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राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -9: बाद में संतों की बात ही कारगर सिद्ध होती है

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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यहां सिर्फ मन के अड़ंगे हैं। मन जो है वह आपको कांटो में घसीटता है। वह नहीं चाहता कि सुरत उसके हाथ से निकले। न मन चाहता है, न माया चाहती है, न काल चाहता है। वह घसीटे रखना चाहता है। वह आपको फंसाए रखना चाहता है। यह तो राधास्वामी दयाल ने आकर राधास्वामी नाम प्रकट किया और सुरत-शब्द-योग का मार्ग बताया, यह भी कहा गया कि सिर्फ चंद दिनों का अभ्यास करने से उद्धार का सिलसिला जारी हो जाएगा, एक दिन आप निज घर में पहुंचा दिए जाएंगे। तो इस बात पर क्यों नहीं यकीन किया जाता? दुनियादारों की बात को तरजीह देते हैं, संतों की बात को नहीं मानते हैं और बाद में वही कारगर सिद्ध होती है। तो फिर अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत। अरे समय पर चेतो, जो समय मिला है उसका सदुपयोग करो।

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आप किसी भी प्री-कंसीव मोशन (पूर्वाग्रह) से, विद्या -बुद्धि से, जो भी आपने सीखा है वह आप पूछ सकते हैं लेकिन उस अबोध बालक की तरह जो कुछ नहीं जानता है। वह बैठता है और सीखता है स्कूल में जाकर। क्या आप ऐसे हो सकते हैं। जरा अपने अपने चित्त में ध्यान देकर सोचिए, क्या आपकी विद्या-बुद्धि और क्या ज्ञान और जो कुछ आपने सीखा पड़ा है वह आपको सतसंग के वक्त भी तंग करता है। योगियों को और यह कपड़े रंगे हुए साधुओं को अहंकारी क्यों कहा गया है क्योंकि उनके अंदर अपनी कार्यवाही का अहंकार होता है। अहंकार सब पापों की मूल जड़ है। यहां वह नहीं चलेगा। विद्या-बुद्धि का अहंकार होता है लेकिन दर्शनों को पाकर और संग करने के बाद सारी विद्या-बुद्धि भूल जाती है। तब पता चलता है कि कशिश क्या होती है, कितना प्यार किया जाना चाहिए और कितनी याद आती है। वह याद मिटती नहीं है। इसलिए जहां याद है वहां दया है और जहां दया है वहां राधास्वामी दयाल आपसे मौजूद हैं। इसलिए चिंता मत करो। सब का काम बनेगा। वह जो फरमाते जाएं, जो वह हिदायत देते जाएं उसका पालन जितना बन सके करते चले जाएं, फिर निभाने वाले भी वह हैं, चढ़ाने वाले भी वह हैं और एक दिन उद्धार करने वाले भी वह हैं। उनकी सरन में है तब तक चिंता नहीं करनी है। फरमाया भी है-

तुम्हरी चिंता मैं मन धारी तुम अचिंत  रह  करो प्यारा ।

वह  करनी  मैं आप  कराऊँ और  पहुंचाऊं धुर दरबारा।।