मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर चल रहे भूमि विवाद में नया मोड़ आ गया है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद की तरह ही क्षेत्र के विस्तृत वैज्ञानिक सर्वेक्षण की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस तरह के सर्वेक्षण में साइट के महत्व की व्यापक समझ प्रदान करने के लिए आधुनिक पुरातात्विक तरीकों, भू-स्थानिक विश्लेषण और ऐतिहासिक रिकॉर्ड का उपयोग किया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व इसके अध्यक्ष सिद्धपीठ माता शाकुंभरी पीठाधीश्वर भगुवंशी आशुतोष पांडे कर रहे हैं। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है। याचिका विशेष रूप से कई उत्तरदाताओं द्वारा ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्थल को कथित तौर पर पहुंचाई जा रही क्षति और अपवित्रता पर जोर देती है।
विवाद में दीवानी मुकदमा मस्जिद ईदगाह के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसका निर्माण कथित तौर पर हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद किया गया था। याचिकाकर्ता का तर्क है कि इस तरह के निर्माण को मस्जिद नहीं माना जा सकता। वे आगे 1968 में हुए समझौते की वैधता के ख़िलाफ़ तर्क देते हुए इसे “दिखावा और धोखाधड़ी” बताते हैं।
विभिन्न शिकायतों का ज़िक्र करते हुए याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि शाही मस्जिद ईदगाह प्रबंधन समिति जैसी प्रतिवादी संस्था संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में शामिल रही हैं, विशेष रूप से वो स्थान व संपत्ति जो हिंदुओं के लिए धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं।
उनका दावा है कि प्रतिवादी ने मंदिर के स्तंभों और प्रतीकों को नुकसान पहुंचाया है और जेनरेटर का उपयोग किया है जिससे दीवारों और स्तंभों को और अधिक नुकसान हुआ है। उन्होंने परिसर में होने वाली प्रार्थनाओं (नमाज) और अन्य गतिविधियों पर भी चिंता जताई है।
याचिकाकर्ता ने संपत्ति पंजीकरण में विसंगतियों के बारे में भी चिंता जताई है। उनका तर्क है कि भूमि को आधिकारिक तौर पर ‘ईदगाह’ नाम के तहत पंजीकृत नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका कर ‘कटरा केशव देव मथुरा’ के उपनाम से एकत्र किया जा रहा है।
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील सार्थक चतुर्वेदी द्वारा विवादित भूमि की पहचान, स्थान और माप की स्थानीय जांच की मांग की है जिसमें दोनों पक्षों द्वारा किए गए दावों को प्रमाणित करने के लिए एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। यह अनुरोध ज्ञानवापी मस्जिद में चल रहे एएसआई सर्वेक्षण से प्रेरित है। ज्ञानवापी सर्वेक्षण जिसने महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है, उसका उद्देश्य उक्त स्थल के ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व का पता लगाना है।
दुनिया भर में सनातन धर्म के मूल्यों और हितों को बनाए रखने के लिए स्थापित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट का उद्देश्य मंदिरों और मठों की रक्षा और नवीनीकरण करना है। ट्रस्ट का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य इन पवित्र स्थानों को अतिक्रमणों से बचाना और अवैध कब्जेदारों को बेदखल करना है।
याचिकाकर्ता की याचिका में न केवल उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने की अनुमति मांगी गई है बल्कि एसएलपी को अंतिम रूप दिए जाने तक उस पर अंतरिम एकपक्षीय रोक लगाने का भी अनुरोध किया गया है। संक्षेप में कहें तो ट्रस्ट अपने दावों को मान्य करने और भूमि से जुड़े जटिल इतिहास पर संभावित रूप से प्रकाश डालने के लिए साइट के नए मूल्यांकन की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है।
याचिकाकर्ता के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा, महज भूमि विवाद से कहीं अधिक है। इसमें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व की परतें शामिल हैं जो लाखों लोगों को प्रभावित करती हैं। यही कारण है कि ट्रस्ट अपनी मांगों को मान्य करने के लिए ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेक्षण को प्राथमिकता देना चाहता है।
कुल मिलाकर अब इस याचिका के नतीजे पर देशभर की नजरें टिकी है। ऐसे में न्यायपालिका और संबंधित हितधारकों द्वारा उठाया गया हर कदम निस्संदेह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक चित्रावली और इतिहास, आस्था एवं न्यायशास्त्र की परस्पर क्रिया के विमर्श को आकार देगा।
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