Mathura (Uttar Pradesh, India)। मथुरा। वृन्दावन। ब्रज के लाड़ले कान्हा का 5248 वाँ जन्मोत्सव तो कल मनाया जायेगा। कोरोना रूपी कंस के डर से ब्रजभूमि में सन्नाटा पसरा पड़ा है। मन्दिर देवालयों में बिना भक्तो के कान्हा के जन्मोत्सव की तैयारियाँ भी जोरां पर है। विश्व में व्याप्त कोरोना संकट के बीच योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के 5248 वें प्राकट्योत्सव पर उनकी लीलास्थली ब्रजभूमि में सन्नाटा पसरा है। यूं तो लीला पुरुषोत्तम के अनेकानेक रूप विद्यमान है। लेकिन ब्रजभूमि में आज भी योगेश्वर श्रीकृष्ण बालरूप में ही पूजित है।
सरकार ने देश भर के कृष्ण भक्तो से ब्रजभूमि में न आने की एडवाइजरी जारी कर दी है
इस बार वैश्विक कोरोना महामारी से श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव भी प्रभावित हुआ है। मन्दिर देवालयों के मुख्यद्वार विगत करीब 5 माह से दर्शनार्थियों के लिये बन्द हैं। सरकार ने देश भर के कृष्ण भक्तो से ब्रजभूमि में न आने की एडवाइजरी जारी कर दी है। कान्हा की लीलास्थली ब्रज में जहाँ कई दिनों पहले से ही कान्हा के जन्मोत्सव का उल्लास छा जाता था। इस वर्ष इस महामारी के चलते सन्नाटा पसरा है। बाजारों से रौनक गायब है। कुंजगलिया सूनी पड़ी है, न प्रसाद के लिए मिठाइयों के बनने की तैयारी है, न दुकानों पर सजी रंगबिरंगी पोशाकों की चमक।
पोशाक श्रंगार उद्योग को करीब 80 से 100 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है
अनुमानित आंकड़ों के अनुसार ब्रज के लिए आर्थिक रीढ़ कहे जाने वाले पोशाक श्रंगार उद्योग को करीब 80 से 100 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है। देश के तमाम छोटे बड़े शहरों में ही नही अपितु विदेशों में भी डिजाइनर पोशाक की रंगत फीकी पड़ गयी है। सैकड़ां छोटे बड़े व्यापारी व हजारां पोशाक कारीगर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। कारखाने बन्द हो गये हैं। बाजार के सर्वे के मुताबिक कृष्ण जन्माष्टमी पर होने वाले पोशाक श्रंगार के कारोबार से कारीगरों की साल भर की रोजी रोटी का जुगाड़ होता था।
हर साल करीब 3-4 महीने पहले से ही देश विदेश से आर्डर की भरमार हो जाती थी
पोशाक के व्यापारी बताते है कि कोरोना ने इस उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है। सीजन में महज 5 प्रतिशत का व्यापार ही हो पाया है। एक तो यात्रियों के न आने से धंधा चौपट है। वहीं कुछ कोशिश ऑनलाइन व्यापार के जरिये किये गए तो ट्रांसपोर्ट के कारण माल की डिलीवरी नही हो पायी। कुछ ऐसा ही हाल पोशाक कारीगरों का है। अधिकांशत कारखानों पर ताले लग चुके है। जन्माष्टमी के कुछ दिन शेष रह जाने पर हल्के फुल्के आर्डर आने पर काम की उम्मीद जगी। जबकि हर साल करीब 3-4 महीने पहले से ही देश विदेश से आर्डर की भरमार हो जाती थी। सुबह शाम की शिफ्ट में ओवरटाइम कर ऑर्डर पूरे हो पाते थे। कोरोना ने कारीगरों को ढकेल लगाने पर मजबूर कर दिया। साल भर की रोजी रोटी छिन गयी। एक पोशाक कारोबारी ने बताया कि उनके पास देश के कई प्रमुख मंदिरों की पोशाक के ऑर्डर आते थे। लेकिन इस बार ऑर्डर न के बराबर है। अब तो दीपावली पर ही बाजार में रौनक आने की उम्मीद है। यही हाल सैकड़ों मिष्ठान व माखन मिश्री प्रसाद विक्रेताओं का है। बाहर से आने वाले लाखों श्रद्धालु श्रद्धावश प्रसाद अपने घर ले जाते थे। लेकिन इस वर्ष कोरोना ने सब कुछ तबाह करके रख दिया है।
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