यूपी के चर्चित और देश को झकझोर देने वाले उन्नाव रेप कांड में एक बार फिर बड़ा कानूनी मोड़ सामने आया है। हाल ही में Delhi High Court की डिवीजन बेंच ने पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा को निलंबित करते हुए जमानत देने का आदेश दिया था। इस फैसले से जहां सेंगर समर्थकों में खुशी देखी गई, वहीं जांच एजेंसी ने इसे गंभीर खतरे के तौर पर लिया है।
अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने साफ संकेत दे दिए हैं कि वह इस राहत को चुनौती देगी। एजेंसी हाईकोर्ट के आदेश का विस्तृत अध्ययन करने के बाद सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख करने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, CBI जल्द ही स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) दाखिल कर सकती है। एजेंसी का तर्क है कि मामले की गंभीरता, पीड़िता और गवाहों की सुरक्षा को देखते हुए सेंगर को बाहर रखना जोखिम भरा है।
हाईकोर्ट में जमानत का CBI और पीड़िता पक्ष ने कड़ा विरोध किया था, लेकिन इसके बावजूद सजा निलंबन का आदेश आया। अब जांच एजेंसी का कहना है कि रसूखदार दोषी की रिहाई से गवाहों पर दबाव और पीड़िता के परिवार की सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
“क्या वह दया का हकदार है?”
पीड़िता के वकील महमूद प्राचा ने फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सवाल उठाया कि इतना जघन्य अपराध करने वाला व्यक्ति दया का पात्र कैसे हो सकता है। प्राचा के अनुसार, पीड़िता और उसका परिवार आज भी भय के साये में जी रहा है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि पूर्व में जेल में रहते हुए भी पीड़िता के पिता पर हमले की घटनाएं सामने आई थीं, ऐसे में दूरी संबंधी शर्तें प्रभावी सुरक्षा नहीं देतीं।
सरकारों पर भी आरोप
वकील प्राचा ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार पर भी गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि पीड़िता के पक्ष के बजाय सरकारी तंत्र कोर्ट के भीतर और बाहर विरोध की भूमिका में दिख रहा है। सुरक्षा में कटौती और नए मामलों के जरिए दबाव बनाने के आरोप भी लगाए गए हैं।
अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। क्या शीर्ष अदालत हाईकोर्ट के आदेश को पलटेगी और सेंगर को दोबारा जेल भेजेगी? यह लड़ाई अब केवल एक केस तक सीमित नहीं रही—यह न्याय पर भरोसे की परीक्षा बन चुकी है।
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