आगरा नगर निगम ने हाल ही में एक सुविधाजनक ऑनलाइन पहल की है। अब आप घर बैठे जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र में हुई त्रुटियों को ठीक करा सकते हैं। नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल की घोषणा एक अच्छा कदम है, जो नागरिकों को दफ्तरों के अनगिनत चक्कर काटने से बचाएगा। लेकिन क्या यह सुविधा उन ढाई लाख लोगों के जख्मों पर मरहम लगा पाएगी, जिनका वजूद 2011 से 2016 के बीच नगर निगम के सर्वर से पूरी तरह गायब हो चुका है? एक तरफ डिजिटलीकरण का जश्न है, तो दूसरी तरफ उन नागरिकों की पीड़ा है जिनका महत्वपूर्ण डाटा ‘शिफ्टिंग’ की तकनीकी खामियों के नाम पर डिलीट कर दिया गया। यह कहानी सुविधा की नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही के उस गहरे गड्ढे की है, जिसमें नागरिक अपनी पहचान और समय गंवा रहे हैं।
यह कमी आगरा नगर निगम की कार्यप्रणाली के दो विपरीत छोरों को दर्शाती है। पहला छोर है अक्टूबर 2025 में शुरू की गई ऑनलाइन करेक्शन सुविधा, जिसके तहत नागरिक अब https://www.annbdregistration.com/ पर जाकर नाम या पते की गलती को आसानी से सुधार सकते हैं। नगर आयुक्त का कहना है कि अब किसी को भी स्पेलिंग मिस्टेक के लिए कार्यालय आने की जरूरत नहीं है। यह डिजिटल इंडिया की एक सुंदर तस्वीर है।
लेकिन दूसरा छोर उस भयावह हकीकत को बयां करता है जो दिसंबर 2022 में सामने आई। खुलासा हुआ कि आगरा नगर निगम की वेबसाइट से 2011 से 2016 के बीच जारी किए गए जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्रों का संपूर्ण डाटा गायब हो गया है। यह आंकड़ा लगभग 2.5 लाख (ढाई लाख) लोगों का है।
कैसे हुआ खुलासा?
यह समस्या तब सामने आई जब केरल से आगरा आए सतीश गुप्ता जैसे नागरिकों ने स्कूल में दाखिले या अन्य कानूनी कार्यों के लिए अपने पुराने प्रमाणपत्रों का ऑनलाइन सत्यापन करने की कोशिश की, लेकिन वे विफल रहे। वेबसाइट पर न तो उनका रिकॉर्ड मिला, न ही वे प्रमाणपत्र डाउनलोड किए जा सके।
डाटा गायब होने का कारण?
उस समय के नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अतुल भारती ने इस त्रासदीपूर्ण घटना के पीछे का कारण बताया— राज्य और केंद्र सरकार की वेबसाइट पर डाटा शिफ्टिंग की प्रक्रिया में तकनीकी खामियां। उनकी व्याख्या के अनुसार, पांच वर्षों का संपूर्ण रिकॉर्ड न तो भारत सरकार की वेबसाइट पर स्थानांतरित हो पाया और न ही नगर निगम की वेबसाइट पर सुरक्षित रहा। यानी, लाखों लोगों का जीवन रिकॉर्ड ‘स्थानांतरण’ के नाम पर हवा में विलीन हो गया।
इस अदृश्य विलोपन का सीधा खामियाजा प्रभावित लोगों को उठाना पड़ा। उन्हें अपने बच्चे या मृतक का प्रमाण पत्र दोबारा बनवाने के लिए अस्पताल के पुराने रिकॉर्ड निकलवाने पड़े, नए सिरे से फोटो और आधार कार्ड के साथ आवेदन करना पड़ा, और सबसे महत्वपूर्ण, नगर निगम और जोनल कार्यालयों के अनगिनत चक्कर काटने पड़े। एक नागरिक का यह समय, श्रम और मानसिक पीड़ा, नगर निगम की एक ‘तकनीकी खामी’ के खाते में दर्ज हो गई।
यह पहली बार नहीं था। सितंबर 2020 में भी 2012 से 2014 के बीच जन्मे 48,000 बच्चों का डाटा गायब हुआ था। 2018 में तो संपत्ति की महत्वपूर्ण फाइलें भी गायब हो गई थीं। यानी यह समस्या सिस्टम में गहरी जड़ें जमा चुकी है।
आज जब नागरिक को प्रमाण पत्र में एक छोटी सी गलती सुधारने की सुविधा ऑनलाइन मिल रही है, तो हमें इस बात पर ठहरकर विचार करना चाहिए कि क्या “करेक्शन की सुविधा” उस “मूल डाटा के विलोपन” की आपराधिक लापरवाही को छिपा सकती है?
डिजिटलीकरण का अर्थ है सुविधा और सुरक्षा। लेकिन आगरा में, यह ‘डिजिटल विलोपन’ का पर्याय बन गया। नगर निगम एक तरफ लोगों को घर बैठे ऑनलाइन आवेदन की सहूलियत दे रहा है, वहीं दूसरी तरफ वह उन लाखों लोगों को ऑफ़लाइन धक्के खाने को मजबूर कर रहा है जिनका पूरा रिकॉर्ड ही ‘डिलिट’ कर दिया गया।
यह स्पष्ट करता है कि हमारे सरकारी तंत्र में प्राथमिकताएं उल्टी हैं। हमें नागरिकों के लिए आकर्षक ‘फ्रंट एंड’ (सुविधाएं) बनाने की जल्दी है, लेकिन डाटा सुरक्षा, बैकअप और प्रबंधन जैसे ‘बैक एंड’ पर ध्यान देने की फुर्सत नहीं है। क्या नगर निगम ने डाटा शिफ्टिंग से पहले किसी बैकअप प्रोटोकॉल का पालन किया था? अगर किया था, तो वह बैकअप कहां गया? और अगर नहीं किया था, तो यह तकनीकी खामी कम, प्रशासनिक अक्षमता का प्रमाण ज्यादा है।
इस स्थिति में कई सवाल भी उठ रहे हैं
जन्म-मृत्यु का रिकॉर्ड नागरिक का सबसे बुनियादी वजूद है। क्या नगर निगम ने 2.5 लाख लोगों का डाटा गायब करने के लिए किसी अधिकारी की जवाबदेही तय की है, या यह मान लिया गया है कि तकनीकी खामी ‘ईश्वर की करनी’ थी?
अब जब करेक्शन की सुविधा ऑनलाइन हो गई है, तो क्या निगम यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में पूरा का पूरा ‘वजूद’ ही ऑनलाइन डिलीट न हो जाए? या फिर नागरिक हर पांच साल में दोबारा अपने वजूद को ‘री-जनरेट’ (Re-Generate) करने का काम करते रहेंगे?
प्रमाण पत्र में एक नाम की स्पेलिंग गलत होने पर ऑनलाइन सुधार की सुविधा मिलना एक उपलब्धि है। लेकिन जब प्रमाण पत्र का पूरा रिकॉर्ड ही गायब हो जाए, तब नागरिक किससे संपर्क करें— आईटी ऑफिसर से, नगर आयुक्त से, या अपने ‘खोए हुए वजूद’ की तलाश में किसी डेटा-पुनर्जन्म विशेषज्ञ से?
हर कुछ वर्षों में डाटा गायब होने की यह प्रवृत्ति क्या दर्शाती है? क्या हम एक ऐसा ‘स्मार्ट सिटी’ बना रहे हैं जहाँ नागरिकों का इतिहास समय-समय पर ‘पर्ज’ (Purge) कर दिया जाता है, ताकि वे हमेशा अपने जीवन के दस्तावेज फिर से बनाने में व्यस्त रहें और अन्य नागरिक मुद्दों पर सोचने का उन्हें समय ही न मिले?
आगरा नगर निगम द्वारा ऑनलाइन करेक्शन की सुविधा देना निःसंदेह एक प्रगतिशील कदम है, जिसे सराहा जाना चाहिए। यह नागरिकों के जीवन को आसान बनाएगा। लेकिन सुविधा का यह पुल उन लाखों लोगों के लिए बेमानी है, जिनका डाटा लापरवाही के दलदल में धंस चुका है।
प्रशासन को समझना होगा कि डिजिटल सुविधा केवल तभी विश्वसनीय होती है जब वह डिजिटल सुरक्षा के मजबूत स्तंभ पर खड़ी हो। ढाई लाख लोगों की असुविधा का ख्याल रखना केवल अतीत की गलती को सुधारना नहीं है, बल्कि भविष्य के डिजिटल प्रबंधन की विश्वसनीयता तय करना भी है। यदि हम अपने महत्वपूर्ण अभिलेखों को सुरक्षित नहीं रख सकते, तो ‘डिजिटल इंडिया’ सिर्फ एक नारा बनकर रह जाएगा। यह नई ऑनलाइन सुविधा स्वागत योग्य है, पर यह हमारे सिस्टम की उस गहरी बीमारी को छिपा नहीं सकती, जहाँ जवाबदेही और डाटा सुरक्षा का अभाव है। आगरा को सुविधा के साथ-साथ भरोसेमंद बैकअप की भी जरूरत है।
-मोहम्मद शाहिद की कलम से
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