आंतरिक शत्रुओं पर विजय पाना ही विजयादशमी, अपने अंदर के रावण का दहन करें
राजामंडी के जैन स्थानक में भक्तामर स्रोत अनुष्ठान, बह रही भक्ति की धारा
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Agra, Uttar Pradesh, India. नेपाल केसरी और मानव मिलन संगठन के संस्थापक, जैन मुनि डॉ.मणिभद्र महाराज ने कहा कि राम और रावण जैसी प्रवृत्तियां हमेशा थीं, आज भी हैं और आगे भी रहेंगी। इसलिए हमें अपने आंतरिक रावण का वध करके श्रीराम को हृदय में बसा लेना चाहिए।
राजामंडी के जैन स्थानक में हो रहे भक्तामर स्रोत में प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने आचार्य मांगतुंग की स्तुति के माध्यम से 44 वें श्लोक का विश्लेषण किया। कहा कि हमारे जीवन में अज्ञान का भय रहता है। जिसमें स्वयं का ज्ञान नहीं होता, वह अंदर ही अंदर अपने को भयभीत महसूस करता है। भय एक प्रकार की कमजोरी भी है। न तो हमको कभी भयभीत होना चाहिए न इस प्रकार का कोई काम करें, जिससे हमसे कोई भयक्रांत हो। जैन मुनि कहते हैं कि निर्भय होने के लिए आत्मबल की जरूरत है। मृत्यु और नर्क का भय हमें कमजोर बनाता है। जिसे मृत्यु का भय नहीं, वह तो निर्भय ही रहेगा। बहुत से लोग कठोर दिखते हैं, लेकिन मृत्यु का भय उन्हें भी सताता है। अनुचित कर्मों से भी लोग भयभीत रहते हैं। जो निर्भय रहते हैं, उन्हें किसी भी सुरक्षा की जरूरत नहीं होती। साधु, जंगल में जाते हैं तो उन्हें कोई भय नहीं होता। मृत्यु से डरते नहीं हैं। बाकी उन पर क्या है जो कोई उनसे छीन लेगा। भयभीत तो वह होता है जिसने अपनी जीवन में बहुत सी धन, संपत्ति जोड़ ली हो और उसका सुख उठाये बिना मौत आने वाली हो।
विजयादशमी की शुभकामनाएं देते हुए जैन मुनि ने कहा कि अहंकार के कारण शक्तिशाली व्यक्ति भी हार जाता है। रावण जैसा पराक्रमी राजा, वनवासी राम से हार गया। इसमें भावनाओं की भी हार जीत होती है। भगवान राम चाहते हैं कि अयोध्या के राज पर अन्य भाइयों का भी अधिकार हो, जबकि रावण अहंकारी था, उसने भाइयों शासन से दूर रखा था। यानि राम कहते हैं सबका है, रावण कहता था मेरा है।
जैन मुनि ने कहा कि रावण और राम हमारे मन में हमेशा से हैं और रहेंगे। प्रेम, त्याग, करुणा, दया, वात्सल्य भगवान राम का प्रतीक है और क्रोध, अहंकार, वैमनस्यता रावण का प्रतीक। अतः हमें अपने मन के रावण को मारना चाहिए, तभी जीवन में राम हमें सुख देते रहेंगे। यह प्रसंग भी प्रचलित है कि रावण इसलिए हारा कि उसका भाई उसके साथ नहीं था, राम इसलिए जीते कि उनका भाई उनके साथ था। ये प्रसंग भाइयों के प्रेम की प्रेरणा देता है। क्योंकि सत्ता और संपति सब कुछ क्षण के लिए हैं, भाइयों में यदि प्रेम होगा तो वह हमेशा साथ देगा। इसलिए अपने अंदर के रावण का दहन करना चाहिए।
बुधवार की धर्मसभा में उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय भी उपस्थित थे। अपने संक्षिप्त उद्बोधन में उन्होंने कहा कि जैन समाज में ज्ञान और अपरिग्रह की पराकाष्ठा है। करोना काल में हम लोगों को जबरदस्ती मुंह पर मास्क लगाना पड़ा लेकिन जैन धर्म में मुनियों की दूरदर्शिता के कारण जैन मुख पट्टिका सदियों से लगाते आ रहे है ।जिसे हम लोगों ने मुश्किल वक्त में जबरदस्ती पहना उसे जैन धर्म की वैज्ञानिकता ने पहले ही धर्म के माध्यम से आप सब तक पहुंचा रखा है।
पूर्व मेयर इंद्रजीत आर्य भी अनुष्ठान में पहुंचे थे। इससे पूर्व योगेंद्र उपाध्याय एवम इंद्रजीत आर्य का सम्मान ट्रस्ट की तरफ से नरेश जैन एवम विवेक कुमार जैन ने किया। कार्यक्रम का संचालन राजेश सकलेचा द्वारा किया गया।
मानव मिलन संस्थापक नेपाल केसरी डॉक्टर मणिभद्र मुनि, बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में बुधवार को 44वीं गाथा के जाप का लाभ सुदेश कुमारी जैन, लवीना विवेक कुमार जैन, ध्रुव सलोनी जैन, डॉक्टर नवकार जैन परिवार बाग फरजाना ने लिया। नवकार मंत्र जाप की आराधना ऊषा लोढ़ा परिवार ने की।
महावीर भवन में समाज में बच्चों में जिन धर्म के प्रति जागृति लाने के लिए जैन बाल शिक्षा शिविर के दूसरे दिन भी 4 वर्ष से लेकर 20 वर्ष तक के 110 से अधिक बच्चो ने भाग लिया। इस शिविर में प्रातः 10 बजे से सायं 4 बजे तक विभिन्न धार्मिक प्रतियोगिताएं, जैन मंत्रों की महिमा, तपस्या का महत्व, प्रतिक्रमण का अर्थ आदि अनेक विषयों पर बच्चों को शिक्षा दी गई।
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