लोकसभा चुनाव 2024: राम मंदिर के मुद्दे पर चुनावी बिसात बिछाने में जुटी बीजेपी, पुजार‍ियों से लेकर न‍िषाद राज तक…सोशल इंजीन‍ियर‍िंग

लेख

 

राम मंदिर के इर्द-गिर्द 2024 का लोकसभा चुनाव सिमटता जा रहा है. बीजेपी राम मंदिर के मुद्दे पर ही चुनावी बिसात बिछाने में जुटी है, जिसके लिए देश भर की लोकसभा सीटों से लोगों को रामलला के दर्शन कराने की स्टैटेजी बनाई है. इसके अलावा 22 जनवरी को होने वाले रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को पार्टी ने दिवाली जैसी भव्यता के साथ मनाने की पूरी तैयारी कर रखी है. रामभक्तों को अयोध्या दर्शन कराने के मेगा प्लान बीजेपी ने बना रखा है, जिसके लिए संघ और वीएचपी के लोग घर-घर जाकर निमंत्रण भी दे रहे हैं.

बीजेपी अयोध्या में बन रहे भगवान श्रीराम मंदिर की भव्यता को हर गांव और घर पहुंचाने की कवायद में है. इसके साथ ही अयोध्या में राम मंदिर के साथ-साथ सामाजिक संतुलन बनाने की कोशिश की जा रही है ताकि ‘रामराज’ की कल्पना का संदेश दिया जा सके.

लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा और 22 जनवरी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पीएम मोदी यजमान की भूमिका में शिरकत करेंगे.

बीजेपी अयोध्या के जरिए 2024 के चुनाव को ही फतह करने की रणनीति नहीं बनाई है बल्कि एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने की भी कोशिश कर रही है. चाहे राम मंदिर के पुजारियों का चयन हो या फिर पीएम मोदी का अयोध्या में एक निषाद समुदाय के घर जाकर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण देना या अयोध्या एयरपोर्ट को महर्षि वाल्मीकि के नाम पर रखा जाना. इसके अलावा योगी सरकार ने निषादराज के नाम अतिथि गृह और माता शबरी के नाम पर भोजनालय चलाने का फैसला किया.

इन सारे फैसलों से साफ तौर पर ऐसी सोशल इंजीनियरिंग बनाने की कोशिश की गई है, जिसके जरिए सभी समाजों को सियासी संदेश देने की स्टैटेजी मानी जा रही है.

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पुजारियों के चयन में सोशल इंजीनियरिंग

अयोध्या में राम मंदिर के लिए 24 पुजारियों को चयन किया गया है, जिसमें 2 अनुसूचित जाति और 1 पिछड़ा वर्ग से है. राम मंदिर के महंत मिथिलेश नंदिनी शरण और महंत सत्यनारायण दास सभी पुजारियों को ट्रेनिंग दे रहे हैं. राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने पुजारियों के चयन में दलित और ओबीसी समुदाय का चयन करके बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है. दक्षिण भारत में गैर ब्राह्मण पुजारी बड़ी संख्या में मिल जाएंगे, लेकिन उत्तर भारत के मंदिरों में अभी भी ब्राह्मण ही पुजारी बनते रहे हैं. राम मंदिर में दो दलित और एक ओबीसी पुजारी बनाकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया है.

9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास का कार्यक्रम रखा गया था. इस शिलान्यास कार्यक्रम में राम मंदिर निर्माण के लिए पहली आधारशिला दलित समुदाय से आने वाले कामेश्वर चौपाल ने ही रखी थी. सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद केंद्र सरकार के द्वारा गठित किए गए राम मंदिर ट्रस्ट में कामेश्वर चौपाल को जगह दी गई थी. राम मंदिर आंदोलन से लेकर राम मंदिर के बने ट्रस्ट और मंदिर के पुजारी तक में दो दलित समुदाय को प्रतिनिधित्व दिया गया है. इसके अलावा एक पुजारी ओबीसी समुदाय से है. इतना ही नहीं रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के यजमान की भूमिका में पीएम मोदी रहेंगे, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं. 5 अगस्त 2020 के राम मंदिर के निर्माण के भूमि पूजन की आधार शिला पीएम मोदी ने रखी थी.

राम मंदिर के साथ सात और मंदिर

अयोध्या भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर ही नहीं बन रहा बल्कि अयोध्या में सात और मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है. इसमें महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषाद राज, माता शबरी और देवी अहिल्या की है. इस तरह से अयोध्या को त्रेतायुग की झलक दिखेगी, जिसके जरिए एक बड़ा सियासी संदेश देने की रणनीति मानी जा रही है. इसके जरिए राम मंदिर ट्रस्ट ने सभी वर्ग को साधने की कोशिश की गई है.

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिखी है, जो दलित समुदाय से हैं. महार्षि वशिष्ठ भगवान राम के कुल गुरु थे. भगवान श्रीराम अयोध्या से प्रारंभिक शिक्षा के लिए आए थे तो वो सबसे पहले बढ़नी मिश्र गांव में महर्षि वशिष्ठ से शिक्षा ग्रहण की थी. महर्षि विश्वामित्र भी भगवान राम के गुरु थे. विश्वामित्र ने ही भगवान राम को धनुर्विद्या और शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया था.

माता शबरी आदिवासी समुदाय से थी, जिन्होंने वनवास के दौरान श्रीराम को मीठे बेर खिलाए थे. इसके अलावा भगवान राम जब वनवास के लिए अयोध्या से निकले थे तो श्रृंगवेरपुर में गंगा नदी पार कराने में एक दलित नाविक निषादराज गुहा केवट ने उनकी सहायता की थी. यही वजह है कि राम मंदिर के साथ निषाद राज और माता सबरी के की मंदिर बनाई जा रही है.

इसके अलावा ऋषि अगस्त्य ने श्रीराम को ‘पंचवटी’ में ठहरने की सलाह दी थी. वे एक महान ऋषि थे और उनके आश्रम में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने कुछ समय बिताया था. इसीलिए अयोध्या में उनकी मंदिर बनाई जा रही है.

निषाद परिवार को पीएम मोदी का तोहफा

पीएम मोदी खुद अयोध्या में निषाद समुदाय के एक परिवार को घर जाकर रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण अपने हाथों से सौंपा था. पीएम मोदी ने रविंद्र मांझी और उनकी पत्नी मीरा मांझी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण देते हुए उनसे 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के उद्घाटन में आने का आग्रह किया था. इस दौरान राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय भी मौजूद रहे. पीएम मोदी ने निषाद परिवार के घर में चाय पिया. नरेंद्र मोदी ने अयोध्या के निषाद परिवार को नए साल की शुभकामनाएं और गिफ्ट भेजकर बड़ा सियासी दांव चला है, जिसे बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग से भी जोड़कर देखा जा रहा है.

माता शबरी और निषाद राज पर दांव

यूपी की योगी सरकार ने अयोध्या में माता सबरी और निषाद राज के नाम पर बड़ा दांव चला है. योगी सरकार ने अयोध्या में भंडारा चलाने का फैसला किया है, जो ‘माता शबरी’ भोजनालय के नाम से जाना जाएगा. इसके अलावा रैन बसेरे को ‘निषादराज गुहा अतिथि गृह’ के रूप में विकसित किया जाएगा. शबरी के जूठे बेर भगवान राम ने खाए थे तो निषाज राज ने उन्हें श्रृंगवेरपुर में गंगा नदी पार कराने का काम किया था. माता शबरी एक आदिवासी महिला थीं जिन्होंने श्रीराम को मीठे बेर खिलाए थे. शबरी ने राम को जूठे बेर खिलाए ताकि वह जान सकें कि जो बेर वह अपने भगवान को खाने के लिए दे रही हैं वे खट्टे तो नहीं हैं. भगवान राम शबरी और केवट की भक्ति से काफी प्रसन्न हुए थे. केवट और शबरी का भारतीय समाज में विशेष महत्व है.

निषादराज भगवान राम के निमंत्रण पर पधारे थे. भगवान राम ने मित्र का दर्जा दिया. अब प्रभु रामलला अपने भव्य मंदिर में करीब 550 सालों के बाद विराजमान होने वाले हैं तो उनकी मंदिर के लेकर अतिगृह तक को उनके नाम पर रखा जा रहा है.

महर्षि बाल्मिकी के नाम पर एयरपोर्ट

रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि एक ऐसे पात्र हैं, जिनकी अक्सर चर्चा होती है. अयोध्या में बने नए एयरपोर्ट का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर रखा गया. अयोध्या के नए हवाई अड्डे को महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अयोध्या धाम के नाम से जाना जाएगा. महर्षि वाल्मीकि दलित थे या ब्राह्मण. यह एक ऐसा सवाल है, जिसपर दशकों से बहस होती रही है. देश की तमाम अनुसूचित जातियां खुद को वाल्मीकि का वंशज बताती हैं. उत्तर भारत में तो दलित समुदाय का एक वर्ग, अपने नाम के साथ टाइटल के तौर पर वाल्मीकि लगाता है. हालांकि, कई ग्रंथों में उन्हें ब्राह्मण बताया गया है. पीएम मोदी ने ही अयोध्या में बाल्मिकी एयरपोर्ट का उद्घाटन किया था.

अयोध्या से सोशल इंजीनियरिंग को मजबूती

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी और दलित समुदाय को वोट बैंक बड़ी भूमिका में है. बीजेपी दलित और ओबीसी वोटों को साधकर ही सत्ता में आई है, जिसे मजबूती से बनाए रखना चाहती है. ऐसे में अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर बन रहा है तो उसके साथ वो सभी कोशिश की जा रही है, जिसके सामाजिक समरसता को भी बनाए रखनी स्टैटेजी है.

इसीलिए ममता शबरी से लेकर महर्षि बाल्मिकी, निषादराज के नाम मंदिर बनवाने से लेकर उनके नाम पर तमाम चीजें की जा रही है, जो सियासी तौर पर बीजेपी को लिए लंबे समय की राजनीति के ताकत देने का काम कर सकती है. भगवान राम के परम मित्र निषादराज के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ग को साधने की कोशिश की है. निषाद समुदाय के बड़ा वोट बैंक है तो 22 फीसदी दलितों के बीच भी बीजेपी गहरी पैठ बना चुकी है.

Compiled by up18 News

Dr. Bhanu Pratap Singh