जन्मदिन विशेष: मैं फ़िल्म लाइन की आख़िरी मुग़ल हूँ…पार्श्व गायिका आशा भोंसले

जन्मदिन विशेष: मैं फ़िल्म लाइन की आख़िरी मुग़ल हूँ…पार्श्व गायिका आशा भोंसले

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मैं फ़िल्म लाइन की आख़िरी मुग़ल हूँ- कुछ दिन पहले जब से आशा भोंसले ने ये बयान दिया है, तभी से इसकी चर्चा है. 8 सितंबर 1933 को जन्मी वो आशा भोंसले जिन्होंने 1943 में 10 साल की उम्र में गाना शुरू कर दिया था. जो 80 साल से गाती आ रही हैं. जिन्होंने हंसराज बहल, ओपी नैय्यर, मदन मोहन, आरडी बर्मन, इलैयाराजा, अनु मलिक से लेकर एआर रहमान तक के साथ काम किया है.

जिन्होंने रफ़ी, मुकेश और किशोर से लेकर बॉय जॉर्ज और आदित्य नारायण तक के साथ गाया है, जिन्हें 1995 में उस्ताद अली अकबर खां के साथ एल्बम के लिए ग्रैमी में नॉमिनेट किया जा चुका है.

90 साल की उम्र में इसी संगीत सफ़र और तजुर्बे को समेटने के लिए ही आशा भोंसले ने शायद मुग़ल शब्द का इस्तेमाल किया होगा. आशा भोंसले ने 10,000 से ज़्यादा गाने रिकॉर्ड किए हैं.

1943 में मराठी फ़िल्म से शुरुआत करने के बाद 1945 में आशा भोंसले को हिंदी गाने मिलने लगे.

शुरुआत में हुई दिक्कतों के बावजूद आशा भोंसले की सफलता पर संगीत से जुड़े मामलों के जानकर राजीव विजयकर कहते हैं, “आशा भोंसले की ख़ासियत रही है कि वो वक़्त के साथ चलती हैं. कभी ये नहीं माना कि पुरानी ही चीज़ें अच्छी हैं. उनकी आवाज़ जितनी भजन में सूट होती है उतनी ही कैबरे में.”

वे कहते हैं, “विविधता उनकी ताक़त है और उन्हें यहाँ तक लेकर आई है. मसलन आप ‘आगे भी जाने न तू…’ गाना को देखें तो इसमें एक तरह का फ़लसफ़ा है, ये नाइट क्लब नंबर भी है. आशा के इस गाने में एक अजीब सा दर्द है. नाइट बार में फ़िल्माए गाने में इस तरह का भाव लाना मुश्किल काम है जो आशा भोंसले कर पाईं.”

आशा भोंसले एक बड़े परिवार में पली बढ़ी जहाँ उनकी बहनें लता, उषा, मीना और भाई हृदयनाथ थे. आशा भोंसले और उनके भाई का रिश्ता बहुत गहरा था. आशा जी के शब्दों में कहें तो “वो हमेशा मेरी गोद में ही रहता. उसे जो चाहिए था मुझसे माँगता. मुझे घोड़ा बनाता था.”

ये बात जग जाहिर है कि आशा भोंसले ने परिवार की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ 16-17 की कम उम्र में गणपतराव भोंसले से शादी कर ली थी. इसके बाद कुछ वर्षों के लिए अपने परिवार से उनका नाता टूट गया. कुछ सालों तक वो भाई से भी नहीं मिलीं.

राजीव विजयकर कहते हैं, “क्लासिकल गानों पर आशा भोंसले की पकड़ उतनी ही अच्छी रही है जितनी कैबरे में. मिसाल के तौर पर ये गाने लीजिए- ‘देखो बिजली डोले बिन बादल की चम चम चमके माथे की बिंदिया…’ या ‘तोरा मन दर्पण कहलाए…’

ऑस्कर जीतने वाले किरावानी बताते हैं कि वो आशाजी को उनके वेस्टर्न मिजाज़ वाले गानों से ही जानते थे लेकिन जब उन्होंने आशा भोंसले के क्लासिकल गाने सुने तो उनकी पहचान एक अलग आशा भोंसले से हुई.”

 

Dr. Bhanu Pratap Singh