क्‍या आप भी बच्‍चों पर सोशल मीडिया के दुष्‍प्रभावों से चिंतित हैं?

क्‍या आप भी बच्‍चों पर सोशल मीडिया के दुष्‍प्रभावों से चिंतित हैं?

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बच्चों पर साइबर क्राइम का खतरा मंडराने लगा है। बीते कुछ वक्त में ऐसे गेम्स इंटरनेट पर आ गए हैं, जिनसे उन पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में पेरेंट्स और स्कूलों के लिए कुछ सुझाव हैं, जिनके जरिए वे बच्चों को इंटरनेट के इस जाल से बचा सकते हैं।
मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने पिछले दिनों केंद्र सरकार से पूछा कि क्या अमेरिका की तरह, हमारे देश में भी बच्चों को साइबर क्राइम का शिकार होने से बचाने के लिए कोई कानून लाया जा सकता है?
कोर्ट ही नहीं, इंटरनेट और सोशल मीडिया के चलते बच्चों पर पड़ रहे दुष्प्रभाव से हर कोई चिंतित है। कई स्कूल और संस्थाएं इस ओर कदम भी बढ़ा चुकी हैं।
अपने भीतर जानकारियों का समंदर समेटने वाली इंटरनेट की जिस दुनिया को देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को और संवारना और निखारना था, वह कैसे उनका दुश्मन बन बैठा है।
पिछले कुछ सालों में स्कूल और कॉलेज के बच्चे ऑनलाइन गेम्स की लत, सोशल मीडिया की लत, पोर्न कॉन्टेंट देखने की लत, साइबर बुलिंग जैसे ‘इंटरनेट इविल्स’ का शिकार हुए हैं। इसके चलते, स्कूलों और कॉलेजों में साइबर एजुकेशन लागू किए जाने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
साइबर एजुकेशन के महत्व और जरूरत को देखते हुए सीबीएसई और एनसीईआरटी सहित शहर के कई स्कूलों और संस्थाओं ने भी इस दिशा में कवायद शुरू कर दी है।
पैरंट्स के लिए सुझाव:
1- बच्चे पर नजर रखें कि वह इंटरनेट या मोबाइल पर कितने घंटे बिताता है। उम्र के हिसाब से उसका स्क्रीन टाइम लिमिट करें।
2- बच्चा कौन-कौन से ऐप्स इस्तेमाल कर रहा है, यह देखें। उसके फोन के पासवर्ड की जानकारी रखें।
3- फोन पर पैरंटल सेफ्टी कंट्रोल रखें। पॉप अप ब्लॉकर्स यूज करें। सामान्य यूट्यूब या गूगल के बजाय बच्चों के लिए सुरक्षित यूट्यूब फॉर किड और किडल ब्राउजर डाउनलोड करके दें।
4- हेलिकॉप्टर पैरंटिंग मत कीजिए। अगर हर वक्त बच्चे के सिर पर मंडराते रहेंगे, तो वे आपसे चीजें छिपाएंगे।
5- बच्चे का भरोसा जीतें, ताकि वह अपनी दिक्कतें आपसे शेयर करे। अगर वह बातें छिपा रहा है, तो एक्सपर्ट की मदद लें।
6- मां-बाप अक्सर टेक्नॉलजी के मामले में बच्चे से कम जानते हैं, ऐसे में खुद भी नई टेक्नॉलजी सीखते रहें।
आजकल बच्चे उठते ही सोशल मीडिया चेक करते हैं और लाइक्स कम हों, तो डिप्रेस तक हो जाते हैं।
इंटरनेट एडिक्शन बना बुरी बीमारी
इन दिनों बच्चों में गेमिंग अडिक्शन, सोशल मीडिया अडिक्शन, पोर्नोग्रफी अडिक्शन, साइबर बुलिंग जैसे मामले काफी देखे जा रहे हैं। ऐसे-ऐसे हिंसक गेम्स आ रहे हैं, जिन पर कोई रोक-टोक नहीं है। जैसे, पबजी 16 प्लस गेम है, लेकिन हमारे यहां 8 से 9 साल के बच्चे भी खेल रहे हैं। इसी तरह, सोशल मीडिया अडिक्शन भी बहुत बढ़ रहा है। इंस्टाग्राम बच्चों में बहुत पॉप्युलर है। उसमें कई बार बच्चे न्यूड फोटोज़ भी शेयर कर देते हैं। अब टिक टॉक अडिक्शन भी है। उसमें अडल्ट भी बच्चों के वीडियोज देखते हैं। फिर, उनको बहला-फुसलाकर उनके आपत्तिजनक फोटोज ले लेते हैं और धमकाते हैं। इसे सोशल मीडिया में चाइल्ड ऑनलाइन ग्रूमिंग कहते हैं। इसके अलावा, पोर्नोग्रफी का अडिक्शन और साइबर बुलिंग के मामले भी खूब देखने को मिल रहे हैं।’
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) भी स्कूलों में साइबर सिक्यॉरिटी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रही है। इसमें स्टूडेंट्स को साइबर क्राइम के खतरों से आगाह करने के साथ ही सेफ्टी रूल्स भी बताए जाएंगे। इसके लिए, स्कूलों में साइबर एक्सपर्ट भी नियुक्त किए जाएंगे। इसके अलावा, एनसीईआरटी ने भी बच्चों की साइबर सिक्यॉरिटी के मद्देनजर पिछले साल स्कूलों और पैरंट्स को कई दिशा-निर्देश जारी किए थे। उन्होंने बच्चों को साइबर क्राइम के खतरों के प्रति जागरूक करने के लिए साइबर सिक्योरिटी सप्ताह मनाने और साइबर क्लब बनाने का सुझाव भी दिया था।
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh