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चौरी-चौरा की घटना को कांड बताना सबसे बड़ी भूलः प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी

NATIONAL POLITICS PRESS RELEASE REGIONAL

Agra, Uttar Pradesh, India. भारतीय इतिहास संकलन समिति, आगरा (ब्रज प्रान्त) द्वारा देश की स्वतन्त्रा के ‘अमृत महोत्सव’ (75 वर्ष) के अन्तर्गत आयोजित की जा रही व्याख्यान-माला के अन्तर्गत आज एक संगोष्ठी का आयोजन संकल्प कोचिंग संस्थान, संजय प्लेस पर किया गया। संगोष्ठी का विषय था, “ऐतिहासिक दृष्टि से चौरी- चौरा: एक पुनरावलोकन।” संगोष्ठी के मुख्य वक्ता पं. दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर के प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा कि चौरी-चौरा की घटना को कांड बताना सबसे बड़ी भूल है।

चौरी-चौरा की घटना 4 फरवरी, 1922 को गोरखपुर जिले में हुई थी। असहयोग आंदोलन के दौरान पुलिस ने वीभत्स अत्याचार किए थे। निहत्थी भीड़ पर पुलिस ने फायरिंग कर दी। कई लोग मारे गए। इसके बाद लोग क्रोधित हो गए। जवाबी कार्रवाई में 22 पुलिस वाले मारे गए। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार और बढ़ गए। 19 लोगों को फांसी दे दी गई थी। बाद में बाबा राघवदास ने हाईकोर्ट में महामना मदन मोहन मालवीय के माध्यम से मुकदमा लड़ा। सरकार को आदेश करना पड़ा कि निहत्थे लोगों पर फायरिंग नहीं की जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में बाबा राघवदास का उल्लेख किया था।

उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण भारतीय इतिहास को राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय भावनाओं के साथ अत्याचारी विदेशी शासकों के विरुद्ध हुए आंदोलन की घटना को कांड कहना जांबाज स्वतन्त्रता सेनानियों का अपमान है। उन्होंने बताया कि जागरूकता के अभाव और इतिहास के प्रति उचित दृष्टिकोण न होने के कारण वर्ष 2005 तक इस घटना में मारे गए ब्रिटिश पुलिसकर्मियों का तो शहादत दिवस सरकारी स्तर पर मनाया जाता था, किन्तु इस घटना में शहीद हुए 22 सेनानियों को याद करने की सुध नहीं थी। इतिहास संकलन समिति के प्रयासों से ब्रिटिश पुलिस कर्मियों का शहादत दिवस मनाना बन्द किया गया।

बाएं से प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी, प्रो. सुगम आनंद, डॉ. मनोज परिहाह, शिवराज सिंह सिकरवार।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. सुगम आनन्द ने कहा कि चौरी-चौरा की घटना की तरह ही आगरा में चमरौला रेलवे-स्टेशन की घटना व स्वतन्त्रता आंदोलन की अन्य स्थानीय घटनाओं पर शोध करके उनको उजागर करना भी अपेक्षित है। उन्होंने स्थानीय इतिहास के लेखन के लिए गाँवो में प्रचलित जगा प्रथा व उनके अभिलेखों के भी स्रोत के रूप मे उपयोग पर बल दिया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में इतिहासविद डॉ. तरुण शर्मा ने इतिहास संकलन समिति का परिचय देते हुए, स्वतंत्रता आन्दोलन में चौरी-चौरा की घटना के महत्व को रेखांकित किया। कार्यक्रम का संचालन ज़िला महामंत्री डॉ. मनोज परिहार ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विश्वेन्द्र चौहान एडवोकेट ने किया। यूटा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवराज सिंह सिकरवार ने कहा कि फतेहपुर सीकरी कभी विजयपुर सीकरी था। उन्होंने कहा कि हम राम के वंशज हैं।

इस अवसर पर डॉ. भानु प्रताप सिंह, एड देवेश परिहार, डॉ. अनूप राघव, शिवम, डॉ. रुचि अग्रवाल, सुनील कुमार सिंह, भूपेन्द्र राघव, शिवकान्त लवानियां, देवेन्द्र, तिलक पाल चाहर, हरिमोहन शर्मा, विजय चक, सन्तोष सहित अनेक शिक्षक, विद्यार्थी एवं इतिहास प्रेमी और प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।