dr siraj qureshi

बिहार की कमला देवी उर्फ अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL लेख

कमला हैरिस यानी बिहार प्रदेश की कमला देवी पहली अश्वेत अमेरिकी उपराष्ट्रपति चुनी गई हैं । यह भारत देश के लिये गर्व की बात तो कही ही जा सकती है। चैन्नई की रहने वाली कमला की माँ श्रीमती श्यामला गोपालन और उनके पिता डोनल्ड हैरिस (जो कि जमैका मूल के निवासी है) भाग्यशाली हैं जिनकी सुपुत्री ”कमला हैरिस“ अमेरिका जैसे बड़े देश की उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर विराजमान होगी। कमला अपने मामा और दो मौसियों के काफी नजदीक रही है। इसलिए अक्सर उनका इण्डिया आना जाना लगा रहता है। कमला हैरिस की माताश्री श्यामला गोपालन की सत्तर वर्ष की आयु में (2009 में) निधन हो गया था।

आगरा की शहजादी मण्डी निवासी और अमरीका जाकर बसे  दीपक शर्मा ने एक बार मुझे बताया था कि 1960 के दशक में भारत से अमरीका आकर बसने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई थी। अगले चार दशकों में लाखों की संख्या में इण्डियन अमेरिका के निवासी बन गये थे। दीपक शर्मा ने बताया था कि आज मुझ सहित अमरीका में रहने वाले भारतीयों के पास ग्रीन कार्ड है, इसी तरह सन् 1980 में साढ़े तीन लाख सन् 1990 में दस लाख तथा आई.टी. क्षेत्र में प्रवेश के साथ सन् 2000 तक यह संख्या बढ़ कर तीस लाख हो गई, सन् 2010 में यह आंकड़ा तीस लाख से चालीस लाख के आस-पास पहुँच गया है। अगर विश्व स्तर पर नज़र दौड़एं तो यह 2020 वर्ष ऐसा अंकित हुआ जहाँ महिला एवं राजनीति के दर्शन शास्त्र में एक नये ऐतिहासिक के बदलाव की शुरुआत दर्ज हुई है।

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यह कहना भी शतप्रतिशत सच है कि कमला हैरिस का विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का उपरष्ट्रपति बनना बदलाव को परिभाषित करता है। वही हजारों किलोमीटर इस बिहार के सुदूर में बैठी कमला देवी सजग होकर मताधिकार का प्रयोग करके मर्दो के बनिस्बत 6 प्रतिशत ज्यादा वोट देकर विकास की आस में नीतीश कुमार की ताजपोशी में अहम भूमिका निभाती है। राजनीतिक गलियारों के केन्द्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी एवं खुद के लिये अपनी जगह निर्धारित करने का प्रयास एक सजग सामाजिक ढाँचे के निर्माण की ओर बढ़ते कदम के रूप् में देखा और समझा जा सकता है यह भी सच्चाई किसी से नहीं छुपी है कि 18 अगस्त सन् 1920 को अमरीका में पहलीबार महिलाओ को अपना वोट देने का हक मिला था।

अगर अपने भारत वर्ष की बात की जाये तो संविधान निर्माताओं ने महिलाओं को मताधिकार के अवसर सुरू से ही दिये हुये है, हालांकि यह इतना आसान नहीं था कई सालों के अथक प्रयास एवं आन्दोलन के बाद अनेक देशों अमरीका, फ्रांस, नार्वे, ग्रीस, स्वीडन और ब्रिटेन आदि में महिलाओं को वोट डालने का प्रावधान बना अमरीका के लगभग 100 वर्ष बाद मिला। कमला देवी (अब कमला हैरिस) जैसे व्यक्तित्व का चुनाव न सिर्फ उन 100 वर्षो के मताधिकार का महिलाओं द्वारा प्रयोग किये जाने को एक सटीक मोड़ पर ला खड़ा करता है बल्कि यह अमेरिका के नागरिकों की दूरदर्शी, सद्भाव एवं लिंग समानता की सोच को भी राजनीतिक गलियारे में स्थापित करता है।

जो बाइडेन की दूरदर्शी और न्याय संगत सोच को भी बहुत हद तक श्रेय देने की आवश्यकता है कि उनकी सोच लंबी फेमिनिस्ट विचारधारा को भी समसामयिक दृष्टि देती है। जहाँ महिलाओं के समानता के अधिकार में एक पुरुष किस प्रकार राजनीति में फेमिनिज्म की आधारशिला को मजबूत प्रदान करता है वहीं ट्रम्प के लिंग भेद के विवादित बयानों की लम्बी फेरिस्त है जो उनके राष्ट्रपति होने के पहले से उनके साथ चली आ रही थी। बाइडेन और कमला हैरिस की जोड़ी ने अपनी हर डिबेट में नागरिकों से आत्मीय जुड़ाव रखा। जहाँ असमानता के जीत एवं समानता के सपनों को देखता हर एक नागरिक उनमें अपना प्रतिबिम्ब देख पा रहा था समानता की लम्बी लड़ाई चाहे महिला अस्तित्व की हो या रंग भेद मिटाने की, इसको अमेरिकी अवाम ने अपने वोट द्वारा सही दिषा देने का काम किया।

भविष्य में 2020 को महिला एवं राजनीति को परिभाषित करने में अहम साल के रूप में याद किया जायेगा। जहाँ संवैधानिक तन्त्र एवं महिलाओं का बदलाव का स्वजिम्मा उठाना आने वाले दिनों में इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम हस्ताक्षर अंकित करेगा चाहे अमरीका के उपराष्ट्रपति के रूप में कमला हैरिस का शपथ लेना हो या बिहार के सुदूर गाँव में लम्बी पंक्तियो में कमला देवी द्वारा मताधिकार का प्रयोग राजनीति एवं राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की दस्तक एवं भागीदारी की न्याय संगत शुरुआत हो चुकी है।

डॉ. सिराज कुरैशी, वरिष्ठ पत्रकार

17/14 सदर भट्टी, आगरा-282010