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गुरु-पुष्यामृत महासिद्ध योग अक्षय तृतीया से भी अधिक शक्तिशाली. एस्ट्रोलॉजर पं. प्रमोद गौतम दे रहे पूरी जानकारी

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Agra, Uttar Pradesh, India. नक्षत्र वैदिक हिन्दू ज्योतिष के मुहूर्त शास्त्र में सभी 27 नक्षत्रों में ‘पुष्य नक्षत्र’ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यद्यपि शास्त्रों में अभिजीत मुहूर्त को भी नारायण के ‘चक्र-सुदर्शन’ के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र और विशेष वार के संयोग से बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्वदिग्गामी है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र और इनमें श्रेष्ठ मुहूर्तों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है। 27 अप्रैल को गुरु-पुष्यामृत के महासिद्व योग वाले सिद्ध महूर्त में श्री हरि विष्णु के चारों धामों में शामिल बद्रीनाथ धाम के कपाट विधि विधान से 6 माह के लिए खुल गए हैं।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पुष्य नक्षत्र का सर्वाधिक महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता हैय़ बृहस्पतिवार को गुरु-पुष्य और रविवार को रवि-पुष्य योग बनता है, जो वैदिक हिन्दू मुहूर्त ज्योतिष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस पुष्य नक्षत्र को तिष्य कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी। बृहस्पति भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे। तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, ‘बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारद-पुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभ-फलदायी कहे गये हैं किन्तु माँ पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणामस्वरुप पाणिग्रहण संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है।

पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि गुरु-पुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्र जाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अति-शुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं क्योंकि लक्ष-दोषं गुरु-र्हन्ति की भांति ही ये अपनी उपस्थिति में लाखों दोषों का शमन कर देता है। इस प्रकार रवि-पुष्य योग में भी उपरोक्त सभी कर्म किए जा सकते हैं।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पुष्य नक्षत्र के सन्दर्भ में पौराणिक काल से चले आ रहे रहे रहस्यमयी तथ्यों के सन्दर्भ में कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि नारी जगत के लिए ये पुष्य नक्षत्र और भी विशेष प्रभावशाली माना गया है। इनमें जन्मी कन्याएं अपने कुल-खानदान का यश चारों दिशाओं में फैलाती हैं और कई महिलाओं को तो महान तपस्वनी की संज्ञा मिली है जैसा कि कहा भी गया है कि, देवधर्म धनैर्युक्तः पुत्रयुक्तो विचक्षणः। पुष्ये च जायते लोकः शांतात्मा शुभगः सुखी। अर्थात-जिस कन्या की उत्पत्ति पुष्य नक्षत्र में होती है वह सौभाग्यशालिनी, धर्म में रुचि रखने वाली, धन-धान्य एवं पुत्रों से युक्त सौन्दर्य शालिनी तथा पतिव्रता होती है। वैसे तो यह नक्षत्र हर सत्ताईसवें दिन आता है किन्तु हर बार गुरुवार या रविवार ही हो ये तो संभव नही हैं इसलिए इस नक्षत्र के दिन गुरु एवं सूर्य की होरा में कार्य आरंभ करके गुरु-पुष्य और रवि-पुष्य जैसा परिणाम प्राप्त किया जा सकता है।

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पुष्य नक्षत्र का क्या रहस्यमयी सम्बन्ध

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र के स्वामी स्वयं ब्रह्माण्ड के न्यायधीश शनि ग्रह स्वयं हैं। जब यह पुष्य नक्षत्र रविवार के दिन पड़ जाता है, तो उसे हम रवि-पुष्यामृत महासिद्ध योग  वाला दिन कहते हैं, और जब यह पुष्य नक्षत्र गुरुवार के दिन पड़ जाता है तब उसे हम गुरु-पुष्यामृत महासिद्व योग वाला दिन कहते हैं, किसी भी व्यापारिक कार्य को आरंभ करने के लिए गुरु-पुष्यामृत योग अति उत्तम माना गया है। कुल मिलाकर हम यह समझ सकते हैं कि किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने के लिए पुष्य नक्षत्र युक्त महूर्त सर्वोत्तम होता है, केवल शुक्रवार को पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र को छोड़कर क्योंकि शुक्रवार को जब पुष्य नक्षत्र का संयोग पड़ता है तब उसे वैदिक हिन्दू ज्योतिष मुहूर्त प्रणाली में उत्पात योग कहा जाता है। पुष्य नक्षत्र में विवाह का महूर्त वैदिक पौराणिक हिन्दू शास्त्रों के अनुसार निषेध माना गया है, इसलिए पुष्य नक्षत्र में विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, यही कारण है कि शुक्रवार को पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र को शास्त्रों के अनुसार उत्पात योग कहा गया है, क्योंकि नवग्रहों में शुक्र ग्रह को प्रेम, भोग-विलास एवम विवाह का कारक ग्रह माना जाता है।

पुष्य नक्षत्र और भारत

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि भारत पौराणिक काल से ही भगवानों के अवतारों की दिव्य भूमि रही है, श्री हरि विष्णु के 23 अवतार अब तक के युगों में इस पृथ्वी लोक पर हो चुके हैं, अब वर्तमान के कलियुग में श्री हरि विष्णु का 24 वां आखिरी कल्कि अवतार भी 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र में ही किसी ब्रह्माण्ड परिवार में ही होगा, ऐसा पौराणिक ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से उल्लेख है, लेकिन कलियुग में यह अवतार कब होगा वर्तमान में यह एक रहस्यमयी विचारणीय तथ्य है, और इस रहस्य को योग-माया के जनक श्री हरि विष्णु ही जानें। दूसरी तरफ भारत देश के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण रहस्यमयी तथ्य यह है कि भारत देश को ब्रिटेन से गुलामी की जंजीरों से मुक्ति भी 15 अगस्त 1947 को ब्रह्माण्ड के न्यायाधीश शनि ग्रह के 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र में ही मिली है, यही कारण है कि इस राजनीति एवम धर्म के नाम पर जब-जब आडम्बरियों ने भारत देश के नागरिकों को जब-जब गुमराह करने की कोशिश की है, तब-तब ब्रह्माण्ड के न्यायाधीश शनि ने उन पांखण्डी धर्माचार्यों एवम नेताओं के अंहकारों का विनाश किसी न किसी रूप में क्रूरता से किया है। चाहे वो किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं एवम महामारी के कारण ही भारत में इस प्रकार का संकट क्यों न आया हो। वर्तमान में 17 जनवरी 2023 से स्वतंत्र भारत की पुष्य-नक्षत्र युक्त चन्द्र राशि कर्क पर शनि ग्रह की अष्टम ढैय्या का प्रकोप आने वाले ढाई वर्षों के लिए आरम्भ हो गया है जो कि लगभग वर्ष 2025 तक चलेगा।

नीलम रत्न के बारे में

पुष्य नक्षत्र पर ब्रह्माण्ड के न्यायाधीश शनि ग्रह का अधिपत्य होने के कारण शनि ग्रह का नीलम रत्न केवल 10 फीसदी व्यक्तियों को ही अनुकूल हो पाता है, चाहे वह व्यक्ति कितना ही धनाढ्य हो और बेशकीमती बहुमूल्य नीलम रत्न को खरीदने की क्षमता क्यों न रखता हो, लेकिन ब्रह्माण्ड के न्यायाधीश शनि ग्रह की इच्छा के विरुद्ध वो धनाढ्य व्यक्ति शनि ग्रह के नीलम रत्न को अपने भौतिक शरीर पर धारण नहीं कर पायेगा क्योंकि ब्रह्माण्ड के न्यायाधीश शनि ग्रह के नीलम रत्न के अंदर दैवीय शक्तियों का औरा होता है जो कि आंतरिक रूप से सकारात्मक कर्म रखने वाले कुछ चुनिंदा व्यक्तियों को ही अनुकूल हो पाता है। और खूनी प्रजाति का खतरनाक नीलम रत्न तो, जो कि मात्र 01 फीसदी ही कुछ चुनिंदा व्यक्तियों को ही अनुकूल हो पाता है, अर्थात जिन व्यक्तियों के ऊपर शनि ग्रह के साथ-साथ उसके पिता सूर्य एवम देवताओं के सेनापति मंगल ग्रह की अर्थात तीनों ग्रहों की एक-साथ सम्पूर्ण कृपा होती है, केवल उन चुनिंदा 01 फीसदी व्यक्तियों को ही खूनी नीलम रत्न पूर्ण रूप से अनुकूल हो पाता है।

पंडित गौतम ने कहा कि कुल मिलाकर हम यह समझ सकते हैं कि हमारे ब्रह्माण्ड में 27 नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र को बहुत शुभ एवं कल्याणकारी नक्षत्र माना जाता है । वैदिक हिन्दू ज्योतिष शास्त्र में इसे 27 नक्षत्रों में से आठवां स्थान हासिल है और इसे नक्षत्रों का सम्राट भी कहा जाता है यानी नक्षत्रों का शहंशाह। यह योग सभी कार्यों में सिद्धि देता है। इसी पुष्य अर्थात दिव्य शक्तियों युक्त पुष्य नक्षत्र में त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म गजकेसरी महायोग में हुआ था। अर्थात उनकी जन्मकुंडली में देवगुरु बृहस्पति और चन्द्रमा ग्रह की कर्क राशि के लग्न (शरीर भाव) में एक साथ युति मौजूद थी।

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एस्ट्रोलॉजर पंडित गौतम ने बताया कि वैदिक हिन्दू ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र, हिन्दू पंचांग का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है। भारतीय हिन्दू ज्योतिष में, नक्षत्र को चंद्र महल भी कहा जाता है। लोग ज्योतिषीय विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणियों के लिए नक्षत्र की अवधारणा का उपयोग करते हैं। शास्त्रों में नक्षत्रों की कुल संख्या 27 बताई गई है। अभिजीत नक्षत्र को लेकर कुल 28 नक्षत्र होते हैं

पौराणिक काल से वैदिक हिन्दू ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र माने जाते हैं। आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। वैदिक हिन्दू ज्योतिष में नक्षत्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। वेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी नक्षत्रों के बारे में विशेष जानकारी दी गई है। नक्षत्र अपने प्रभाव से किसी भी व्यक्ति के जीवन को बदलने की क्षमता रखता है। इसीलिए लोग नक्षत्रों को अनुकूल करने के लिए उनसे संबंधित ग्रहों की पूजा-पाठ और व्रत आदि करते हैं। शास्त्रों में नक्षत्रों की कुल संख्या 27 बताई गई है।

नक्षत्र का पौराणिक महत्व

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक पुराणों में 27 नक्षत्रों की पहचान दक्ष प्रजापति की बेटियों के तौर पर है। इन तारों का विवाह सोम देव अर्थात चंद्रमा के साथ हुआ था। चंद्रमा को इन सभी रानियों में सबसे प्रिय थी रोहिणी, जिसकी वजह से चंद्रमा को शाप का सामना भी करना पड़ा था। वैदिक काल से हीं नक्षत्रों का अपना अलग महत्व रहा है।

वैदिक पुराणों के अनुसार ऋषि मुनियों ने आसमान का विभाजन 12 हिस्सों में कर दिया था, जिसे हम 12 अलग-अलग राशियों- ‘मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन’ के नाम से जानते हैं। इसके और सूक्ष्‍म अध्‍ययन के लिए उन्होंने इसको 27 भागों में बांट दिया, जिसके बाद परिणामस्वरूप एक राशि के भीतर लगभग 2.25 नक्षत्र आते हैं। अगर देखा जाए तो चंद्रमा अपनी कक्षा पर चलता हुआ पृथ्वी की एक परिक्रमा को 27.3 दिन में पूरी करता है। वैदिक हिन्दू ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा प्रतिदिन तकरीबन एक भाग (नक्षत्र) की यात्रा करता है। वैदिक हिन्दू ज्योतिष शास्त्र में सही और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए नक्षत्र का उपयोग किया जाता हैं।

पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पुष्य नक्षत्र के उपरोक्त रहस्यमयी तथ्यों के आधार पर कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि जन्म नक्षत्र के द्वारा किसी व्यक्ति के सोचने की शक्ति, अंतर्दृष्टि और उसकी विशेषताओं का विश्लेषण आसानी से किया जा सकता है और यहां तक कि नक्षत्र आपकी दशा अवधि की गणना करने में भी मदद करता है। ज्ञानवान अनुभवी व्यक्ति ज्योतिषीय विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणियों के लिए नक्षत्र की अवधारणा का उपयोग करते हैं।

नक्षत्र और राशि के मध्य क्या अंतर है?

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित गौतम ने बताया कि नक्षत्र और राशि के मध्य क्या अंतर है उसे समझने के लिए यदि हम आकाश को 12 समान भागों में विभाजित करते हैं, तो प्रत्येक भाग को राशि कहा जाता है, लेकिन अगर हम आकाश को 27 समान भागों में विभाजित करते हैं तो प्रत्येक भाग को नक्षत्र कहा जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आकाश किसी भी वृत्तीय आकार की तरह 360 डिग्री का होता है। अब यदि हम 360 डिग्री को 12 भागों में बांटते हैं, तो हमें एक राशि चिह्न 30 डिग्री के रूप में प्राप्त होता है। इसी प्रकार, नक्षत्रों के लिए, यदि हम 360 डिग्री को 27 भागों बांटते हैं, तो एक नक्षत्र 13.33 डिग्री (लगभग) के रूप में आती है। इसलिए, नक्षत्रों की कुल संख्या 27 और राशियों की कुल संख्या 12 होती है। कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो नक्षत्र एक छोटा-सा हिस्सा है और राशि एक बड़ा हिस्सा होता है। किसी भी राशि चिह्न में सवा दो नक्षत्र आते हैं।

कैसे ज्ञात करते हैं नक्षत्र?

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि हिन्दू पंचांग के आधार पर जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होता है, वही उस व्यक्ति का जन्म नक्षत्र होता है। यदि किसी व्यक्ति के वास्तविक जन्म नक्षत्र की जानकारी हो तो उस व्यक्ति के बारे में बिलकुल सही सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है। आपके नक्षत्रों की सही गणना आपको काफी लाभ पहुंचा सकती हैं। साथ ही आप अपने अनेक प्रकार के दोषों और नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के उपाय भी ढूंढ सकते हैं। सभी नक्षत्रों के अपने शासक ग्रह और देवता होते हैं। विवाह के समय भी वर और वधू का कुंडली मिलान करते समय नक्षत्र का सबसे अधिक महत्व होता है।

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Dr. Bhanu Pratap Singh