिल होगी, उसका फल मिलेगा, चंद दिनों का आनंद भी मिलेगा, वह थोड़ा बहुत ऊपर के स्थान पर भी मिल सकता है, अगला जन्म भी हो सकता है इससे बेहतर होगा, लेकिन जिन लोगों ने सच्ची चरन-सरन ग्रहण कर ली है उनका निश्चित रूप से एक दिन पूरा उद्धार होगा। उनको राधास्वामी दयाल के चरनों में बासा मिलेगा। उनका अभ्यास निर्विघ्न बनता जाएगा। वो बहुत कुछ प्राप्ति इसी जन्म में कर लेंगे, नहीं तो आइंदा के जन्मों में करेंगे और एक दिन जरूर सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल के चरनों में मिलेंगे। इसका विश्वास, इसकी प्रतीत सब सत्संगियों को पूरे तौर पर लाना चाहिए।

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सब लोगों की दीनता अपनानी चाहिए। औगुन दृष्टि हटाकर, ईर्ष्या और जलन हटाकर सच्चा प्यार करना चाहिए, तब मालिक राजी होगा। मालिक की रजामंदी हर तरह से हमारे लिए अति आवश्यक है-

गुरु राजी तो कर्ता राजी, काल करम की चले न बाजी।

 यह मामूली बात नहीं है। गुरु की प्रसन्नता तो बहुत जरूरी है। इसलिए जो याद रखना है, वह है भक्ति। इससे बढ़कर और कोई चीज याद नहीं रखी जा सकती। प्रीत और प्रतीत मालिक के चरनों में कम नहीं होनी चाहिए, बढ़नी चाहिए क्योंकि वह तो खुशबू है। खुशबू और बदबू में फर्क है। जहां वासना है, वहां बदबू है। जहां मालिक के चरनों का प्रेम है वहां खुशबू है। इसलिए मैं तो बस यही कहता हूं कि हजूर महाराज राधास्वामी दयाल को मानिए। आप से प्यार करते हैं तो आप भी प्यार कीजिए। प्यार का रिश्ता दुनिया में सबसे बढ़कर है। बाकी सबकुछ यहीं छूट जाता है। इसलिए वास्तविक तौर पर सतगुरु के चरनों में प्यार कीजिए। जितना-जितना प्यार बढ़ता जाएगा, उतना ही दर्शन भी मिलता जाएगा। सुरत को चढ़ा देंगे, जहां पहुंचाना होगा, पहुंचा देंगे और एक दिन पूरा उद्धार करेंगे।

Dr. Bhanu Pratap Singh