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पर्यूषण महापर्व में इन दो भाइयों ने किए अनुकरणीय कार्य

PRESS RELEASE

Agra, Uttar Pradesh, India. लोग समझते हैं धर्म का मतलब मंदिर में घंटा बजाना, आरती करना, भगवान के आगे नतमस्तक होना है। मेरी नजर में यह धर्म का बाह्यस्वरूप है। धर्म तो हमें परपीड़ा हरने की सीख देता है। जीवमात्र के प्रति दया का भाव। सबकुछ मानवता के लिए न्योछावर कर देना। जैसे राजा दिलीप ने कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस समर्पित कर दिया था। कुछ ऐसा ही संदेश दिया है दो भाइयों ने। उन्होंने पर्यूषण महापर्व के दौरान अंगदान की घोषणा की है। नेत्रदान का संकल्प तो वे दिला ही रही हैं। इतना ही नहीं, महापर्व के अंतिम दिन श्रावकों के चरण प्रक्षाल किए।

हम बात कर रहे हैं प्रखर समाजसेवी रहे स्व. अशोक जैन सीए के अनुज द्वय राजुकमार जैन और सुनील कुमार जैन की। राज कुमार जैन इस समय मंच के अध्यक्ष और श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजक श्रीसंघ के अध्यक्ष हैं। सुनील कुमार जैन मंच के संयोजक हैं। दोनों ही भाई आगरा के बड़े जूता निर्यातक हैं। कोरोना काल में उन्होंने सेवा की अद्भुत मिसाल कायम की। किसी भी व्यक्ति से एक रुपया चंदा लिए बिना सामाजिक और व्यक्तिगत हित पर मदद की। यह कहानी तो बहुत लम्बी है, हम यहां बात कर रहे हैं सिर्फ पर्यूषण महापर्व पर किए गए उदाहरणीय और अनुकरणीय कार्य की।

श्रावक के चरण जल और दुग्ध से धोते राजकुकमार जैन।

श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ के तत्वावधान में पर्यूषण महापर्व 10 दिन तक चला। अंतिम दिन श्री चिंतामणि श्वेताम्बर जैन मंदिर, रोशन मोहल्ला में संवतसरी पर्व पर 24 तीर्थंकरों के जीवन चरित्र के बारे में अवगत कराया गया। सुनील कुमार जैन, विपन बरड़िया ने श्रावक और कविता जैन, रीता ललवानी, रीना दूगड़ समेत सभी श्राविका ने श्राविका के पग पानी और दूध से प्रक्षाल किए, पौंछे और तिलक लगाकर बहुमान किया। इसमें छोटे और बड़े का कोई भेद नहीं किया गया। बड़ों ने एक बच्चे का भी पद प्रक्षाल लिया। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि पता नहीं कौन सी आत्मा मोक्षगामी होने वाली और और हम उसकी सेवा से वंचित न रह जाएं। बहुमान अशोक जैन सीए परिवार ने लिया।

है न अचरजभरी बात। आमतौर पर ऐसा होता नहीं है, लेकिन जो हुआ वह कम से कम मुझे तो आश्चर्यचकित कर रहा था। हो सकता है जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह सामान्य बात हो लेकिन मेरे लिए नहीं। हिन्दू धर्म में नवरात्र के दौरान कन्याओं के चरण धोए जाते हैं। श्वेताम्बर जैन समाज में तो यह अनोखी प्रथा है कि संवतसरी पर्व पर हर किसी के चरण धोए जाएं।

तिलक लगाकर बहुमान भी किया।

जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ ने एक और बड़ा काम किया। करीब 200 लोगों ने मरणोपरांत नेत्रदान का संकल्प लिया। इसके साथ ही श्रीसंघ व आगरा विकास मंच के अध्यक्ष राजकुमार जैन और मंच के संयोजक सुनील कुमार जैन ने अंगदान की घोषणा की। संकल्प पत्र भरा। उन्होंने कहा कि अगर चिकित्सक हमारे जीवन को बचाने में असमर्थ हो जाता है तो तत्काल जीवित रहते हुए अंगदान कर दिया जाए। परिवार इस कार्य के लिए बाध्यकारी है। उन्होंने कहा कि मरने के बाद शरीर किसी काम का नहीं रहता है। जीवित रहते हुए अगर अंग किसी जरूरतमंद के काम आ जाएं तो इससे अच्छी बात हो नहीं सकती है।

मृत्योपरांत देहदान का चलन है लेकिन जीवित रहते हुए अंगदान, यह सोचकर ही मन सिहर उठता है। अंगदान करने वाले और उनके परिजनों पर क्या गुजरेगी। नश्वर शरीर का अंतिम संस्कार भी करने का नहीं मिलेगा। दोनों भ्राताओं के अंगदान की इस घोषणा से कोई तनिक भी प्रेरणा ले सका तो मेरा यह समाचार प्रकाशित करना सार्थक हो जाएगा।

इस बारे में पूछे जाने पर राज कुमार जैन और सुनील कुमार जैन कहते हैं कि श्वेतांबर जैन समाज के लिए पर्यूषण पर्व आठ दिनों का होता है, जिसका समापन ‘संवतसरी’ पर होता है। क्षमा, मार्दव (मान का अभाव), आर्जव (छल-कपट से दूर रहना), शुचिता (पवित्रता), सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन (सहजता और परिग्रह से दूर रहना) और ब्रह्मचर्य (सदाचार) की बात जैन धर्म सिखाता है। हमारे 24 तीर्थंकरों द्वारा दिए गए उपदेश को रंचमात्र भी सार्थक कर सके तो हमारा जीवन धन्य है। जिसकी जैसी भावना है और जैसी क्षमता है, वैसे करते हैं। यह सब स्वयं के आध्यात्मिक उत्थान के लिए है, किसी पर दया नहीं कर रहे हैं।

सम्वत्सरी’ क्षमा का दिन है। मेरी समझ में दुनिया के किसी भी धर्म-समुदाय में क्षमा का कोई त्योहार नहीं है। इस तरह यह एक अनूठा पर्व है। घर-परिवार से लेकर समाज तक, सब एक-दूसरे से क्षमा माँगते हैं और दूसरों को सहर्ष क्षमा करते हैं। ‘सबसे क्षमा-सबको क्षमा’ इस पर्व का मूलमंत्र है। सब प्राकृत भाषा में ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर एक-दूसरे से हृदय से क्षमा माँगते हैं। जैन दर्शन में क्षमा का विस्तार मनुष्य तक ही नहीं प्राणिमात्र तक है-

“खामेमि सव्व जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे,
मिती मे सव्व भुए सू, वैरम मज्झ न केवई।”

Dr. Bhanu Pratap Singh