हिंदुस्तानी शास्त्रीय परंपरा की प्रमुख और जयपुर घराने की अग्रणी गायिका किशोरी अमोनकर का आज जन्मदिन है। 10 अप्रैल 1931 को मुंबई में पैदा हुईं किशोरी अमोनकर की मृत्यु मुंबई में ही 03 अप्रैल 2017 को हुई।
हिंदुस्तानी संगीत में गायिकाएँ तो एक से एक हुईं लेकिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो नाम किशोरी अमोनकर ने कमाया, वह किसी और को नसीब नहीं हुआ। कोकिलकंठी किशोरी अमोनकर की सुरीली आवाज़ से देश-विदेश के लाखों संगीत रसिक मंत्रमुग्ध हैं। ख़्याल, मीरा के भजन, मांड, राग भैरवी की बंदिश ‘बाबुल मोरा नैहर छूटल जाए’ पर उनका गायन तो जैसे संगीत रसिकों के दिल में नक्श सा हो गया है। इस समय किशोरी की गायकी के चहेते सारे देश में बड़ी संख्या में हैं। गायन के अलावा वे एक श्रेष्ठ गुरु भी रहीं। उनके शिष्यों में मानिक भिड़े, अश्विनी देशपांडे भिड़े, आरती अंकलेकर जैसी जानी मानी गायिकाएं शामिल हैं।
सुप्रसिद्ध गायिका मोगूबाई कुर्डीकर की पुत्री और गंडा-बंध शिष्या किशोरी अमोनकर ने एक ओर अपनी माँ से विरासत में और तालीम से पायी घराने की विशुद्ध शास्त्रीय परम्परा को अक्षुण्ण रखा, दूसरी ओर अपनी मौलिका सृजनशीलता का परिचय देकर घराने की गायिकी को और भी संपुष्ट किया। माँ मोगूबाई कुर्डीकर, उनकी गुरु बहन केसरीबाई केरकर तथा उनके दिग्गज उस्ताद उल्लादिया खाँ की तालीम को आगे बढ़ाते किशोरी ने आगरा घराने के उस्ताद अनवर हुसैन खाँ से लगभग तीन महीने तक ‘बहादुरी तोड़ी’ की बंदिश सीखी। प. बालकृष्ण बुआ, पर्वतकार, मोहन रावजी पालेकर, शरतचंद्र आरोलकर से भी प्रारम्भिक मार्गदर्शन प्राप्त किया। फिर अंजनीबाई मालफेकर जैसी प्रवीण गायिका से मींड के सौंदर्य-सम्मोहन का गुर सीखा। उनकी ममतामयी माँ गुरु के रूप में अनुशासनपालन वा कड़े रियाज़ के मामले में उतनी ही कठोर रहीं, जितनी कि उनके समय में उनके अपने गुरु कठोर थे।
पद्म विभूषण से सम्मानित किशोरी ने योगराज सिद्धनाथ की सारेगामा द्वारा निकाली गई एलबम ‘ऋषि गायत्री’ के लोकार्पण के अवसर पर कहा, “मैं शब्दों और धुनों के साथ प्रयोग करना चाहती थी और देखना चाहती थी कि वे मेरे स्वरों के साथ कैसे लगते हैं। बाद में मैंने यह सिलसिला तोड़ दिया क्योंकि मैं स्वरों की दुनिया में ज़्यादा काम करना चाहती थी। मैं अपनी गायकी को स्वरों की एक भाषा कहती हूं।” उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि मैं फ़िल्मों में दोबारा गाऊंगी। मेरे लिए स्वरों की भाषा बहुत कुछ कहती हैं। यह आपको अद्भुत शांति में ले जा सकती है और आपको जीवन का बहुत सा ज्ञान दे सकती है। इसमें शब्दों और धुनों को जोड़ने से स्वरों की शक्ति कम हो जाती है।” वह कहती हैं, “संगीत का मतलब स्वरों की अभिव्यक्ति है। इसलिए यदि सही भारतीय ढंग से इसे अभिव्यक्त किया जाए तो यह आपको असीम शांति देता है।
सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका श्रीमती किशोरी अमोनकर को शास्त्रीय संगीत की परम्परा को लोकप्रिय और समृद्ध बनाने में उनके योगदान के लिए ‘आईटीसी संगीत पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया । पुरस्कार के तहत उन्हें प्रतीक चिह्न और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। ‘गान सरस्वती’ की उपाधि एवं पद्म विभूषण से सम्मानित श्रीमती अमोनकर ने इस अवसर पर अपनी मिठास भरी भावपूर्ण शैली में राग तिलक कामोद में निबद्ध रचना “सकल दु:ख हरन सदानन्द घट घट प्रगट ” और एक अन्य रचना “मेरो पिया रसिया सुन री सखी तेरो दोष कहां ” प्रस्तुत की।
सम्मान एवं पुरस्कार
1987 – पद्म भूषण
2002 – पद्म विभूषण
1985 – संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
2009 – संगीत नाटक अकादमी फ़ेलोशिप
-एजेंसियां
- यूपी के रायबरेली में कोडीनयुक्त कफ सिरप के काले कारोबार का खुलासा, दो दवा दुकानें सील - October 29, 2025
- मैनपुरी: एंबुलेंस कर्मियों की सूझबूझ से बची नवजात की जान, सुरक्षित पहुंचाया अस्पताल - October 29, 2025
- गाथा शिव परिवार की– गणेश कार्तिकेय’ में सुभान खान का समर्पण — भगवान कार्तिकेय बनने से पहले सीखी प्राचीन युद्धकला - October 29, 2025