Agra, Uttar Pradesh, India. राधास्वामी मत के आदि केन्द्र हजूरी भवन पीपल मंडी में प्रथम गुरु स्वामी जी महाराज का जन्मदिवस श्रद्धा के साथ मनाया गया। स्वामी जी महाराज का जन्म 1818 ईसवी में जन्माष्टमी के दिन पन्नी गली में हुआ था। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य दादाजी महाराज (प्रो. अगम प्रसाद माथुर, पूर्व कुलपति आगरा विश्वविद्यालय) के सानिध्य में विशेष सत्संग हुआ। जन्माष्टमी पर हजूरी भवन में पूरे देश से हजारों सत्संगी आए हुए हैं। दादाजी महाराज के चरणों में मत्था टेकने के लिए देर सत्संगियों की रात्रि तक पंक्तियां लगी रहीं।
सुरत शब्द योग का अभ्यास हर सत्संगी को करना चाहिए
स्वामी जी महाराज के प्रति भजनों के माध्यम से श्रद्धा प्रकट की गई। बानियों का पाठ हुआ। गुरु की महिमा का बखान हुआ। प्रसाद का वितरण हुआ। सतसंगियों ने दादाजी महाराज के हाथों से माला पहनकर स्वयं को भाग्यशाली माना। दादाजी महाराज ने अपने संदेश में कहा है कि हुजूर महाराज के आग्रह पर स्वामी जी महाराज ने वसंत पंचमी के दिन 1861 में राधास्वामी मत सर्वजनों के लिए प्रकट किया था। सुरत शब्द योग का अभ्यास हर सत्संगी को करना चाहिए।
राधास्वामी को कुल मालिक मानिए
दादाजी महाराज ने कहा है कि मालिक या उसके प्रतिनिधि का मिलान दुनिया में और किसी से नहीं हो सकता। इसलिए कहा गया है कि आप सतसंग कीजिए, पहले राधास्वामी मत को समझिए, राधास्वामी दयाल की महिमा को जानिए, राधास्वामी को कुल मालिक मानिए, फिर उस प्रीत और प्रतीत को पहले बढ़ाइए और फिर सतसंग में उनके साथ थोड़ा बहुत प्रीत का रिश्ता रखिए।
प्यार होता है सजीव, इसलिए यह मत सजीव
उन्होंने कहा है कि राधास्वामी दयाल के सामने हम सब दीन-अधीन हैं। उनके चरनों में आए हैं अपना उद्धार कराने के लिए। बहुत से लोग कहते हैं कि हम बैठते हैं लेकिन हमको अंतर में दर्शन नहीं होते तो जरा गहरे बैठिए। ऐसा नहीं हो सकता कि अंतर में उनका दर्शन ना हो। उसके लिए आपकी आंख खुली होनी चाहिए। आपका एक दिन भी सही अभ्यास बनेगा यानी मन और चित्त में और कोई दुनिया की गुनावन नहीं उठेगी, आप गुरु स्वरूप में लीन होंगे और उनको अगुवा करके आगे चलेंगे, आप चल नहीं कर सकते यह पक्की बात है, वही चलाएंगे, वो ही बढ़ाएंगे तो फिर उनको आगे रखने में क्या हर्ज है। ध्यान में बैठने से पहले उस स्वरूप को खूब ध्यान से देखिए जिस स्वरूप को आप देखते चले आ रहे हैं, उसी में थोड़ा ध्यान लग सकता है। प्यार होता है सजीव, इसलिए यह मत सजीव है। यहां पर इसीलिए वक्त गुरु की महिमा कही गई है। उनके संग से आपको लाभ होगा, नुकसान तो कुछ भी नहीं होगा।
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