Agra, Uttar Pradesh, India. नेशनल चैम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स आगरा के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया कि चैंबर की तरफ से लगातार प्रयास चल रहे हैं कि संपत्ति कर के पुराने मामलों के निस्तारण की पहल की जाए। मामला कितना भी पुराना हो, ब्याज न ली जाए। एक मुश्त समाधान योजना लाई जाए जिसमें देय टैक्स ही लिया जाए। बरेली के उद्योग संगठनों द्वारा बताया गया है कि उनके यहां पर एक मुश्त समाधान स्कीम लागू हो गई है। आगरा में भी इस स्कीम को अविलंब लागू किया जाना चाहिए। इस संबंध में नगर निगम के जिम्मेदारों से मुलाकात भी की जाएगी।
चैम्बर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने आगे बताया कि एक मुश्त समाधान योजना से दोनों ही पक्ष फायदे में रहेंगे। नगर निगम को पुराना बकाया मिल जाएगा। वहीं उद्यमियों को भी कोरोना काल में ब्याज की मार से राहत मिलेगी। वहीं दूसरी ओर नगर निगम से जुड़े अनेक मामले कोर्ट की तारीख के इंतजार में है। विधि व्यवस्था पर यह बोझ कम होगा। आगरा नगर निगम ने उत्तर प्रदेश के नगर विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव को आगरा में गृहकर पर ब्याज माफी का प्रस्ताव भेजा है। चैम्बर द्वारा उत्तर प्रदेश के सभी महापौरों से अनुरोध किया गया है वे भी सभी मिल कर गृह कर पर ब्याज माफी के लिए मुख्यमंत्री से अनुरोध करें क्योंकि यह उद्यमियों एवं सरकार दोनों के ही हित में है।
चैम्बर के पूर्व अध्यक्ष अमर मित्तल ने कहा कि नगर निगम अधिनियम में कुछ बुनियादी कमी हैं, उन्हें दूर करने के लिए चैम्बर द्वारा लगातार पत्राचार हो रहा है, जैसे अधिनियम भवन केवल 2 प्रकार के है – आवासीय एवं अनावासीय। अनावासीय प्रकार है जैसे दुकान, कारखाना अस्पताल, स्कूल, होटल, ऑफिस, बैंक, मॉल आदि। इनकी विभिन्न परिस्थितियाँ है। अतः इन सभी के लिए कानून और व्याख्या अलग-अलग होनी चाहिए।
नगर निगम प्रकोष्ठ के चेयरमैन विष्णु भगवन अग्रवाल ने बताया कि उद्यमी पूरा टैक्स देना चाहता है। उसे निगम स्वीकार नहीं करता है और मनमाने ढंग से कर आरोपित कर रहा है जो कि व्यापारियों एवं उद्यमियों को स्वीकार्य नहीं है। धारा 178 के अंतर्गत फैक्ट्री के क्षेत्र का आंकलन करने में 20 प्रतिशत क्षेत्र अनिवार्य रूप से छोड़ना है और 50 प्रतिशत कर की छूट गोदाम, गैराज, लंच रूम आदि की देनी है, जो नहीं देते हैं। क्षेत्र जिसमें खेती या मंदिर हो, वह पूरी छूट का पात्र है। चैकीदार व कामगार की रिहाईशी कोठरी भी छूट की हकदार है।
पूर्व अध्यक्ष मुकेश अग्रवाल ने कहा कि निगम उन्हीं क्षेत्रों में कर ले सकता है जो क्षेत्र उसने टेकओवर (अधिग्रहीत) कर लिए हो और उसमें 5 साल तक विकास किया है अन्यथा नहीं। निगम वर्ष 2014 से कर की मांग कर रहा है, जब कि नियमावली ही 2016 में प्रकाशित हुई है और कोई समय पर नोटिस नहीं दिया गया है। 6 साल से अधिक पुराने समय से डिमांड करना और टैक्स चुकता करने के बाद दोबारा मांग करना अनुचित है। मांग नोटिस देने की तारीख के बाद के समय से बनती है। जहां असेसमेंट नहीं हुआ है। रेट्रोस्पेक्टिव इफेक्ट (पूर्वव्यापी प्रभाव) से कर नहीं लिया जा सकता है, जैसा कि वोडाफोन के केस में इंटरनेशनल कोर्ट, हैग ने स्थिर किया है। अतः टैक्स का आकलन नई तिथि से नोटिस देने के बाद ही किया जा सकता है।
होटल व्यवसायी राकेश चौहान ने अवगत कराया कि उत्तर प्रदेश नगर निगम 1959 की धारा 178 में स्पष्ट दिशा निर्देश है कि यदि कोई भवन 90 दिन से अधिक बंद या खाली रहता है तो उस समय का गृहकर शून्य हो जाएगा। इसमें यह भी दिशा निर्देश है कि पूर्व सूचना देनी होगी। लॉकडाउन के समय में सूचना देना संभव नहीं था। चूँकि केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन लगाया गया था। अतः यह अध्यादेश स्वतः ही इस कानून के काम आएगा। नगर निगम द्वारा नाप फुट में दिखाई जाती है जबकि मेजरमेंट में फुट कहीं नहीं है। अतः नाप मीटर में होनी चाहिए।
उपाध्यक्ष अनिल अग्रवाल, उपाध्यक्ष सुनील सिंघल एवं कोषाध्यक्ष गोपाल खंडेलवाल ने संयुक्त बयान में कहा कि चैम्बर द्वारा उत्तर प्रदेश के महापौरों को पत्र लिखकर जो पहल की है उसका परिणाम अच्छा आएगा। उम्मीद है सरकार नियमानुकूल तर्कों पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए शीघ्र अग्रिम कार्यवाही करेगी तथा ब्याज माफी के प्रस्ताव को स्वीकार करते उद्यमियों व व्यापारियों को शीघ्र रहत पहुंचाएगी। इससे सरकार को अच्छा राजस्व प्राप्त होगा।
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