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गजल ने हिंदी शब्दों को बिगाड़ा, सजल ने सँवारा, 2016 में डॉ. अनिल गहलौत ने किया सृजन, अब इस पर पीएचडी हो रही

साहित्य

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India. हिंदी गीतिकाव्य की नवीन विधा है सजल। सजल क्या है, इसका प्रादुर्भाव कैसे हुआ, क्या हो रहा है, क्या होना चाहिए, सजल और गजल में क्या विभेद है, क्या गजल का हिंदी रूपांतर सजल है, सजल का भविष्य क्या है, जैसे तमाम विषयों पर साहित्यकारों ने विमर्श किया। ऐसा विमर्श जिसमें पर्याप्त मानसिक खुराक मिली। तीन घंटा तक एक ही विषय पर परिचर्चा होती रही। हिंदी प्रेमियों को एक शंका रहती है, हिंदी सही या हिन्दी। इसका भी समाधान किया गया। विश्व साहित्य सेवा ट्रस्ट और हिंदी शोधार्थी संघ के संयुक्त तत्वावधान में यह राष्ट्रीय संगोष्ठी यूथ हॉस्टल, आगरा में हुई।

सजल क्या है

प्रज्ञा हिंदी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट के संस्थाधिपति, साहित्य भूषण डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’ ने विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा- गीत निश्चित संरचना की गेय विधा है, जिसका मूल तत्व लय है। गीत आद्य विधा है। जिसे बिना लिखे रहा न जाए, वह गीत है। गीतिकाव्य में वे सभी विधाएं आती हैं जो गाई जा सकती हैं। इसी की नवीनतम विधा है सजल। जिस विधा में चार पंक्तियां होती हों, पहली तीन पंक्तियों में भूमिका और चौथी पंक्ति में कोई चमत्कारिक बात हो तो वह मुक्तक है। गीत की रागात्मकता, दोहे की कसावट और मुक्तक की चमत्कारिकता का नाम सजल है।

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फिरोजाबाद निवासी डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’ के अभिनंदन ग्रंथ ‘सृजनधर्मी डॉ. यायावर’ का लोकार्पण करते अतिथि।

शुद्ध हिन्दी के प्रयोग के लिए सजल

कुसुमबाई जैन कन्या स्नात्कोत्तर महाविद्यालय भिंड, मध्य प्रदेश के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. श्यामसनेही लाल शर्मा ने विशिष्ट वक्ता के रूप में सजल की जरूरत के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा- हिंदी भाषा की कविता में शाब्दिक विकृतियां आ गई हैं। हाल यह है कि और को औ, एवं को व, तेरे को तिरे मेरे को मिरे लिखा जा रहा है। गजल के नाम पर हिंदी शब्दों के साथ नुक्ता लगाया जा रहा है। क्या किसी ने हिंदी शब्द के साथ नुक्ता पढ़ा है। इन त्रुटियों के लिए गजल को जिम्मेदार माना गया है। शुद्ध हिन्दी के प्रयोग के लिए सजल है। सजल का नामकरण डॉ. यायावर और डॉ. अनिल गहलौत ने किया है। सजल की सजलता को परिभाषित करने के प्रयास हो चुके हैं। सजल यानी जलयुक्त, व्यंग्यात्मक और करुणा प्लावित, हिंसक आक्रोश नहीं बल्कि करुणा पैदा करने वाली। रामायण का स्थाई भाव करुणा है। प्रत्येक शब्द की व्यंजना, मोती में झलकने वाली आभा के समान होती है सजल।

2016 में हुआ सजल का जन्म

मुख्य वक्ता और सजल सर्जना समिति, मथुरा के अध्यक्ष डॉ. अनिल गहलौत ने सजल के ऐतिहासिक स्वरूप का दिग्दर्शन कराया। उन्होंने कहा- गजल में दो पंक्तियों में बात कही कही जाती है और प्रत्येक शेर अलग विषय पर होता है। हिंदी में कविता एक ही विषय पर केन्द्रित होती है। हिंदी कवियों ने भी गजल लिखना शुरू किया तो इसे हिंदी में गजल या हिंदी गजल कह दिया। गोपालदास नीरज ने गजल का नाम बदलकर गीतिकाव्य कर दिया। गजल को हिन्दी गजल कहना भ्रामक है। उर्दू की अशुद्ध गजल को हिंदी गजल कहा गया।

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सजल पर राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते मथुरा के डॉ. अनिल गहलौत।

डॉ. गहलौत ने कहा कि हिंदी भाषा को बचाने के लिए सजल का जन्म 5 सितम्बर, 2016 को हुआ है। हिन्दी की रोटी खा रहे हैं तो सजल पर ध्यान दें। सजल लिखना पवित्र महायज्ञ है, जिसमें सबको आहुति देनी है। सजल की सफलता यह है कि इस पर पीएचडी हो रही है। उन्होंने अंत में अपने सजल शतक से सजल कही-

रगड़कर पत्थरों को एक चिनगारी उगाता हूँ।

अँधेरी कोठरी में एक दीपक मैं जलाता हूँ।।

सजल में भारतीयता समाहित

गुना (मध्य प्रदेश) से आए डॉ. सतीश चतुर्वेदी शांकुतल ने आह्वान किया कि देश और भाषा की रक्षा की बात करो। हिंदी को हम नहीं लाएंगे तो कौन लाएगा। उन्होंने कहा- मैथिली शरण गुप्त की कालजयी कृति भारत-भारती की तरह सजल में भारतीयता समाहित है। लिखते रहो, भले ही विवशता में लिखो। रोज लिखो। सजल की सफलता यह है कि देश में आज चार पटल हो चुके हैं। सजल शोध का विषय बन चुकी है। उन्होंने कहा-

समय की जलधारा पर सब बह जाया करते हैं।

कुछ ही ऐसे हैं जो इतिहास बनाया करते हैं।।

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एक किताब का लिखना एक दीपक जलाने जैसा

शासकीय माधव कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय उज्जैन (मध्य प्रदेश) के पूर्व प्राचार्य और भास्कर समूह द्वारा प्राइड ऑफ एमपी से सम्मानित प्रो. हरीसिंह कुशवाह की 40 पुस्तकें  प्रकाशित हो चुकी हैं। मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने कहा कि अगर आपके अंदर रुचि और जुनून नहीं है तो लिख नहीं सकते। मैं सतत रूप से हर दिन लिखता हूँ। लेखन से ही समाज जुड़ता है। एक किताब का लिखना एक दीपक जलाना है जो एक हजार वर्ष तक जलता रहेगा। किताबों के द्वार से ही स्वर्ग की राह मिलती है। सुखी रहना है तो अपने मन का लिखो। लिखने से आत्मसुख मिलता है।

लिखने का सर्वोत्तम समय

उन्होंने कहा कि लेखक ही हिन्दी को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा सकता है। निष्काम भाव से लेखन करेंगे तो फलित होगा। लेखन को अपने गुरु और इष्ट को समर्पित करें। लेखन में भाव पहले चाहिए। लिखने के लिए रोज साधना करनी पड़ती है। रात्रि 8 से 12 बजे तक का समय लिखने के लिए सर्वोत्तम है। लिखने के लिए समय निकालें। हर व्यक्ति कम से कम पांच पुस्तकें लिखने का संकल्प ले।

हिंदी शब्दों के साथ नुक्ता लगाना गलत

मथुरा से आए संतोष कुमार सिंह को सजल का प्रणेता माना जाता है। संजल संग्रह समेत 45 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। बाल सजल खासी लोकप्रिय है। उन्होंने कहा- हिंदी शब्दों में गजल ही सजल है। अब तक सजल पर 60 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदी शब्दों के साथ नुक्ता लगाने को गलत बताया।

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डॉ. अनिल गहलौत का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा

समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो. उमापति दीक्षित (विभागाध्यक्ष नवीनीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा) ने कहा कि मुझे नवाचारों और नव्य विधाओं से शुरुआत से ही लगाव है। साहित्य में जो अनुपमेय है, उसका संकलन करता हूँ। सजल की सर्जना के लिए डॉ. अनिल गहलौत का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। हर नई विधा और और ग्रंथ का विरोध हुआ है। तुलसीदास ने जब रामचरित मानस लिखी तो उन्हें काशी से फेंक दिया गया था। सजल के साथ भी यही हो रहा है। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि हस्ताक्षर हिंदी में करें। उन्होंने अपनी बात का समापन ‘जय हिंदी- जय भारत’ के उद्घोष के साथ किया।

सैद्धांतिक कार्यों से स्वीकार्यता

हिंदी शोधार्थी संघ के मुख्य सचिव और कार्यक्रम समन्वयक कृष्ण कुमार कनक ने कहा कि सैद्धांतिक कार्यों से स्वीकार्यता बढ़ती है। यह सजल के साथ हो रहा है। संघ की अध्यक्ष कु. चंचल माहौर ने आभार प्रकट किया। संचालन विनय कुमार केसरी ने किया। ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. मोहन मुरारी शर्मा और संगठन मंत्री सहदेव शर्मा ने मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया।

विजेता पुरस्कृत

हिंदी शोधार्थी संघ द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। प्रथम रघुनंदन प्रसाद दीक्षित और कृष्ण कुमार यादव, द्वितीय रवीन्द्र कुमार, तृतीय डॉ. अखिलेश कुमार (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) एवं चंचल माहौर, सांत्वना पुरस्कार डॉ. अंजना नायाक (मथुरा) को दिया गया।

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दो पुस्तकों का लोकार्पण

संगोष्ठी में दो पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। फिरोजाबाद निवासी डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’ के अभिनंदन ग्रंथ ‘सृजनधर्मी डॉ. यायावर’ का लोकार्पण किया गया। ग्रंथ का संपादन डॉ. सतीश चतुर्वेदी शाकुंतल ने किया है। 288 पेज के अभिनंदन ग्रंथ का मूल्य 1100 रुपये है। इसका प्रकाशन निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स आगरा ने किया है। हिंदी शोधार्थी संघ की अध्यक्ष डॉ. चंचल माहौर (मथुरा) की पुस्तक कामायनी का बिंब-विधान पुस्तक का लोकार्पण किया गया। 220 पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य 500 रुपये है।

हिंदी और हिन्दी में क्या सही

एक शोधार्थी ने पूछा कि हिंदी और हिन्दी में क्या सही है? इसका उत्तर केन्द्रीय हिंदी संस्थान के प्रोफेसर उमापति दीक्षित ने दिया। उन्होंने कहा कि मानक हिंदी के अनुसार हिंदी सही है, हिन्दी लिखना गलत है। अब सब जगह हिंदी ही लिखा जा रहा है और यही लिखिए। केन्द्रीय हिंदी संस्थान ने हिंदी शब्दों की एकरूपता के लिए काफी काम किया है।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh