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मोटा अनाज उगाने में किसानों को फायदा, बाजरा का MSP गेहूं से अधिक, केन्द्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल ने दिया सबसे बड़ा सुझाव

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केन्द्रीय कानून एवं न्याय राज्य मंत्री एवं आगरा के सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल ने कहा- श्री अन्न की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद जरूरी

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Agra, Uttar Pradesh, India. केन्द्रीय कानून एवं न्याय राज्य मंत्री एवं आगरा के सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल ने मोटे अनाजों को स्वास्थ्य के लिये बेहतर बताया है। उन्होंने कहा कि ‘मिलेट वर्ष 2023’ की सफलता के लिये इन अनाजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद जरूरी है। केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की पहल पर प्रमुख उद्योग मंडल एसोचैम ने आगरा में दो दिन तक चलने वाले मिलेट मेला और प्रदर्शनी का आयोजन किया है। मेले में बाजरा, रागी, मंडुआ, क्वोदो जैसे कई तरह के मोटे अनाज से बनाये जाने वाले नये पकवान और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ के बारे में जानकारी दी गई।

प्रोफेसर बघेल ’आगरा मिलेट मेला’ के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार ने बाजरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले साल के मुकाबले 100 रुपये बढ़ाकर 2350 रुपये क्विंटल घोषित किया है। यह गेहूं के समर्थन मूल्य से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि इससे निश्चित ही किसानों को फायदा होगा और वह मोटे अनाजों की खेती की तरफ आकर्षित होंगे। सबसे महत्वपूर्ण है कि मोटे अनाजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद जोर शोर से हो।

उन्होंने समारोह में उपस्थित आगरा के मुख्य विकास अधिकारी तथा अन्य अधिकारियों से कहा कि उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार और अनाज खरीद एजेंसियों को पत्र लिखकर आगरा में बाजरा खरीद के लिये ज्यादा से ज्यादा क्रय केन्द्र खुलवाने चाहिये। बघेल ने कहा कि ’’क्षेत्र में बाजरा खरीद केन्द्र बढ़ाये जाने चाहिये, इस हेतु आप लोग पत्र लिखें, बाजरा के लिये 2350 रूपये का समर्थन मूल्य है, अगले साल समर्थन मूल्य और बढ़ेगा, समर्थन मूल्य पर खरीद होगी तो किसान मोटे अनाज की फसल उगाने के लिये आकर्षित होगा। वह आलू छोड़कर इनकी तरफ आयेंगे।’’

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि देश के गांवों में पुराने समय से सारा खान-पान मोटे अनाज के इर्द-गिर्द ही रहता आया है। मोटा अनाज उन इलाकों में अधिक उगाया जाता था, जहां पानी की कमी रहती थी। यह कम पानी में पैदा हो जाता है। लेकिन समय के साथ मोटे अनाज को ’गरीबों का खाना’ माना जाने लगा। गेहूं, बासमती चावल, मैदा, सूजी ने इनका स्थान ले लिया। जहां गेहूं की रोटी होती थी उस परिवार को उंची नजर से देखा जाता था।

उन्होंने कहा कि समाज में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। मोटे अनाज को अब ’श्री अन्न’ का नाम दे दिया गया है। यह स्वास्थ्य के लिये भी गेहूं, चावल के मुकाबले अधिक लाभकारी है। बच्चों के लिये यह गुणकारी और पोषक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया है। अब दुनिया के दूसरे देशों को भी मोटे अनाज की खूबियों से अवगत कराया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे मोटा अनाज पुनरोत्थान कार्यक्रम बताया है। ’’यह पुनरोत्थान ही है, क्योंकि पहले हम इन्हीं अनाज को खाते थे, लेकिन समय के साथ ये चीजें पीछे छूटती चली गई, अब सरकार ने इस पर ध्यान दिया है और इसके लिये प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

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प्रो. बघेल ने कहा कि समर्थन मूल्य बढ़ाने के साथ साथ इनकी खरीद भी बढ़नी चाहिये। किसान जितना भी बाजरा पैदा करता है उसकी एमएसपी पर खरीद होनी चाहिये। उसे समर्थन मूल्य मिलना चाहिये। सही मायनों में तभी ’’मिलेट वर्ष’’ को सफल बनाया जा सकेगा। उन्होंने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे सरकार के कार्यों के बारे में भी अपने विचार रखे।  उन्होंने कहा कि भ्रूण हत्या को रोकने की जिम्मेदारी समाज पर अधिक है। खासतौर से कन्या भ्रूण हत्या को रोका जाना चाहिये। वहीं शिक्षा भी समाज के हर वर्ग के लिये पूरे देश में एक जैसी होनी चाहिये।

केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव श्री मिन्हाज आलम ने इस अवसर पर कहा कि भारत सरकार मिलेट मूल्य वर्धन की पूरी श्रृंखला को मजबूती देने और उसे प्रचलित करने के लिये कई योजनायें चला रही हे। उन्होंने कहा कि मिलेट आधारित खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देकर हम कुपोषण मुक्त भारत के विजन को साकार कर सकते हैं।

आगरा के मुख्य विकास अधिकारी श्री ए. मणिकांदन ने कहा कि मिलेट से कई तरह के स्वादिष्ट उत्पाद बनाये जा सकते हैं। मेले में लगी प्रदर्शनी में यह देख सकते हैं। ग्रामीण महिलाओं के समूह इस क्षेत्र में अच्छा काम कर सकते हैं। बच्चों को कुपोषण से बचाने में भी मोटे अनाज सहायक होंगे।

दयालबाग एजूकेशनल इंस्टीट्यूट, आगरा की सहायक प्रोफेसर डॉ. हेमा पंवार, डॉ. करुणा सिंह चैहान और डॉ. शुभ्रा सरावत ने इस अवसर पर एक संयुक्त प्रस्तुतीकरण में मोटे अनाजों के कई फायदे गिनाये। उन्होंने कहा कि बाजरा, रागी, मंडुआ, क्वोदो जैसे मोटे अनाज के मामले में एशिया महाद्वीप में भारत 80 प्रतिशत उत्पादन करता है। मोटे अनाज की खेती में पानी कम लगता है, इसमें कीटनाशक का इस्तेमाल भी कम होता है और कार्बन उत्सर्जन भी शून्य होता है। इस लिहाज से इनकी खेती पर्यावरण, जल संरक्षण और स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर है। ये कई पोषक तत्वों से भरपूर हैं।

फेडरेशन आफ कोल्ड स्टोरेज एसोसियेसन आफ इंडिया, आगरा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश गोयल, इंडिया मिलेट इनीशियेटिव के चेयरमैन डॉ. सत्येन यादव, उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लिमिटेड के उपाध्यक्ष एवं लघु उद्योग भारती के अखिल भारतीय संयुकत महासचिव राकेश गर्ग भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

एसोचैम के सहायक सेक्रटरी जनरल श्री डी एस राजोरा ने कार्यक्रम की शुरूआत में सभी का अभिवादन करते हुये कहा कि मोटे अनाज से खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी। मोटे अनाज में मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने से नवोदित उद्यमियों को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। एसोचैम के उप-निदेशक इरफान आलम भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।

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