आज ही दिन 38 साल पहले भारत ने शुरू की थी स्पेस की उड़ान

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आज ही दिन 38 साल पहले भारत ने स्पेस की उड़ान शुरू की थी। जब दुनिया भारत को दोयम दर्जे की नजर से देख रही थी उस वक्त हम अपना स्वर्णिम इतिहास लिख रहे थे। हर देशवासी के लिए आज का दिन गौरव का दिन है।
दीवार पर टंगे कैलेंडर की कुछ तारीखें इतिहास के स्वर्णिम सफ़ों में हमेशा के लिए चस्पा हो जाती हैं। 02 अप्रैल 1984 ऐसी ही एक तारीख है, जब कोई भारतीय पहली बार अंतरिक्ष में जाने में सफल रहा। भारत के खाते में यह अनुपम उपलब्धि दर्ज कराने का श्रेय जाता है विंग कमांडर राकेश शर्मा को। मगर अकेले राकेश शर्मा नहीं बल्कि तमाम वैज्ञानिकों की एक पूरी टीम ने इस महान उपलब्धि को हासिल करने के लिए दिन-रात एक कर दिया था। 38 साल पहले वो ऐतिहासिक तारीख आज ही की थी।
भारत सरकार ने रूस के साथ मिलकर तैयार किया प्लान
1980 के दशक की शुरुआत में भारत सरकार ने सोवियत रूस के साथ मिलकर अंतरिक्ष अभियान की योजना बनायी। योजना में तमाम पहलुओं की बात हुई। स्पेस मिशन का खर्चा कितना आएगा, कौन सी टीम होगी जो इस मिशन को सफल बनाने में जुटेगी। लेकिन इन सब सवालों का जल्द ही समाधान हो गया मगर उसमें एक बात जो तय होने में काफी लंबा वक्त लगा। वो ये था कि आखिरकार कौन वो पहला भारतीय होगा जो अंतरिक्ष यात्रा में जाएगा और वो उसमें पूरी तरह फिट भी होगा। भारत के लिए ये पहला अनुभव था और इससे पहले दुनिया के लगभग 138 अंतरिक्ष यात्री हो चुके थे। एक लंबी लिस्ट से छानबीन करते हुए चयनकर्ताओं ने दो लोगों का चुनाव किया। अंत में दो उम्मीदवार चयनित किये गए। एक राकेश शर्मा और दूसरे रवीश मल्होत्रा।
अंतरिक्षयात्री के चुनाव में लगा लंबा वक्त
अब दो लोगों में चुनाव की नौबत आ गई। दोनों में से कौन सा वो भाग्यशाली शख्स होगा जो, भारत के स्वर्णिम इतिहास का सूत्रधार बनेगा। शर्मा और मल्होत्रा दोनों में कई राउंड चुनाव प्रक्रिया चली, और अंत में बाजी राकेश शर्मा जीत गए। यात्रा अंतरिक्ष की थी, पहली बार हो रही थी। जान जाने का खतरा भी था। एक और शंका थी कि कहीं मिशन फेल न हो जाए। पूरी दुनिया की निगाहें भारत के इस स्पेस मिशन पर टिकीं थीं। 20 सितंबर 1982 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के माध्यम से इंसरकॉस्मोस अभियान के लिए राकेश शर्मा के नाम पर अंतिम मुहर लगा दी।
सालों का तप था, एक दिन परिणाम मिला
इतिहास यूं ही नहीं बन जाता। इसके लिए कई साल, महीने मेहनत, त्याग की एक गाथा लिखनी पड़ती है। राकेश शर्मा भी हर मोर्चे पर डटे रहे। अपने शरीर को अंतरिक्ष के मुताबिक ढालने का प्रयास चलता रहा। जहां पर शून्य ग्रेविटी हो वहां पर आपके शरीर को कैसे रिएक्ट करना है ये एक ऐसी लड़ाई थी, जहां से मौत नजदीक थी और जिंदगी एक ख्वाब। इसमें एक कसौटी तो ऐसी भी थी कि उन्हें 72 घंटे यानी पूरे तीन दिन एक बंद कमरे में एकदम अकेले रहना पड़ा लेकिन ये तो महज एक शुरूआत थी। ये परीक्षाएं दिन पर दिन बढ़ती चली गईं। खाने-पीने से लेकर दिमागी संतुलन पर उनकी ट्रेनिंग शुरू की गई। राकेश शर्मा के दिल में सिर्फ एक ही बात कौंध रही थी कि कुछ कर जाऊंगा या फिर मर जाऊंगा। अंतरिक्ष पर तिरंगा लहरा जाएगा या फिर मेरी सांसें वहीं टूट जाएंगी।
पूरा देश रेडियो में कान लगाकर बैठ गया
उस वक्त रेडियो में पूरा देश कान लगाकर बैठा हुआ था और सिर्फ ये सुनता था कि राकेश शर्मा कब भारत का तिरंगा अंतरिक्ष में लहराएंगे। गांव-गांव में लोग राकेश शर्मा का नाम जान गए थे। पूरे देश में एक अलग ही माहौल था। मिशन के लिए चयन के बाद जब वह अभियान हेतु परीक्षण के लिए रूस के यूरी गागरिन अंतरिक्ष केंद्र में गहन अभ्यास में जुटे थे, तो देश में उनकी छह वर्षीय बेटी मानसी का निधन हो गया। इस घटना से भी वह विचलित नहीं हुए, और उन्होंने स्वयं को अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखा। पूरे देश की आशाएं उनसे जुड़ी हुई थीं, और उन्होंने उन उम्मीदों को टूटने नहीं होने दिया।
आखिरकार आ गया वो स्वर्णिम दिन
कई साल कठिन तप जैसा अभ्यास करने के बाद आखिरकार 02 अप्रैल 1984 को वो शुभ तारीख बनकर आई जब भारत का तिरंगा अंतरिक्ष में शान से लहराने के लिए तैयार था। यह वो तारीख थी जिसको हम 38 साल बाद भी याद कर रहे हैं, और हमेशा करते भी रहेंगे। विंग कमांडर राकेश शर्मा 02 अप्रैल 1984 को अपने तीन सोवियत साथियों के साथ अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरनी थी। तत्कालीन सोवियत संघ के बैकानूर से उनके सोयुज टी-11 अंतरिक्षयान के उड़ान भरते ही देश के लोगों की धड़कनें बढ़ गईं। आखिरकार अंतरिक्ष में दाखिल हुए। उन्होंने कुल सात दिन, 21 घंटे और 40 मिनट अंतरिक्ष में बिताए और सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौटे। राकेश शर्मा भारत के प्रथम और विश्व के 138वें अंतरिक्ष यात्री थे। उनकी उपलब्धि से प्रेरित होकर ही भारत सरकार ने उन्हें ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया। सोवियत सरकार ने भी उन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ सम्मान से नवाजा।
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh