अपने एक राजदूत का ऐसा लेटर दिखाकर देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं पाकिस्‍तानी पीएम इमरान, जो झूठ का पुलिंदा है

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पाकिस्तान में जारी सियासी ड्रामे के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा एक लेटर की हो रही है। दावा किया जा रहा है कि यह लेटर अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट यानी फॉरेन मिनिस्ट्री की तरफ से पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को भेजा गया। इमरान का दावा है कि बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन उनको प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं देखना चाहती और अमेरिका के इशारे पर ही उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया।
पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक इस लेटर को नेशनल सिक्योरिटी कमेटी की मीटिंग में रखा गया। कुछ जर्नलिस्ट्स ने भी इसे देखा। बहरहाल, सबसे बड़ा सवाल तो यह था कि इसे कैबिनेट मीटिंग या संसद में पेश क्यों नहीं किया गया?
ये सवाल इसलिए मौजूं है क्योंकि संसद या कैबिनेट ही वो प्लेटफॉर्म हैं, जहां से पूरी दुनिया मैसेज जा सकता था और अमेरिका को जवाब देने पर मजबूर किया जा सकता था।
क्या है इस लेटर में
सबसे जरूरी यह जानना है कि इमरान जो कागज दिखा रहे हैं, वो वास्तव में है क्या?
पाकिस्तान के सीनियर जर्नलिस्ट रिजवान रजी कहते हैं- यह कागज ब्लफ है, झूठ है और इसके सिवाए कुछ नहीं। कुछ महीनों पहले तक अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत थे असद मजीद। उनके बारे में ये जानना बेहद जरूरी है कि वो इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के सदस्य और इमरान के खास दोस्त हैं।
इमरान ने मजीद को एक मिशन सौंपा कि किसी तरह जो बाइडेन एक फोन इमरान को कर लें। यह हो न सका। फिर खान ने मजीद से कहा कि वो ये बताएं कि बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन इमरान सरकार और पाकिस्तान को लेकर क्या सोच रखती है। जवाब में मजीद ने एक बढ़ा-चढ़ाकर इंटरनल मेमो लिखा। इसमें बताया कि व्हाइट हाउस को लगता है कि इमरान सरकार के रहते पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर नहीं हो सकते।
तो क्या इसे लेटर कहें या कुछ और
पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी वकील और पॉलिटिकल एनालिस्ट साजिद तराड़ के मुताबिक- पहली बात तो यह कि यह ऑफिशियल कम्युनिकेशन नहीं है। यह एक एम्बेसडर का अपने विदेश मंत्रालय को लिखा इंटरनल मेमो है, जिसकी कोई कानूनी या डिप्लोमैटिक हैसियत नहीं।
दूसरी बात, अमेरिका को अब पाकिस्तान की कोई जरूरत नहीं। अगर होगी भी तो वो इमरान से मंजूरी क्यों मांगेगा? वो फौज से बात करता है और करता रहेगा। इसे आप इंटरनल मेमो, इंटरनल केबल, वायर या बहुत हुआ तो डिप्लोमैटिक नोट कह सकते हैं। ये तो बेहद आम चीज है। खान राई का पहाड़ बनाकर पॉलिटिकल माइलेज चाहते हैं।
तारीख भी गलत बता रहे हैं इमरान
पाकिस्तान के सीनियर जर्नलिस्ट हामिद मीर ने कहा- असद मजीद तो नवंबर में ही रिटायर हो गए थे। फिर वो 7 या 8 मार्च को इंटरनल मेमो कैसे भेज सकते हैं। अगर अमेरिका इमरान की सरकार गिराने की साजिश रच रहा है तो आपने OIC कॉन्फ्रेंस में उसे बतौर गेस्ट क्यों बुलाया। इस झूठ से अवाम को तो बरगलाया जा सकता है, लेकिन मुल्क को इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, ये इमरान नहीं जानते। डिप्लोमैसी में हर लफ्ज के बहुत बड़े मायने होते हैं, लेकिन खान साहब शायद इसे भी क्रिकेट समझ रहे हैं।
मान लिया धमकी मिली, एक्शन क्या लिया?
पाकिस्तान के एक और सीनियर जर्नलिस्ट इमरान शफकत कहते हैं- चलिए मान लेते हैं कि इमरान खान को अमेरिका या किसी दूसरे मुल्क से धमकी मिली। तो वो ये लेटर अब तक दबाकर क्यों बैठे रहे? डिप्लोमैटिक चैनल्स के जरिए उस मुल्क से बात क्यों नहीं की? पाकिस्तान में अमेरिका का और अमेरिका में पाकिस्तान का परमानेंट ऐंबैस्डर लंबे वक्त से नहीं है, लेकिन चार्ज डि अफेयर्स (दूतावास प्रभारी) तो है, उसे क्यों नहीं बुलाया?
चार्ज डि अफेयर्स को बुलाकर उसे डिमार्शे (डिप्लोमैसी में किसी मुद्दे पर असहमति दर्ज कराने का सबसे हल्का तरीका) ही सौंप देते। सच्चाई ये है कि इमरान और उनके मंत्री अगले चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। खुद को सियासी शहीद बताने की कोशिश कर रहे हैं? इमरान जाएं और संसद में ये लेटर पेश कर दें। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh