एकता से उन्नति: आगरा के ताजगंज में जाटव समाज उत्थान समिति की बैठक, कुरीतियों के त्याग का आह्वान

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat.

आगरा। बाबू जगजीवन राम पुस्तकालय, ताजगंज, आगरा में जाटव समाज स्थान समिति की बैठक हुई। इसमें समाज की एकता पर बल दिया गया। साथ ही कुरीतियों को त्यागने का भगवान किया गया।

बैठक का संदर्भ

बंगाली बाबू सोनी की अध्यक्षता में आयोजित इस महत्वपूर्ण बैठक में संरक्षक की भूमिका निभा रहे देवकीनंदन सोन ने समाज की एकजुटता को समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बताया।

कुरीतियों का त्याग, अधिकारों की राह

देवकीनंदन सोन ने कहा, “हमें समाज में व्याप्त कुरीतियों को त्यागते हुए संगठित रहना होगा। जब समाज में एकता होगी, तब सरकार चाहे किसी की हो, हम समाजहित के कार्यों में सफल होंगे। जाटव समाज उत्थान समिति का मूल उद्देश्य कुप्रथाओं को छोड़कर मानवीय अधिकार प्राप्त करना है।”

रचनात्मक कार्यों को सहयोग

कांशीराम इंटर कॉलेज के प्रबंधक संजय सिंह ने समिति द्वारा किए जा रहे रचनात्मक कार्यों की सराहना की और कहा कि वे समिति के प्रयासों में सक्रिय सहयोग देंगे।

48 वर्षों की निरंतर साधना

अध्यक्षता कर रहे बंगाली बाबू सोनी ने कहा कि समिति पिछले 48 वर्षों से समाज उत्थान के लिए निरंतर समर्पित रही है और यही प्रतिबद्धता आगे भी जारी रहेगी।

विवादों से दूर, काम पर फोकस

जाटव समाज उत्थान समिति को आगरा की सबसे पुरानी और सक्रिय संस्था बताते हुए वक्ताओं ने कहा कि संगठन ने हमेशा विवादों से दूरी बनाए रखकर जमीनी काम को प्राथमिकता दी है।

भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा

महामंत्री रूपसिंह सोनी ने कहा, “आज के दौर में समाज का एकजुट होना अत्यावश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ समाजसेवा से प्रेरणा लेकर नेतृत्व की नई राहें बना सकें।”

उपस्थित मान्यजन

बैठक में सर्वश्री चौ. मानसिंह, अनिल कुमार संत, रूपसिंह सोनी, बच्चूसिंह कैथ, सत्यप्रकाश, राजेंद्र भारती, चौ. निरंजन सिंह, सूरजभान भाटिया, इंजी. मानिकचंद, महेंद्र सिंह, दिनेश सागर, प्रमोद पिप्पल, परमजीत सिंह, प्रेमसिंह, गुरु प्रसाद, एस.के. डेनियल, पवन जयंत, सुंदर सिंह, दरबारी लाल जयंत सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

संचालन

बैठक का संचालन संगठन मंत्री विनोद आनंद ने कुशलतापूर्वक किया।


संपादकीय: एकता ही उन्नति का सेतु

समय की पुकार: समाज को आगे बढ़ाने का पहला सूत्र एकजुटता है। जब उद्देश्य स्पष्ट हो और कदम साथ बढ़ें, तब अधिकारों की राह कठिन नहीं रहती।

कार्य-केन्द्रित सोच: कुरीतियों का त्याग केवल नारा नहीं, बल्कि व्यवहार है—शादी-ब्याह की फिजूलखर्ची से लेकर आपसी मनमुटाव तक। जहाँ अनुशासन और पारदर्शिता होगी, वहीं विश्वसनीयता जन्म लेती है।

निरंतरता और नेतृत्व: 48 वर्षों की सतत यात्रा बताती है कि संगठन तब फलता है जब वह विवादों से ऊपर उठकर काम पर फोकस रखता है। अगली पीढ़ी को भूमिका दें—युवा मोर्चे, कौशल-प्रशिक्षण और छात्रवृत्ति जैसे ठोस कदम स्थायी परिवर्तन लाते हैं।

निष्कर्ष: एकता को व्यवहार में उतारिए, कुरीतियों से दूरी बनाइए, और अधिकारों के लिए संगठित, शालीन, सतत प्रयास कीजिए—यही उन्नति का सबसे भरोसेमंद सेतु है।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh