न्याय के गलियारों में ‘गिद्ध’ और ‘जुगाड़’ की गूँज: डॉ. विकास दिव्यकीर्ति पर आगरा में मानहानि का दायर परिवाद

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आगरा – न्याय के मंदिर और उसके सेवकों पर टिप्पणी का एक नया अध्याय खुल गया है। ‘दृष्टि आईएएस’ के प्रबंध निदेशक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति, जिनकी पहचान संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी कराने वाले संस्थान के तौर पर है, अब एक कानूनी पचड़े में फंस गए हैं। उनके खिलाफ अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम-10) की अदालत में आपराधिक मानहानि का परिवाद दायर किया है। आरोप है कि डॉ. दिव्यकीर्ति ने अधिवक्ताओं और जजों के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया है, जिसने न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल उठाए हैं।

यह मामला तब प्रकाश में आया जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेज़ी से वायरल हुआ। इस वीडियो में डॉ. विकास दिव्यकीर्ति, जो अपने संबोधनों के लिए जाने जाते हैं, हाईकोर्ट, ज़िला जजों और अधिवक्ताओं के लिए ऐसी टिप्पणियाँ करते दिख रहे हैं, जिन पर अब विधिक बिरादरी ने आपत्ति जताई है।

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह का कहना है कि डॉ. दिव्यकीर्ति ने वीडियो में कहा है कि “हाईकोर्ट में 50% जज सीधे अधिवक्ता नियुक्ति किये जाते हैं, जिसके लिए बहुत जुगाड़ चाहिए।” आगे उनकी टिप्पणी थी कि “वैकेंसी 2-3 साल में 1 आती है और गिद्ध 500 होते हैं।” यह ‘गिद्ध’ शब्द अधिवक्ताओं के लिए इस्तेमाल किया गया था, जिस पर गहरा रोष व्यक्त किया जा रहा है।

वीडियो में डॉ. दिव्यकीर्ति की टिप्पणियाँ यहीं नहीं रुकतीं। वे ज़िला जज और ज़िलाधिकारी के बीच के संबंधों पर भी कटाक्ष करते हैं। उनके शब्दों में, “डिस्ट्रिक्ट जज, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को डांट सकता है। अकेले में डांट खा भी लेता होगा। डिस्ट्रिक्ट जज पावरफुल है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट जितना नहीं। न्यायपालिका की सारी ताकत इस भरोसे पर है कि एसपी मेरी बात मानेगा। जज बोलेगा अरेस्ट करो, एसपी बोलेगा नहीं खुद ही कर लो, सारी ताकत खत्म।” ये बयान न्यायपालिका की शक्ति और उसकी कार्यप्रणाली पर सीधे तौर पर सवाल उठाते प्रतीत होते हैं।

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने अधिवक्ताओं के लिए ‘गिद्ध’ जैसे आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग किया है और उनकी भाषा हाईकोर्ट व ज़िला जज की मर्यादा के विरुद्ध है। यह पूरी तरह से मानहानिकारक है और इसी आधार पर उन्होंने परिवाद दायर किया है।

न्यायालय ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए परिवाद को प्रकीर्ण वाद (miscellaneous case) में दर्ज करने का आदेश जारी किया है। सुनवाई के दौरान न्यायालय में कई वरिष्ठ अधिवक्ता उपस्थित रहे, जिनमें नरेश सिकरवार, एसपी सिंह सिकरवार और राहुल सोलंकी प्रमुख थे। यह उपस्थिति इस बात का संकेत है कि न्यायपालिका और अधिवक्ता समुदाय इस मामले को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं।

सवाल यह उठता है कि क्या शिक्षा और ज्ञान की दुनिया से जुड़े एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को सार्वजनिक मंच पर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए, खासकर जब बात न्यायपालिका और उसके सदस्यों की हो? क्या एक शिक्षक और मार्गदर्शक की भूमिका निभाने वाले को अपने शब्दों की मर्यादा का ध्यान नहीं रखना चाहिए? यह मामला केवल मानहानि का नहीं, बल्कि सार्वजनिक विमर्श में भाषा के गिरते स्तर और संस्थाओं की गरिमा पर होने वाले हमलों का भी एक प्रतिबिंब है। अब देखना यह है कि यह कानूनी लड़ाई किस मोड़ पर जाकर रुकती है और इसका क्या संदेश समाज में जाता है।

-मोहम्मद शाहिद की कलम से

Dr. Bhanu Pratap Singh