डॉ. भानु प्रताप सिंह
अपनी बात शुरू करने से पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि मैं अंतरराष्ट्रीय मामलों का विशेषज्ञ नहीं हूँ। मैंने स्थानीय स्तर पर अधिक काम किया है। इसके बाद भी रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बारे में लिख रहा हूँ। लिखने से पूर्व मैंने पूरी परिस्थिति का अध्ययन किया है। कौन सा देश गलत है और कौन सा देश सही है, यह सबको दिखाई दे रहा है, लेकिन सिवाय प्रतिबंधों के कोई कुछ कर नहीं पा रहा है। इतना तय है कि यह युद्ध बहुत बड़ी आफत लेकर आएगा। सबसे बड़ी बात है कि बलशाली देश रूस के सामने छोटा सा देश यूक्रेन युद्ध के 26वें दिन भी मुकाबलारत है।
पहले यह जानना जरूरी है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया। असल में यूक्रेन नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) में शामिल होने का प्रयास कर रहा था। रूस की इच्छा है कि यूक्रेन नाटो में शामिल न हो और इसके लिए अपने संविधान में बदलाव करे। यूक्रेन का कहना है कि संविधान बदला तो वह नाटो और ईयू (यूरोपियन यूनियन) का सदस्य नहीं बन पाएगा। रूस का यूक्रेन पर दबाव है कि वह क्रीमिया को रूस का अभिन्न भाग के रूप में मान्यता दे। असल में क्रीमिया कभी रूस का हिस्सा था लेकिन 1954 में निकात ख्रुश्चेव ने यह यूक्रेन को सौंप दिया था। वर्ष 2014 के मार्च माह में रूस ने जबरदस्ती क्रीमिया को यूक्रेन से छीन लिया। इसी कारण यूक्रेन ने क्रीमिया को मान्यता नहीं दी है। 2014 में ही एक और घटनाक्रम हुआ। पूर्वी यूक्रेन में सक्रिय आतंकवादियों ने डोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था। रूस ने डोनेत्स्क और लुहांस्क को अलग देश के रूप में मान्य किया है। यूक्रेन इसका विरोध कर रहा है। इन सब कारणों से रूस बौखलाया हुआ है। उसकी बौखलाहट का एक कारण यह भी है कि रूस के सामने यूक्रेन की सैन्य शक्ति क्षीण है और इसके बाद भी बात नहीं मान रहा है।
रूस ने यूक्रेन पर 24 फरवरी, 2022 को हमला किया था। विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे थे कि दो-तीन दिन में युद्ध समाप्त हो जाएगा। ऐसा हो नहीं रहा है। युद्ध जारी है। यूक्रेन में विनाश ही विनाश है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने रूस का सामना करने के लिए आम नागरिकों के हाथ में सैनिकों वाले हथियार थमा दिए हैं। इसका लाभ और हानि दोनों हैं। राष्ट्रवादी यूक्रेनी अपनी सुरक्षा कर रहे हैं तो इन घातक हथियारों के बल पर आपराधिक किस्म के लोग लूटपाट कर रहे हैं। यूक्रेन से पलायन जारी है। जिन्दगी मुश्किल में है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध अपराधी घोषित किया जा चुका है। रूस पर तमाम देशों ने प्रतिबंध लगा दिए हैं। इसके बाद भी रूस की सैन्य कार्रवाई रुकी नहीं है। रूस अपनी विशाल सैन्य शक्ति के नशे में चूर है।
यूक्रेन ने आर्थिक रूप से खूब प्रगति की लेकिन सैन्य शक्ति नहीं बढ़ाई। यूक्रेन ने मार्च, 2014 से भी सबक नहीं लिया जब रूस ने क्रीमिया को छीन लिया था। अगर यूक्रेन तभी से अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाता तो आज रूस के सामने दीनता वाली स्थिति में न होता। प्रकृति का सामान्य सा नियम है कि बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। जो ताकतवर होता है, उसके सामने कोई नहीं बोलता है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका को ही लें, वह किसी भी देश में घुसकर सैन्य कार्रवाई कर देता है, किसी भी देश को धमका देता है, किसी भी देश पर प्रतिबंध लगा देता है। इसके अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं। रूस भी इसी तरह की दादागिरी कर रहा है। रूस इतना शक्तिशाली है कि अमेरिका सिवाय मुँह चलाने के कुछ कर नहीं पा रहा है। अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे संयुक्त राष्ट्र भी तमाशा देख रहा है। यूक्रेन दिन-प्रतिदिन पतन की ओर बढ़ रहा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1947-48, 1965, 1971, 1999 में युद्ध हुए। 1947-48 के युद्ध में पाकिस्तान ने कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया, जो अभी तक वापस नहीं लिया जा सका है। 1962 में चीन ने हमला किया। 1962 का युद्ध हम हारे क्योंकि भारत का सैन्य बल कम था। चीन ने भारत की हजारों वर्गकिलोमीटर भूमि पर कब्जा कर रखा है। पाकिस्तान और चीन आज भी भारत के सामने युद्ध जैसी परिस्थितयां पैदा करते रहते हैं। भारत अब किसी भी युद्ध का सामने करने को तैयार है।
युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। कोई सामान्य विवाद हो या युद्ध, समाधान के लिए वार्तालाप करना ही होता है। आशा करते हैं कि दुनिया में दादागिरी करने वाले देश आगे आकर रूस पर लगाम लगाएंगे। शांति के पक्षधर प्रत्येक देश को इस दिशा में सार्थक कदम उठाने चाहिए।
डॉ. भानु प्रताप सिंह
(लेखक जनसंदेश टाइम्स के कार्यकारी संपादक हैं)
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