डॉ. भानु प्रताप सिंह
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सरलता और महानता का अप्रतिम स्वरूप
मैंने अपने जीवन में अनेक कथावाचकों से मिलने और उनके आभामंडल को करीब से देखने के बाद यह स्वीकार करना स्वाभाविक है कि अधिकतर कथावाचक अपनी भव्यता, ठाठ-बाट और राजसी आभा में लिप्त रहते हैं। भागवत कथा के मंच पर उनका साक्षात्कार करना तो दूर, उनके निवास स्थल पर जाकर भी मिलना दुर्लभ होता है। यह सब शायद उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाने या अपनी “मूल्यवृद्धि” का एक माध्यम हो।
परंतु, जब मैंने अंतरराष्ट्रीय भागवत प्रवक्ता श्री संजय शास्त्री जी महाराज से भेंट की, तो मेरी धारणा को उन्होंने पूरी तरह से बदल दिया। उनके व्यक्तित्व की सहजता, उनके आचरण की विनम्रता और उनके कक्ष की साधारणता ने मुझे भीतर तक प्रभावित किया।
साधारण कक्ष में असाधारण व्यक्तित्व
जनवरी, 2025 में शास्त्रीपुरम, आगरा में आयोजित भागवत कथा के दौरान श्री संजय शास्त्री जी महाराज से मिलने का अवसर मिला। यह कथा प्रधानाध्यापक द्वय मनोज शर्मा और पूनम शर्मा ने कराई थी। मैं सोच रहा था कि महाराज जी की भव्यता और अप्रतिम व्यवस्थाओं की झलक देखने को मिलेगी। लेकिन जब उनके निवास स्थल पर पहुँचा, तो मैं चकित रह गया। महाराज जी एक साधारण तख्त पर विराजमान थे, और मिलने वालों के लिए जमीन पर गद्दे बिछे हुए थे।
कोई दिखावा, कोई तड़क-भड़क, और कोई विशेष आडंबर नहीं। उनके वेशभूषा और जीवनशैली में ऐसा कोई चिह्न नहीं था, जो उन्हें आम जनमानस से अलग करे। इस दृश्य ने यह सिद्ध कर दिया कि महानता आडंबर में नहीं, बल्कि सरलता में निहित है।
भागवत मंच पर एक अलग तेजस्विता
जब श्री संजय शास्त्री जी महाराज कथा के मंच पर होते हैं, तो उनका तेजस्वी व्यक्तित्व मानो भागवत के दिव्य संदेश का मूर्तिमान रूप बन जाता है। लेकिन जैसे ही वे मंच से नीचे उतरते हैं, उनका आचरण इतना सरल और आत्मीय हो जाता है कि वे बच्चों के साथ बच्चा, युवाओं के साथ युवा, और बुजुर्गों के साथ बुजुर्ग बन जाते हैं।
महाराज जी में सम्मान पाने की लालसा नहीं, बल्कि दूसरों को सम्मान देने का स्वभाव स्वाभाविक रूप से है। यही गुण उन्हें अन्य भागवताचार्यों से अलग और विशिष्ट बनाता है।
भागवत को ईवेंट बनने से रोकने का प्रयास
महाराज जी का मानना है कि “भागवत कथा कोई ईवेंट नहीं है, यह आत्मा के उद्धार का माध्यम है।” आज जब अधिकांश कथावाचक भागवत कथा को एक व्यावसायिक आयोजन बना रहे हैं, तब महाराज जी इसे शुद्धता और श्रद्धा के साथ प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
वे न तो बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगवाते हैं, न ही कथाओं में दिखावटी नृत्य और प्रदर्शन को प्रोत्साहित करते हैं। उनके अनुसार, “देवताओं के स्वरूप में नृत्य करवाना देवताओं का अपमान है।”
28 शिष्यों का निर्माण और विश्वभर में ख्याति
वर्ष 2001 से भागवत कथा प्रवक्ता के रूप में सेवा करते हुए, महाराज जी ने अब तक 28 शिष्यों को भागवताचार्य के रूप में प्रशिक्षित किया है, जो आज देश-विदेश में कथा वाचन कर रहे हैं। यह उनकी तपस्या और भागवत के प्रति समर्पण का प्रमाण है।
सोशल मीडिया पर उनका एकमात्र चैनल “लाड़ली भक्ति” है, जहाँ भागवत कथा के हर दिन का वीडियो अपलोड किया जाता है। व्यक्तिगत प्रचार-प्रसार में रुचि न लेने वाले महाराज जी, अपने कर्तव्यों को प्रचार की अपेक्षा सेवा के रूप में निभाते हैं।
भागवत में उनकी साधना का प्रतिबिंब
महाराज जी की कथा में एक अद्भुत गहराई और आध्यात्मिक ऊर्जा है। उनके विचार और संदेश केवल शब्द नहीं होते, बल्कि आत्मा को झकझोरने वाले प्रेरणास्त्रोत होते हैं।
श्रीमद्भागवत का यह श्लोक उनके व्यक्तित्व को दर्शाता है:
“न कुटुम्बाय च शिशवे न देहाय नोक्षाय न दाराय।
धर्माय यशसेऽर्थाय कामाय स्वजनाय वा।”
(भागवत 7.14.5)
अर्थ: महापुरुष के कार्य न तो व्यक्तिगत सुख के लिए होते हैं, न ही परिवार, धन, यश, कामना या किसी स्वजन के लिए। उनके कार्य केवल धर्म और लोक-कल्याण के लिए होते हैं।
कह सकते हैं कि श्री संजय शास्त्री जी महाराज न केवल एक भागवत प्रवक्ता हैं, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो भागवत की शिक्षा को अपने जीवन में आत्मसात करते हैं। उनकी सरलता, विनम्रता और दिव्यता इस बात का प्रमाण हैं कि सच्चा भागवताचार्य वही है, जो अपने आचरण से ही धर्म का प्रचार करे। ऐसे महान व्यक्तित्व को कोटि-कोटि प्रणाम।
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