Agra News: विधायक जी के रिश्तेदार तो कार्यवाही से मुक्त: आम आदमी पूछ रहा क्या कानून सिर्फ़ कमजोरो के लिए ?

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आगरा: सराय ख्वाजा, खेरिया मोड़ पर जो कुछ हुआ, उसे देखकर मन में एक सवाल कौंध रहा है – क्या हम वाकई कानून के राज में जी रहे हैं? या फिर ये कानून सिर्फ आम जनता को डराने-धमकाने और रौंदने के लिए है? जिस तरह से आगरा पुलिस ने भारतीय जनता पार्टी के विधायक के रिश्ते के चाचा जगदीश कुशवाह की तहरीर पर नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ आनन-फानन में मुकदमा दर्ज कर लिया, वो सीधे-सीधे सत्ता के दुरुपयोग और पुलिस के दोहरे रवैये का जीता-जागता सबूत है।

अगर यही घटना किसी आम नागरिक के साथ हुई होती, अगर किसी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले, किसी गरीब रेहड़ी-पटरी वाले की दुकान पर ऐसे ही अवैध तरीके से बुलडोजर चला दिया होता, और वो शिकायत लेकर थाने पहुंचता, तो क्या उसकी तहरीर पर इतनी तुरंत कार्रवाई होती? क्या बिना किसी जांच-पड़ताल के, बिना दूसरे पक्ष की बात सुने, बिना वायरल वीडियो की सत्यता परखे, तुरंत गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया जाता? जवाब है – नहीं! शायद उसकी फरियाद को रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता, या फिर उसे घंटों थाने के चक्कर कटवाए जाते।

यहाँ मामला अलग है। यह विधायक के चाचा हैं! और बस यही एक लाइन सब कुछ साफ कर देती है। अवैध सरकारी जगह पर कब्जा किया गया, फिर जब कार्रवाई हुई तो बवाल भी किया गया, और हद तो तब हो गई जब कार्रवाई करने वाली टीम पर ही मुकदमा दर्ज करा दिया गया। वाह रे न्याय! वाह रे व्यवस्था! क्या यह दोहरा मापदंड नहीं है? क्या यह खुलेआम सत्ता और रसूख का प्रदर्शन नहीं है?

नगर निगम की टीम पॉलीथिन के खिलाफ अभियान चलाने गई थी। नत्थी मिष्ठान भंडार में प्लास्टिक के गिलास का इस्तेमाल हो रहा था। टीम ने चालान काटा। आरोप है कि इसके बाद दुकानदार ने टीम के एक सदस्य को थप्पड़ मार दिया। यानी शुरुआत दुकानदार की तरफ से हुई। मारपीट की गई। नगर निगम के कर्मचारियों के भी चोटें आईं। लेकिन पुलिस ने इन तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया। पुलिस को सिर्फ वही वीडियो दिखाई दिए जिसमें निगम की टीम मारपीट कर रही है और बुलडोजर चला रही है। शुरुआती घटनाक्रम के वीडियो क्यों नहीं देखे गए? क्या पुलिस सिर्फ एक तरफा कार्यवाही के लिए बैठी है?

यह बेहद चिंताजनक है। नगर निगम के सेनेटरी इंस्पेक्टर प्रदीप गौतम सहित 20 लोगों के खिलाफ बलवा, मारपीट, जानलेवा हमला, छेड़छाड़, लूट जैसी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करना, बिना किसी ठोस सबूत के, सिर्फ इसलिए कि सामने वाला रसूखदार है, न्याय के साथ सीधा खिलवाड़ है। यह पुलिस की निष्पक्षता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। सफाई कर्मचारियों में इस मुकदमे को लेकर आक्रोश है, और उनका यह कहना बिल्कुल सही है कि अगर यही हाल रहा तो सरकारी टीमें कहीं कार्रवाई करने नहीं जा पाएंगी।

क्या इसका मतलब यह है कि अब भविष्य में सिर्फ आम नागरिकों पर ही यह टीम कार्रवाई करेगी? क्या रसूखदार, दबंगों व नेताओं के करीबी रिश्तेदार अब हर तरह की कानूनी कार्रवाई से आजाद हैं? क्या कानून और व्यवस्था अब सिर्फ ताकतवर लोगों के घर की पहरेदार बनकर रह जाएगी? ये सवाल आज हर उस आम नागरिक के मन में कौंध रहे हैं जो ईमानदारी से अपना जीवन यापन कर रहा है, जो कानून का पालन करता है, लेकिन फिर भी जानता है कि उसके साथ कभी भी अन्याय हो सकता है, क्योंकि उसके पास कोई ‘विधायक’ चाचा नहीं है।

यह घटना सिर्फ आगरा की नहीं, बल्कि पूरे देश की कानून व्यवस्था की एक कड़वी सच्चाई को बयां करती है। जब पुलिस खुद ही राजनीतिक दबाव में काम करने लगे, जब न्याय की तराजू रसूख के वजन से झुकने लगे, तो फिर आम आदमी कहाँ जाए? क्या उसे सिर्फ लाचार होकर यह सब देखता रहना चाहिए, या फिर वह भी कभी अपनी आवाज बुलंद कर पाएगा और इस दोहरे मापदंड के खिलाफ खड़ा हो पाएगा?

-मोहम्मद शाहिद की कलम से

Dr. Bhanu Pratap Singh