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युवाओं को राजनीति ने आने से पहले चौ. चरण सिंह के ये विचार जान लेने चाहिए

लेख

Dr Bhanu Pratap Singh ‘Chapauta’

राजनीति और भ्रष्टाचार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह सामान्य सी बात है कि राजनीति में लोग ‘पूंजीनिवेश’ करते हैं ताकि अधिक धन कमा सकें। यह पूंजीनिवेश चुनाव लड़ने के लिए टिकट प्राप्त करने, फिर चुनाव लड़ने, फिर मंत्री पद पाने और फिर अच्छा मंत्रालय पाने के लिए किया जाता है। इससे पहले पार्टी में पद प्राप्त करने के लिए भी पूंजीनिवेश करना पड़ता है। इस काम में युवा सबसे आगे हैं। अब किसी को सब्र नहीं है कि जनता के बीच जाकर 10-12 साल काम करे। पूंजीनिवेश के बल पर ही पार्टी के लिए एक दिन भी काम न करने वाले को टिकट मिल जाता है। पार्टी को खड़ा करने के लिए दशकों तक हड्डियां गलाने वाले टापते रह जाते हैं।

राजनीतिक की चमक-दमक हर किसी को प्रभावित करती है, खासकर युवाओं को। यही कारण है कि युवा बड़े नेताओं के साथ हो लेते हैं। कुछ समय बाद भी वे अपने कारवां बना लेते हैं। जिन युवाओं का अपना कोई रोजगार नहीं है, कोई नौकरी नहीं है, परिवार भी समृद्ध नहीं है, वे आखिर किस तरह से साधन संपन्न हो जाते हैं? यह लाख टके का सवाल है। जाहिर है कि कुछ न कुछ गोलमाल तो कर ही रहे हैं। इसे फीस, दलाली, कमीशन, भ्रष्टाचार कुछ भी नाम दिया जा सकता है। पिछले दिनों इस विषय पर मैंने मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलपति और राजनीति के चाणक्य प्रोफेसर के.एस. राना से लम्बी बातचीत की। उन्होंने युवा, राजनीति और भ्रष्टाचार के संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के विचार साझा किए। चौधरी चरण सिंह का मानना था कि युवाओं को राजनीति में तब तक नहीं आना चाहिए जब तक कि वे रोजगारयुक्त न हो जाएं। अगर युवा अपने पैरों पर खड़ा होने से पहले राजनीति में आ गए तो भ्रष्टाचार करेंगे। इसी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए चौधरी चरण सिंह ने 1967 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी नयी पार्टी बी0के0डी0 बनायी, इसके बाद भारतीय लोकदल का गठन किया लेकिन दोनों ही दलों का युवा संगठन नहीं बनाया।

चौधरी चरण सिंह का मानना था कि राजनीति में भ्रष्टाचार के पीछे बेरोजगार युवा हैं। इस बारे में जानते हैं उनके विचार-

‘‘जब युवा राजनीति करेगा तो भ्रष्टाचार बढ़ेगा। जब तक युवा रोजी रोजगार पाकर अपने पैरों पर खड़ा नहीं होता, तब तक उसको राजनीति में नहीं उतरना चाहिए। किसानों के लड़के निजी जीवनयापन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के बाद राजनीति में उतरें अर्थात 40 की उम्र के बाद तो राजनीति को कमाई का माध्यम नहीं बनायेंगे, अन्यथा वह बिना रोजगार राजनीति करना चाहेंगे तो राजनीति को ही साधन बनायेंगे, तब भ्रष्टाचार बढ़ेगा। शिक्षा ग्रहण करने के बाद पारिवारिक जीवन में उतरने तक अर्थात 30-35 वर्ष की आयु तक नौजवानों को राजनीतिक दलों में नहीं जाना चाहिए। क्योंकि जब नौजवान बेरोजगारी की स्थिति में राजनीति करेगा, उसके पास अपने खर्चे चलाने के साधन भी नहीं होंगे वो वह राजनीति करने के लिए चंदा, धंधा, दलाली आदि व्यसनों से जुड़ जायेगा और अपने गलत कार्यों को संरक्षण पाने हेतु राजनीतिक संरक्षण लेगा और अंततः राजनीतिक स्वरूप बिगड़ता चला जायेगा। नौजवान पथभ्रष्टता की ओर उन्मुख होंगे, तब राजनीति पवित्रता एवं वैचारिकता समाप्त होकर वह भ्रष्टाचार की ओर मुड़ जाएगी जिसको अंततः रोक पाना भी संभव नहीं होगा। तब स्थिति इतनी वीभत्स होगी कि सोचने मात्र से ही रूह कांप उठेगी।” चौधरी चरण सिंह अपने समकालीन गिने-चुने नेताओं में से एक थे जो राजनीति में नैतिकता, शिष्टाचार एवं सदाचार का पाठ भी पढ़ाते थे।

प्रो. के.एस. राना ने राजपथ पर किसान राजपुस्तक में चौधरी चरण सिंह के इन विचारों का विस्तार से उल्लेख किया है। आज के राजनेताओं और राजनीतिक दलों को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए ताकि राजनीति में शुचिता का नया अध्याय शुरू करने के लिए प्रेरित हो सकें। मैंने 33 साल पहले पत्रकारिता शुरू की थी। जो युवा साइकिल पर प्रेस नोट देने आया करते थे, वे बिना किसी रोजगार के धनवान बनते गए। धन के बल पर वे आज ‘माननीय’ हैं। आप अपने आसपास के नेताओं पर नजर डालिए, सबकुछ स्पष्ट हो जाएगा। फिर आपको याद आएंगे चौधरी चरण सिंह के विचार कि बेरोजगार युवा राजनीति में आकर भ्रष्टाचार करेगा।

और अंत में

राजनीति में शुचिता न होने का परिणाम है कि आजादी के अमृत महोत्सव में भी सिर्फ गरीबी की चर्चा है। भारत के हर चुनाव में गरीबी बड़ा मुद्दा होती है। ऐसा लगता है आजादी अभी अधूरी है। कवि दुष्यंत कुमार ने ठीक ही लिखा है-

कहां तो यह तय था चिरागा हर एक घर के लिए 
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए 

डॉ. भानु प्रताप सिंह

(लेखक जनसंदेश टाइम्स के कार्यकारी संपादक हैं)

 

 

 

Dr. Bhanu Pratap Singh