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112 दिन सिर्फ जल पीकर साधना करने वाली रूबी जैन के सम्मान में वरघोड़ा यात्रा, उमड़ पड़ा श्वेतांबर जैन समाज

PRESS RELEASE

मिसाल कायम की है रूबी की तपस्या नेः जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज

 

Agra, Uttar Pradesh, India. अन्न का दाना तो क्या, केवल जल, वो भी मात्र दिन में तीन बार, चातुर्मास में बहुत कठिन साधना की है रूबी जैन ने। 112 दिन होने पर रविवार को इस व्रत का पारणा जैन संतों के सानिध्य में किया गया। समस्त जैन श्वेतांबर समाज ने वरघोड़ा यात्रा निकाल उनका सम्मान किया।

बल्लभ नगर, बालूगंज स्थित जैन उपाश्रय वासुपूज्य जैन श्वेतांबर मंदिर के स्थानक में यह समारोह आयोजित किया गया। इस मौके पर नेपाल केसरी, राष्ट्र संत डॉ. मणिभद्र महाराज ने इस तपस्या की प्रशंसा की और कहा कि यह तपस्या करना बहुत कठिन है, लेकिन साहस, धैर्य और कठोर संकल्प से यह महाव्रत पूरा हुआ है। उन्होंने कहा कि तपस्या करना तो कठिन है ही, उससे अधिक कठिन कराना है। सबसे अधिक कठिन इस प्रकार की तपस्या की अनुमोदना है। लोग इस तपस्या को आसानी से स्वीकार नहीं करते। कोई न कोई बात जरूर निकालेंगे। लेकिन तपस्या करने वालों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जिसमें लगन लगी है, उसे कोई नहीं रोक सकता। अनुमोदना न करना अहंकार का प्रतीक है।

जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज प्रवचन करते हुए।
जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज प्रवचन करते हुए।

उन्होंने कहा कि श्रद्धा का अर्थ विनम्रता भी है। नई पीढ़ी में कोई समझ नहीं है। बड़े साधु को तो प्रणाम करते है, छोटे साधु को नहीं। मन में विनम्रता होगी, तभी पुण्यों का उदय होगा।

भगवान महावीर का प्रसंग सुनाते हुए जैन मुनि ने कहा कि एक सेठ ने संकल्प लिया को भगवान महावीर का पारणा कराएंगे। लेकिन उसके लिए बहुत इंतजार करना पड़ा। तभी द्वार पर एक साधु आया और सेठ ने उसे बासी रोटी दे दी, जिसे उसने वहीं खा लिया। खाते ही आकाश से दुंदभी बजने लगी। देवता फूल बरसाने लगे। लोगों ने सेठ से पूछा तुमने पारना किससे कराया तो कह दिया कि खीर से कराया है। अपना मान बढ़ाने के लिए उसने ऐसा कह दिया, जबकि भगवान महावीर तो एक भिक्षुक के वेश में आए थे।

 

जैन संत ने कहा कि हमें अपनी भावनाएं बदलनी चाहिए। लोग कहते हैं कि हमने इस संघ से इतने श्रावक तोड़ लिए, बल्कि उल्टा कहना चाहिए कि इतने श्रावक दूसरे संघ से जोड़ दिए। उन्होंने कहा कि श्रावक तो भगवान महावीर का होता है, जबकि कुछ संत अपने भक्त भी बनाने लगे हैं।

रूबी जैन का सम्मान
रूबी जैन का सम्मान

उन्होंने कहा कि तन से धर्म अपनाना आसान है, दिगंबर बनना आसान है, लेकिन मन में धर्म को बसाना बहुत कठिन होता है। धर्म मन में रमण करता रहे, यह बहुत बड़ी सफलता है। राष्ट्र संत ने कहा कि पहली तपस्या प्रायश्चित होती है। स्वयं अपनी गलती का अहसास करके उसका प्रायश्चित करना सबसे बड़ी तपस्या है। यदि प्रायश्चित करना नहीं आया तो साधु जीवन भी व्यर्थ है।

 

इनसे पूर्व साध्वी वैराग्य श्री ने प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि रूबी ने तप का कीर्तिमान स्थापित किया है। क्योंकि बहुत से लोग तप करते हैं, लेकिन कुछ समय बाद ही उनका उत्साह ठंडा पड़ जाता है। यह तो कोई दैवीय शक्ति रूबी के साथ रही, जिसने यह इतना बड़ा तप पूरा कराया है। जैन मुनि पुनीत,  साध्वी सुमनिषा श्री  सहित अन्य साधु संत भी मौजूद रहे। श्वेतांबर सकल जैन संघ के पदाधिकारियों ने तपस्विनी रूबी जैन का बहुमान किया।

 

इससे पूर्व दयालबाग निवासिनी रूबी जैन की तपस्या का सम्मान करने के लिए शोभायात्रा (वरघोड़ा) जैन मुनि राष्ट्र संत नेपाल केसरी डॉक्टर मणिभद्र जी, साध्वी सुमनिशा श्री जी एवम साध्वी वैराग्य निधि के सानिध्य में बैनीसिंह स्कूल, बालूगंज से चलकर वल्लभ नगर स्थित जैन उपाश्रय श्री वासुपूज्य ‘जैन श्वेताम्बर मन्दिर, जैनाचार्य विजय वल्लभ मार्ग वल्लभ नगर, बालूगंज पहुंची। शोभा यात्रा में श्रद्धालु धार्मिक भजन गाते बजाते एक जलूस से रूप में चल रहे थे। तपस्विनी रूबी जैन लाला रमणीक कुमार जैन एण्ड सन्स परिवार से ताल्लुक रखती हैं।म पूर्व में भी अनेक बार उपवास की तपस्या की है।

 

इस अवसर पर श्री आत्मानन्द जैन सभा के अध्यक्ष निर्मल कुमार जैन, सचिव कीर्ति जैन, पूर्व अध्यक्ष अशोक कुमार जैन, राकेश कुमार जैन पूर्व, नरेन्द्र पाल जैन उपाध्यक्ष सुरेश जैन हैप्पी, श्री एस. एस. जैन सभा, आगरा के अध्यक्ष अशोक सुराना, मंत्री राजेश सकलेचा, पूर्व अध्यक्ष प्रेमचन्द्र चपलावत, श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ रोशन मोहल्ला के अध्यक्ष राज कुमार जैन, श्री स्थानक वासी संघ लोहामण्डी से मंत्री सुशील जैन, विवेक कुमार जैन, अनिल जैन, सुनील जैन, प्रवीन जैन सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे।

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Dr. Bhanu Pratap Singh