Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -52: जब मालिक मेहरबान तो पट्ठा पहलवान

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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सेवा बहुत जरूरी है। सबको कोई न कोई सेवा अख्तियार कर लेनी चाहिए। यानी किसी भी तरीके से अपने गुरु को रिझाओ और प्रसन्न करो। उनकी प्रसन्नता से काम चलेगा, उनकी अप्रसन्नता से नहीं। कुछ बातें हैं जिनको करके देखिए। आपको खुद एक परिवर्तन महसूस होगा। यह परिवर्तन ऐसा है जैसे कि बच्चा जवान हो जाता है और पता नहीं लगता कि जवान हो गया। फिर बूढ़ा हो जाता है। यह एक क्रम है। इसी तरह से यह भी क्रम है। आपको पता नहीं लगेगा कि क्या फर्क और परिवर्तन आपके अंतर में आ गया, कितना खिंचाव पैदा हो गया, कितनी दात आप आ गए। इसलिए हरदम उनका शुकराना करना चाहिए-

गुरु प्यारे की दम दम शुकर गुजार।

दुखी मत हो। मालिक के चरनों में लगो। तुमको पक्का और स्थाई सुख देंगे। तुम्हारे पास दुख नहीं आने पाएगा। लेकिन थोड़ा सा इंतजार करो और थोड़ी सी मेहनत करो। दुनिया में इतना खपते फिरते हो। सुबह से लेकर रात हो जाती है। यहां तो एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम, उतना तो कर लो। इतना भी कर लोगे तो काम चल जाएगा। याद करोगे तो काम चल जाएगा। स्वरूप को देखकर अगर विरह जागेगी, प्रेम उमड़ेगा तो काम बन जाएगा। हर तरह से, किसी न किसी तरह से उनको याद करने से, उनको अपने पास रखने से काम चलता है। सच्ची प्रीत और सच्चे मालिक कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरनों में दृढ़ करें, बेड़ा पार है। कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। हरदम रक्षक हैं। उनका हाथ सिर पर है तो फिर किसको चिंता करनी चाहिए- जब मालिक मेहरबान तो पट्ठा पहलवान।

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यहां पर सब गंदगी है दुनिया की। किसी तरह का सच्चा सुख नहीं है। किसी पर सच्चा विश्वास नहीं किया जा सकता है। इसलिए क्यों नहीं एक दफे विश्वास करके देखो संतों पर, उनके सत्संग में प्रेमियों से, अभ्यासियों से और फायदा अंतर में उठाओ। इसमें देरी क्या करनी है। जितनी जल्दी हो सके इस काम को कर लो। फायदा ही फायदा है। दुनिया में भी और दीन में भी। हर तरह से रक्षा और संभाल मालिक कर रहे हैं और करते रहेंगे, इतनी बात समझ लेनी चाहिए। इस समझ के साथ अपनी दिनचर्या में आमूलचूल परिवर्तन कीजिए। यहां वादा कर जाते हैं और फिर भजन में नहीं बैठते। यहां वादा कर जाते हैं फिर पोथी का पाठ नहीं करते। सतसंग में सिर्फ यह समझ लिया कि हमने राधास्वामी मत को मान लिया तो ऐसी टेक से फायदा नहीं होगा। सतसंग करना पड़ेगा। बचन सुनने पड़ेंगे और उसके अनुसार अपनी रहनी कहनी को दुरुस्त करना पड़ेगा। जब दूर हो तो मालिक आपके बहुत नजदीक हैं। उसको याद तो करो। कुछ भी नहीं करना चाहते हो। यानी वो कहते हैं कि हमसे प्यार करो तो तुमको उसमें भी ऐतराज है। और कोई प्यार करे तो उसे भी टेढ़ी निगाह से देखेंगे। अरे तुम करो ना प्यार। दूसरों के प्यार में क्यों सोचते हो। तुम को प्यार करने से किसने रोका है। प्रीत और प्रतीत कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरनों में बढ़ाइए और उनकी बख्शीश का इंतजार कीजिए। वह बख्शीश देंगे। जितना समय भी आपके उद्धार में लगेगा उसमें भी आपका ख्याल रखा जाएगा आपकी रक्षा की जाएगी। आपको ऊंचे स्थान पर कहीं न कहीं बासा दिया जाएगा। जिसने राधास्वामी दयाल की चरन सरन ग्रहण कर ली, सत्संग किया और जिससे जैसा बना अभ्यास किया, वो चौरासी में नहीं जाएगा, वो राधास्वामी दयाल के चरनों में रहेगा और उसको दर्शन भी मिलेंगे।