अक्सर लोगों को लगता है कि मोतियाबिंद केवल बड़े-बुजुर्गों को ही होता है, लेकिन यह बीमारी बच्चों को भी हो सकती है। सफेद मोतिया या मोतियाबिंद बच्चों में दृष्टिहीनता होने का एक बड़ा कारण है। सफेद मोतिया होने पर बच्चे की आंख का लेंस प्रभावित होता है, उसमें धुंधलापन या सफेदी आ जाती है और बच्चे की दृष्टि प्रभावित हो जाती है। इस बारे में एम्स में नेत्र रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुदर्शन खोखर बताते हैं कि पीडियाट्रिक यानी बच्चों में मोतियाबिंद 13 से 15 साल तक के बच्चों में होता है। हर 10 हजार बच्चों में जो 10वां बच्चा होता है उसमें मोतियाबिंद की समस्या हो सकती है।
बच्चों में मोतियाबिंद होने के कारण
> आनुवांशिक
> रेडिएशन से अधिक संपर्क व प्रभाव से
> अन्य बीमारियां जैसे डाउन सिंड्रोम
> बच्चों में संक्रमण
> कुछ दवाएं जैसे स्टेरॉयड
> गर्भावस्था में रूबेला या चिकनपॉक्स जैसे संक्रमण
> आघात या आंख पर चोट
सही समय पर इलाज जरूरी
मोतियाबिंद जितनी जल्दी पहचान कर उनका इलाज करें या बच्चे को चश्मा या लेंस दे तो उनकी आंख की रोशनी पूरी तरह से बचा सकते हैं। लेकिन अगर देर करेंगे तो बच्चों की आंख में टेढ़ापन रह सकता है और आंख की थिरकन भी रुकेगी नहीं, आगे चल कर यह अंधता में भी बदल सकता है। यानी अगर मोतियाबिंद को सही समय पर पहचान कर बच्चे को सही समय पर इलाज मिल पाएं तो उसकी दृष्टि को बचाया जा सकता है।
बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण
> आंख की पुतली पर टॉर्च की रोशनी पड़ने पर जब सफेद दिखती है
> धूप में जाने पर बच्चा सहन नहीं कर पाता और आंख बंद कर लेता है
> आंख में तिरछापन
> आंखों में थरकन यानी रोशनी अंदर नहीं पहुंचती और आंख गति करती रहती है
> देखने में परेशानी और आंख को मलना
> बच्चे द्वारा किसी वस्तु को देखने पर वस्तु के चारों ओर प्रकाश का घेरा दिखना
मोतियाबिंद का इलाज
इन लक्षणों में बच्चे में चश्में की कमी और मोतियाबिंद भी हो सकता है। ऐसे में डॉक्टर के पास जाने पर वो एक ड्रॉप डालेंगे, पुतली फैलाने की दवा होती है। उसके बाद पता चलेगा कि बच्चे में मोतिया है या नहीं। इसलिए बच्चे का जन्म हो तो डॉक्टर से इसकी जांच जरूर करवाएं। जिससे आने वाले समय में बच्चे को कोई इस तरह की समस्या न हो।
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