कहीं आपको भी तो नहीं है खरीदारी की लत

कहीं आपको भी तो नहीं है खरीदारी की लत

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हना लुईस पोस्टन पिछले कई साल से अपनी एक आदत से पीछा छुड़ाना चाहती थीं. वह सौंदर्य सामग्री, कपड़े और घर के सामान खरीदती रहती थीं, भले ही उनके पास इसके लिए पैसे नहीं होते थे.
वह कहती हैं, “मुझे पूरी तरह खरीदारी करने की लत नहीं थी. 3,000 या 4,000 डॉलर का बिल हो जाने पर मैं घबरा जाती और इसे वापस शून्य पर लाने का रास्ता ढूंढ़ती. मेरे पास कभी कोई बचत नहीं हो पाई.”
33 साल की पोस्टन ने 2018 में एक साल के लिए खरीदारी बंद कर देने का फ़ैसला किया.
वह न सिर्फ़ पैसे की बचत करना चाहती थीं, बल्कि खरीदारी में लगने वाले समय और ऊर्जा को भी बचाना चाहती थीं.
पूरे साल भर के लिए उन्होंने कसम खाई कि वह मेक-अप, स्किन-केयर प्रोडक्ट, कपड़े, क्रॉकरी और साज-सामान की कोई नई खरीदारी नहीं करेंगी. फेस वॉश जैसी जरूरी चीजों को उन्होंने अपवाद में रखा.
कम उपभोग, दोबारा उपयोग
पोस्टन ने ऑनलाइन रिटेल साइट्स से अपने क्रेडिट कार्ड की सूचनाएं भी हटा दीं.
उन्होंने अपने अनुभव यू-ट्यूब पर शेयर किए. उनके वीडियो को देखने वालों ने भी अपने ऐसे ही अनुभव बताए.
उनके यू-ट्यूब चैनल को एक साल में 20 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर मिल गए. वह कहती हैं, “मुझे रोज महिलाओं के ईमेल आते थे. वे बताती थीं कि उनके साथ भी यही होता है.”
पोस्टन की तरह खरीदारी बंद कर देने की कसम नई नहीं है. कई ब्लॉगर्स ने यह चुनौती मंजूर की है कि जो चीज़ पहले से उनके पास है उसका अच्छे से इस्तेमाल किया जाए.
कई दूसरे लोग कम उपभोग और दोबारा उपयोग करने की कोशिश के तहत ऐसा करते हैं.
मन बहलाने के लिए खरीदारी
2017 में लेखक ऐन पैचेट ने एक साल तक खरीदारी न करने के बारे में लिखा था. उनको लगता था कि वह मन बहलाव के लिए खरीदारी कर रही थीं.
वित्तीय विषयों की लेखक मिशेल मैक्ग्रा ने उसी साल “दि नो स्पेंड ईयर” नामक किताब लिखी.
गूगल, यूट्यूब और रेडिट पर “नो-बाय ईयर” या “नो-स्पेंड चैलेंज” तलाशें तो ढेरों परिणाम मिलते हैं. यहां उपभोक्ता अपने अनुभव साझा करते हैं.
यूट्यूब के ब्यूटी चैनल्‍स पर “नो-बाय” आम शब्द है. वहां “नो-बाय मंथ” या “लिपस्टिक नो-बाय” जैसी चीजें खूब दिखती हैं.
सैन फ्रांसिस्को की कंज्यूमर साइकोलॉजिस्ट किट यैरो इस बात से हैरान नहीं होतीं कि लोग “नो-बाय” में भी खरीदारी कर रहे हैं.
वह कहती हैं, “पिछले करीब 20 साल से हम सस्ते माल से भर गए हैं. लोगों के पास सामान रखने के लिए जगह कम पड़ रही है.”
मैरी कोंडो ने कम चीजों के साथ काम चलाने का अभियान शुरू किया था. यैरो का कहना है कि लक्ष्य एक ही है- अपनी चीजों पर नियंत्रण रखना.
वह “नो-बाय ईयर” को चीजें जमा करने की लालसा के प्रतिकार के रूप में देखती हैं.
खरीदारी एक समस्या
यह चुनौती मंजूर करने वाले कुछ लोग अति-उत्पादन के युग में कम उपभोग करना चाहते हैं. वे पर्यावरण की मदद करना चाहते हैं और अपने घर को साफ-सुथरा रखना चाहते हैं.
कुछ अन्य लोगों को लगता है कि उनकी खरीदारी एक समस्या बनती जा रही है.
एक शोध समीक्षा से पता चलता है कि खरीदारी की लत या बाध्यकारी खरीद दुनिया की लगभग 5 फीसदी आबादी को प्रभावित करती है.
विशेषज्ञों को लगता है कि इस लत की गंभीरता अलग-अलग लोगों में अलग-अलग स्तर की हो सकती है.
यह समस्या बढ़ रही है और इसके उपचार के लिए बेहतर साधनों की जरूरत है.
खरीदारी एक नशा
इस लत से परेशान लोग खरीदारी करते समय एक तरह के नशे में होते हैं, लगभग उसी तरह जैसा कुछ ड्रग्स लेने वाले लोगों का अनुभव होता है.
न्यूयॉर्क की मनोवैज्ञानिक जॉर्डना जैकब्स कहती हैं, “जब हम खरीदारी करते हैं तो हमें डोपामाइन (मस्तिष्क के न्यूरॉन्स से निकलने वाला रसायन) का एक हिट मिलता है. इससे कुछ समय के लिए हमारा मूड अच्छा हो जाता है.”
जॉर्डना जैकब्स जिन मरीजों का इलाज करती हैं वे अक्सर स्वाभिमान के लिए खरीदारी करते हैं.
2016 के चुनाव के बाद पोस्टन की आदत ज़्यादा बिगड़ गई थी.
वह कहती हैं, “ज़िंदगी की कुछ चीजों के बारे में मैं सोचना नहीं चाहती थी. उनसे ध्यान भटकाने के लिए मैं शॉपिंग करती थी.”
वह दोपहर का समय कॉस्मेटिक चेन सेफोरा में बिताती थीं. वह मेक-अप के सामान ढूंढ़ती रहती थी भले ही उनको किसी चीज की जरूरत न हो.
सुधरेगी मानसिक सेहत
विशेषज्ञों का कहना है कि एक साल तक खरीदारी नहीं करने से मानसिक सेहत सुधरती है.
जैकब्स कहती हैं, “बहुत सारे लोग दुख, तकलीफ से ध्यान हटाने के लिए खरीदारी का सहारा लेते हैं.”
यैरो का कहना है कि एक साल तक खरीदारी न करके आप पैसे बचा सकते हैं, लेकिन “नो-बाय ईयर” का ताल्लुक मानसिक सेहत को बचाने से है.
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया की 26 साल की लेखिका और ब्लॉगर एम्मा नॉरिस 2019 को नो-बाय ईयर बनाने का प्रयास कर रही हैं.
नॉरिस को उम्मीद है कि इससे उनके पास ज़्यादा समय होगा और वह अपने पार्टनर के साथ बाली और दूसरे देश घूम सकेंगी.
वह खुद को आवेगी (बाध्यकारी नहीं) खरीदार कहती हैं. वह बोरियत और अकेलेपन से बचने के लिए ढेर सारे कपड़े खरीदती थीं.
“मुझे लगता था कि मैं कभी इससे बाहर नहीं आ सकती, क्योंकि मैं बस खरीदती ही चली जा रही थी.”
कम में भी काम चलता है
खरीदारी बंद करने का फ़ैसला करने से पहले नॉरिस ने अपनी अलमारियों की छंटाई की. इससे उनको पता चला कि उनके पास कितने कपड़े हैं और अब और कपड़ों की जरूरत नहीं है.
कुछ जरूरी चीजें खरीदने के अलावा अब शॉपिंग करने की उनकी कोई योजना नहीं है.
नॉरिस को लगता है कि उनका ख़र्च घटेगा. फिलहाल वह अपने सामान को कम करने की कोशिश कर रही हैं.
नये कपड़े खरीदने की जगह वह 99 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर प्रति महीने (70 अमरीकी डॉलर या 54 पाउंड) की दर पर उनको किराये पर लेती हैं.
पोस्टन खरीदारी में लगाने वाले समय को अपने बिजनेस और यू-ट्यूब चैनल में लगाती हैं. वह टैंगो डांस करने वालों के लिए कपड़े तैयार करती हैं.
वह क्रेडिट कार्ड के कर्ज़ से भी बाहर आ गई हैं और अब उन्होंने बचत भी शुरू कर दी है.
बदल गई ज़िंदगी
खरीदारी बंद करने से पोस्टन की ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई है.
वह कहती हैं, “न सिर्फ़ मेरा व्यवहार बदला है, बल्कि खुद के प्रति मेरी समझ भी बदल गई है. मैं अपने भीतर की बुराइयों से बचने के लिए खरीदारी करती थी.”
लेकिन यह आसान नहीं था. वह कहती हैं, “मैंने थैरेपी के लिए जाना शुरू किया. ब्वॉयफ्रेंड के साथ मेरा बहुत झगड़ा हुआ. मैंने जीवनशैली में कुछ बदलाव किए.”
यैरो का कहना है कि साल भर के लिए हर चीज की खरीद बंद कर देना जरूरी नहीं है. लेकिन यह प्रयोग नाटकीय रूप से आपके समस्याग्रस्त व्यवहार को बदल सकता है.
वह कहती हैं कि उपभोक्ताओं को अपने लिए ईमानदार होना पड़ता है कि वे कहां जरूरत से ज़्यादा खरीदारी कर रहे हैं और कैसे इस पर नियंत्रण कर सकते हैं.
-BBC

Dr. Bhanu Pratap Singh