jain muni manibhadra maharaj

जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने कहा, सबसे बड़ा धन स्वास्थ्य, धरतेरस पर सबसे बड़े धन स्वास्थ्य की रक्षाक संकल्प लें

RELIGION/ CULTURE

Agra, Uttar Pradesh, India. राष्ट्र संत नेपाल केसरी डॉ. मणिभद्र महाराज ने कहा है कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई धन नहीं होता। उसकी रक्षा करने के संकल्प का दिन है धनतेरस। इसके अलावा हमें अपने जीवन को धन्य बनाने और धर्म की ध्वजा फहराने का संकल्प भी हमें इस दिन लेना चाहिए।

न्यू राजा मंडी के महावीर भवन में आयोजित प्रवचन सभा में शनिवार को जैन संत डॉ. मणिभद्र महाराज ने पंच दिवसीय दीपोत्सव पर प्रकाश डाला। बताया कि भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ था, जिन्होंने आयुर्वेद का शुभारंभ किया था। इसलिए वे आरोग्य के देव कहलाते हैं।

जैन मुनि ने कहा कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है, लेकिन होता ब़ड़ा उल्टा है। लोग धन कमाने के लिए इतनी मेहनत करते हैं कि स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो जाते हैं और स्वास्थ्य को गंवा देते हैं। बाद में उसी धन को स्वस्थ रहने के लिए खर्च करते हैं।  उनकी यह स्थिति हो जाती है कि रूखी रोटी खाने लायक भी नहीं रहते हैं। डाक्टर इतने परहेज बताते हैं कि स्वाद लेने की स्थिति ही खत्म हो जाती है। यह अद्भुत चक्र है, पहले धन के पीछे भागते हैं, फिर स्वास्थ्य के लिए चक्कर लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य अनुकूल होना व्यक्ति का सबसे बड़ा सुख है। क्योंकि पहला सुख निरोगी काया कहा जाता है।

जैन मुनि ने कहा कि हमने धन कमाया, जिसका लक्ष्य केवल वासनाओं की पूर्ति तक था। जबकि धन, धर्म की आधार शिला है। धन के उपयोग से हम पुण्य कार्य कर सकते हैं, लेकिन नहीं करते। हम तो धन को स्वामी नहीं, दास बन गए। पराया धन पर भी हमारी निगाह रही, जबकि पराया धन, पत्थर के समान होता है। दूसरे के धन को मिट्टी समझना ही श्रेयष्कर है। हम जो धन अपने स्तर पर कमाते हैं, वह हमारा पुरुषार्थ होता है। जीवन से मृत्यु तक कुछ लोग दीन बने रहते हैं, हर समय दूसरे के धन पर निगाह रहती हैं, लेना ही चाहते हैं, देना नहीं चाहते। जिनमें देने के भाव होते हैं, वह देवता होते हैं, वरना वे शैतान कहलाते हैं। धन के स्वामी न बन पाए तो दास तो न बनें। जैन संत ने कहा कि धनी वह नहीं, जिस पर अपार धन है, धनी वह है, जिसमें दूसरों के प्रति प्रेम, करुणा और दया के भाव होते हैं।

भरत चक्रवर्ती की चर्चा करते हुए जैन मुनि ने कहा कि सेवक ने भरत चक्रवर्ती को तीन सूचनाएं दीं। पहली यह कि आयुषशाला में चक्र रत्न आ गया है, आपके चक्रवर्ती बनने का अवसर आ गया, उसका स्वागत करें। दूसरी सूचना थी कि आपकी पटरानी के पुत्र रत्न हुआ है, आप रानी को बधाई दें। तीसरा समाचार यह था कि आपके पिता ऋषभदेव को कैवल्य ज्ञान हो गया है, उन्हें प्रणाम करने जाएं। भरत चक्रवर्ती असमंजस में थे कि पहले कहां जाएं। उन्होंने सबसे पहले धर्म को महत्व दिया और अपने पिता के पास चरण स्पर्श करने गए, बाद में अन्य शुभ अवसर का लाभ लिया था। उन्होंने कहा कि धर्म केवल पूजा पाठ ही नहीं, नियमित रूप से अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करना भी धर्म ही होता है। इसकी आदत बना लेनी चाहिए। णमोकार मंत्र का जाप भी बड़ी साधना है।

जैन मुनि ने कहा कि जीवन में यदि धर्म, साधना है तो लक्ष्मी आपसे कभी दूर नहीं होगी। इसके लिए व्यक्ति को अपनी आत्मा बलवान करना होगा। फिर कोई काम एसा नहीं, जो वह नहीं कर सके, इसलिए पंच महाव्रत धारण करने वाला साधु सबसे बड़ा बादशाह होता है। त्याग, तपस्या का अधिकाधिक संकल्प धनतेरस पर लोगों को लेना चाहिए।

शनिवार की धर्म सभा में राजेश सकलेचा, नरेश चप्लावत, राजीव चप्लावत, आशू गुप्ता, विवेक कुमार जैन, सौरभ जैन, अमित जैन,  अर्पित जैन, प्रतीक जैन आदि उपस्थित थे।

 

 

Dr. Bhanu Pratap Singh