dr manibhadra maharaj

जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने बताया कि सभी समस्याओं का समाधान कैसे हो

RELIGION/ CULTURE

मन, वचन, काया पर नियंत्रण करना ही साधना

संयम का पालन करना सौ गायों के दान समान

महावीर भवन में वर्षा वास के दौरान हो रहे प्रवचन

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Agra, Uttar Pradesh, India. राष्ट्र संत नेपाल केसरी डॉ. मणिभद्र महाराज का कहना है कि जिसने अपने मन, वचन और काया पर नियंत्रण कर लिए, वही सबसे बड़ा साधक है। यदि हम साधक नहीं बन पाएं तो कम से कम इस पर नियंत्रण करने का प्रयास करें, जिससे जीवन की बहुत सारी समस्याओं का हल हो सकता है। जिंदगी की कठिनाइयां भी काफी सीमित हो जाएंगी।

न्यू राजामंडी के महावीर भवन में वर्षावास के तहत प्रवचन देते हुए जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने नवी राजा की साधना का प्रसंग सुनाया। बताया कि जब मिथिला नगरी के नवी राजा के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और साधना के पथ पर अग्रसर हुए तो देवराज इंद्र एक साधु के वेश में आए और उनसे अनके प्रश्न किए। उनसे कहा कि आप अपनी मिथिला नगरी को तो सुरिक्षत कर लीजिए। नवी राजा ने कहा कि अब मेरी आत्मा ही मेरा शाश्वत घर है, उसे न तो कोई अब खाली करा सकता। आत्मा तो अजर, अमर है, इसलिए इसे कोई जला भी नहीं सकता। आत्मा का घर मोक्ष है और उसी मोक्ष रूपी महल में अपनी आत्मा को ले जाने का मेरा प्रयास है।

ब्राह्मण ने फिर कहा कि अपने महल को चोरों से बचाने की व्यवस्था तो कर लीजिए। नवी राजा ने जवाब दिया कि मैंने तो अपनी आत्मा को काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार जैसे चोरों से बचाने की व्यवस्था कर ली है। महल से अब मेरा कोई संबंध नहीं रहा। फिर ब्राह्मण रूपी देवराज इंद्र ने कहा कि आपकी मिथिला नगरी में अन्य कोई राजा बाहरी आक्रमण न करें, उसकी तो रक्षा कर लें। इस पर नवी राजा बोले, बाहर के एक लाख राजाओं को वश में करना आसान हैं, आत्मा को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है। संयम रूपी मार्ग बहुत कठिन है। फिर ब्राह्मण ने प्रश्न किया और यज्ञ, दान, पुण्य तो कर लेते, नवी राजा ने कहा कि संयम धारण करना, एक लाख गायों को दान करने के बराबर है।

जैन मुनि ने कहा कि इस प्रकार नवी राजा से हर प्रश्न का सार्थक उत्तर सुन कर देवराज इंद्र समझ गए कि यह वैराग्य किसी के देखादेखी में नहीं है, ज्ञान उत्पन्न हुआ है। क्योंकि आत्मा जागती है तो दृष्टि बदल जाती है। देवराज इंद्र ने नवी राजा की स्तुति की। कहा कि धर्म एक उत्कृष्ट माध्यम है। अहिंसा, संयम, तप, धर्म को जो अंगीकार करता है, देवता भी उसे नमन करते हैं।

जैन मुनि ने कहा कि हर व्यक्ति को मन, वचन, काया पर नियंत्रण करना चाहिए। मन से ही पाप और पुण्य के भाव उत्पन्न होते हैं। यदि उसे वश में कर लिया तो सारी समस्याओं का समाधान हो जाता है। सामाजिक मान, मर्यादा भी बनी रहती है।

शुक्रवार की धर्मसभा में सुमित्रा सुराना की सात एवं मनोज जैन की पांच उपवास की तपस्या चल रही है।

भगवान महावीर का ज्ञान आगम में उपलब्धः वैराग्य निधि महाराज

Dr. Bhanu Pratap Singh