देश के पांच राज्यों में संपन्न हुए चुनावों में बीजेपी ने चार राज्यों में जबरदस्त जीत हासिल कर सत्ता पर कब्जा कर लिया है। इनमें सबसे अहम उत्तर प्रदेश है, जहां 37 साल बाद किसी पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता का स्वाद चखने का मौका मिल रहा है। उत्तर प्रदेश चुनाव में महाराष्ट्र की शिवसेना ने कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन यहां पार्टी को नोटा से भी कम वोट मिले। बीजेपी की बंपर जीत पर शिवसेना ने मायावती पर निशाना साधा है।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा है कि कभी उत्तर प्रदेश में बाघिन की तरह घूमने वाली मायावती, केंद्रीय जांच एजेंसियों के डर से चुनाव से भाग खड़ी हुईं। आय से अधिक संपत्ति के मामले में केंद्रीय जांच एजेंसियों का दबाव लाकर मायावती को चुनाव से दूर रहने के लिए मजबूर किया गया। बसपा की चुनाव में मौजूदगी एक औपचारिकता मात्र थी। जो पार्टी किसी दौर में उत्तर प्रदेश में अपने दम पर सत्ता में आने का चमत्कार कर चुकी थी। उस पार्टी को 403 के आंकड़ों वाले विधानसभा में से सिर्फ एक सीट का मिलना यह किसी को स्वीकार होगा क्या?
केंद्रीय जांच एजेंसियों के दबाव से मिली जीत
सामना ने अपने संपादकीय में लिखा है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का दबाव, उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीजेपी की जीत का प्रमुख कारक सिद्ध हुआ है। हालांकि विजय सभा में हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि विरोधी केंद्रीय जांच एजेंसियों पर दबाव बना रहे हैं। प्रधानमंत्री की राय से उनके लोग भी सहमत नहीं होंगे। दबाव क्या और कैसा होता है, मायावती इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। बीजेपी के यश में केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए मायावती का भी बड़ा रोल है। इसका सीधा मतलब है कि मायावती ने इस बार अपने साथ-साथ अपनी पार्टी ‘बसपा’ का भी अस्तित्व समाप्त कर दिया है।
राष्ट्रपति चुनाव में होगी मुश्किल
सामना ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत का जश्न मनाया गया है। निश्चित तौर पर उनकी सत्ता आई है। हालांकि इस बार अखिलेश यादव की सीटें भी विधानसभा में तीन गुना बढ़ी हैं। पंजाब की स्थिति और इस तीन गुना बढ़ी सीटों के कारण राष्ट्रपति का चुनाव बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनता हुआ नजर आ रहा है।
अपने दामन के दाग नहीं दिखते
सामना ने अपने संपादकीय में सवाल उठाया है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का झमेला सिर्फ राजनीतिक विरोधियों के पीछे हैं क्यों लगता है? बीजेपी के भ्रष्ट और घोटालेबाज लोगों की जानकारी सार्वजनिक करते ही और उनके बारे में सरकार को बताते ही, जांच एजेंसियों पर दबाव कैसे सिद्ध हो सकता है? महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल ने दिल्ली की गुलामी को ठुकरा दिया। तुम्हारे टुकड़ों पर जीने वाले बिल्ली बनकर रहने से इंकार कर दिया इसलिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करना, यह कैसी निष्पक्षता और स्वस्थ स्वतंत्र स्वाभिमान है।
-एजेंसियां
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