kedarnath

केदारनाथ धामः गर्भगृह स्थल का साक्षात दिव्य पिरामिडनुमा ज्योतिर्लिंग का दुर्लभ दर्शन

RELIGION/ CULTURE

वैदिक सूत्रम आगरा के चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने वर्ष 2019 में केदारनाथ धाम में पिरामिडनुमा दिव्य अलौकिक ज्योतिर्लिंग के VIP दर्शन किए। इसके साथ ही गर्भगृह स्थल के दुर्लभ फ़ोटो लिए। यह फोटो मोबाइल कैमरे से लेना किसी भी श्रद्धालु के लिए असम्भव है, क्योंकि कोई भी श्रद्धालु गर्भगृह स्थल का फोटो नहीं ले सकता है। मंदिर के मुख्य पुजारी से अनुरोध करने पर केदारनाथ धाम के दिव्य रहस्यमयी गर्भगृह स्थल के पिरामिडनुमा ज्योतिर्लिंग के दुर्लभ फोटो खींचे। सभी श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ प्रथम बार केदारनाथ धाम के गर्भगृह स्थल के दुर्लभ फ़ोटो को सभी के लिए सार्वजनिक किए जा रहे हैं। जो किसी भी कारण वश केदारनाथ धाम के दर्शन नहीं कर पाते हैं, वे साक्षात केदारनाथ धाम के दिव्य पिरामिडनुमा ज्योतिर्लिंग के घर बैठे ही दर्शन कर सकते हैं।

 

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि केदारनाथ धाम का मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा है। इस मंदिर के सन्दर्भ में कुछ महत्वपूर्ण रहस्य छिपे हुए हैं। केदारनाथ धाम में एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदार, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्च-कुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरत-कुंड का पहाड़, न सिर्फ 3 पहाड़ बल्कि 5 नदियों का संगम भी है। यहां- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नदियां हैं। इन नदियों में अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है और इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है।

 

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने केदारनाथ धाम के रहस्य के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि प्रत्येक वर्ष दीपावली महापर्व के बाद दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक मंदिर के अंदर दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ धाम के कपाट खुलते हैं, तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है। लेकिन आश्चर्य की बा‍त है कि 6 माह तक दीपक भी जलता रहता है और निरंतर पूजा भी होती रहती है। मंदिर के कपाट खुलने के बाद, यह भी एक आश्चर्य का विषय है कि वैसी की वैसी ही साफ-सफाई मिलती है, जैसी कि मंदिर के कपाट बंद करने के दौरान 6 माह पहले छोड़कर गए थे।

 

एस्ट्रोलॉजर पंडित गौतम ने केदारनाथ धाम के वर्ष 2013 के एक अन्य रहस्य के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि सभी को ज्ञात है कि 16 जून 2013 की रात प्रकृति ने केदारनाथ धाम में कहर बरपाया था। जलप्रलय से कई बड़ी-बड़ी और मजबूत इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढहकर पानी में बह गईं थीं, लेकिन केदारनाथ के मंदिर का कुछ नहीं बिगड़ा। आश्चर्य तो तब हुआ, जब पीछे की पहाड़ी से पानी के बहाव में लुढ़कती हुई विशालकाय चट्टान आई और अचानक वह मंदिर के पीछे ही रुक गई, उस चट्टान के रुकने से बाढ़ का जल 2 भागों में विभक्त हो गया और मंदिर कहीं और ज्यादा सुरक्षित हो गया। वर्ष 2013 की उत्तराखंड की इस प्रलय में लगभग 10 हजार लोगों की मौत हो गई थी।

 

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने एक अन्य महत्वपूर्ण रहस्य के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि पौराणिक पुराणों की भविष्यवाणी के अनुसार उत्तराखंड में केदारखण्ड के इस समूचे क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा और भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पौराणिक पुराणों के अनुसार वर्तमान में स्थित बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में ‘भविष्यबद्री’ नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।

Dr. Bhanu Pratap Singh